धर्मशाला: प्रदेश के वनों में हरे पेड़ों के कटान पर लगे बैन को हटाने हेतू सरकार के प्रयास रंग लाए हैं. जिसके चलते अब हरे पेड़ों के कटान पर लगा बैन जल्द हट सकता है, क्योंकि साइंटिफिक तरीके से काटे गए पेड़ों को रिजनरेट किया जाएगा. इस पहल से जहां वनों में आग लगने की घटनाओं में कमी आएगी, वहीं सरकार के राजस्व में भी वृद्धि होगी.
हिमाचल प्रदेश के जंगलों में हरे पेड़ों के कटान पर बैन लगा हुआ था, जिसे हटाने के लिए प्रदेश सरकार ने साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट में केस दायर किया था. उस केस की सुनवाई उपरांत सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि चीड़, खैर और साल के लिए 3 पायलट लोकेशन चिन्हित की जाएं. जिस पर सरकार की ओर से बिलासपुर में चीड़, नूरपुर में खैर और पांवटा में साल के लिए पायलट लोकेशन चिन्हित की थी.
हाई पावर कमेटी को सौंपी जा रही सफल प्रयोग की रिपोर्ट: चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट सर्कल धर्मशाला देवराज कौशल ने बताया कि चीड़, खैर और साल के लिए 3 पायलट लोकेशन चिन्हित कर वन विभाग ने वर्ष 2018 से प्रयोग शुरू किया था, जो अब अभी जारी है. इस प्रयोग के परिणाम खैर को लेकर नूरपुर में सफल रहे हैं. जिसके चलते इस सफल प्रयोग की रिपोर्ट प्रदेश सरकार द्वारा सेंट्रल इम्पावर कमेटी (सीईसी) को सौंपी जा रही है.
सीईसी इन सफल परिणामों का मूल्यांकन करके वनों में खैर के हरे पेड़ों के कटान पर लगे प्रतिबंध को खोलने के आदेश जारी कर सकती है. यही प्रक्रिया चीड़ और साल के एरिया में भी की जाएगी. ऐसे में यह कहना गलत न होगा कि प्रदेश सरकार के प्रयास सफल हुए हैं और हरे पेड़ों के कटान से प्रतिबंध जल्द हट सकता है.
क्या था पायलट लोकेशन में प्रयोग: वन विभाग के पायलट लोकेशन में किया प्रयोग यह था कि हरे पेड़ों को काटने के बाद साइंटिफिक तरीके से उन पेड़ों को किस तरह रिजनरेट किया जाए. साथ ही वनों में लगने वाली आग को किस तरह कम किया जाए. प्रयोग का मुख्य उद्देश्य यह था कि काटे गए पेड़ों को रिजनरेट करने से वनों में आग लगने के मामलों में कमी आएगी और सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा.
ये भी पढ़ें- कांगड़ा में महसूस किए गए भूकंप के झटके, 3.6 थी तीव्रता