हमीरपुर: हिमाचल में जन्में यशपाल शर्मा वो क्रांतिकारी थे, जिन्होंने आजादी की लड़ाई बम और बारूद से शुरू करके कलम की स्याही से क्रान्ति की गाथा लिखी. शायद ये ऐसे पहले क्रांतिकारी हैं जिन्हें गुलाम भारत में और आजाद भारत में भी जेल जाना पड़ा. स्वतंत्रता सेनानियों और साहित्य जगत में यशपाल शर्मा का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है.
यशपाल शर्मा ने समाज और साहित्य में नए प्रतिमान स्थापित किए. यशपाल शर्मा सामाजिक चेतना के अग्रणी क्रांतिकारी थे. मुंशी प्रेमचंद के बाद कथा साहित्य में इनका नाम अग्रिणी रूप से लिया जाता है. यशपाल का जन्म 3 दिसंबर 1903 को साधारण कारोबारी हीरालाल के घर फिरोजपुर छावनी में हुआ था. उनके पिता बिना लिखी-पढ़ी के कर्ज देते थे. गांव रंघाड़ (भूम्पल), जिला हमीरपुर में दो तीन कनाल जमीन और कच्चा मकान ही उनकी कुल संपत्ति थी.
इनकी माता फिरोजपुर छावनी के आर्य अनाथालय में अध्यापिका थीं. माता उन्हें स्वामी दयानंद के आदर्शों के अनुकूल एक तेजस्वी वैदिक प्रचारक बनाना चाहती थीं. यशपाल शर्मा की प्रारंभिक शिक्षा घर पर हुई. सात-आठ वर्ष की आयु में उनका गुरूकुल कांगड़ी में प्रवेश हुआ. 1917 में चौदह वर्ष की उम्र में असाध्य रोग से पीड़ित हो गए. बेटे को बचाने की उम्मीद लिए इनकी माता इन्हें गुरूकुल कांगड़ी से लाहौर ले आईं और डीएवी स्कूल में दाखिला करवा दिया.
स्कूली जीवन में ही ये गांधीवादी विचारों से प्रभावित थे. 1917 में रौलेट एक्ट के विरोध में सत्याग्रह आंदोलन में हिस्सा लिया और गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक किया. आंदोलन के सक्रिय और कर्मठ कार्यकर्ता बने. 1921 में फिरोजपुर छावनी के मनोहर लाल मेमोरियल स्कूल से प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी. वजीफा मिलने के बावजूद असहयोग आंदोलन के कारण सरकारी कॉलेज में भर्ती होने से इनकार कर दिया.
गांधी जी ने चौरा चौरी की घटना के बाद असहयोग आंदोलन वापस ले लिया. इससे यशपाल शर्मा निराश हो गए. इसके बाद उन्होंने लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित नेशनल कॉलेज लाहौर में दाखिला लिया. लाहौर उस समय क्रांतिकारियों का अड्डा था. यहीं भगत सिंह, सुखदेव व भगवती चरण के संपर्क में आए. इसके बाद इन्होंने गांधीवाद का रास्ता छोड़ दिया और गरम दल में शामिल हो गए.
चंद्रशेखर आजाद, भागत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के साथ हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन पार्टी का काम देखने लगे. इन्होंने बम बनाने का प्रशिक्षण लिया. क्रांतिकारियों में ये बम एक्सपर्ट के रूप में जाने जाते थे. सन 1929 में लाहौर बम फैक्ट्री में पकड़े जाने पर सुखदेव गिरफ्तार हो गए और यशपाल फरार हो गए थे. अब भूमिगत होकर काम करने लगे थे.
23 दिसंबर 1929 को वायराय लॉर्ड इरविन को ले जा रही ट्रेन को इन्होंने बम से उड़ा दिया. इसके बाद जनवरी 1930 में भगवती चरण के साथ मिलकर हिंदुस्तानी समाजवादी प्रजातंत्र सेना के घोषणा-पत्र 'फिलॉसफी ऑफ दी बम' को लिखा. फरवरी 1931 में चंद्रशेखर आजाद की शहादत के हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन सेना के कमांडर इन चीफ चुने गए. पर्चों पर इनका नाम और पोस्टर छपने लगा. पोस्टर पर नारों के जरिए युवाओं को जागरूक और संगठित करने लगे.
ऐसे में लाहौर और दिल्ली षडयंत्रों के मुकदमें में फरारी के कारण गिरफ्तारी के लिए ब्रिटिश सरकार ने पांच हजार रुपए के इनाम का विज्ञापन 23 जनवरी 1932 को निकाल दिया. 22 जनवरी 1932 को इलाहाबाद में पुलिस से मुठभेड़ के समय गोलियां खत्म होने पर यशपाल शर्मा को गिरफ्तार कर लिया. कोर्ट ने इन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई. 7 अगस्त 1936 को यशपाल शर्मा का विवाह जेल में ही प्रकाशवती के साथ हुआ था.
प्रकाशवती से इनकी मुलाकात क्रांतिकारी गतिविधियों के दौरान ही हुई थी. प्रकाशवती भी क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल थी. इसी कारण हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के पदाधिकिरियों के साथ इनकी अनबन भी हुई थी, क्योंकि पार्टी की सभी लोग अविवाहित थे और अविवाहित ही रहना चाहते थे. पार्टी में शामिल होने की शर्त भी यही थी.
1937 में यूपी में कांग्रेस मंत्रिमंडल बनी. इसी दौरान पंडित जवाहर लाल नेहरू की एक महिला परिचित ने अंग्रेजों से बातचीत कर इन्हें राजनैतिक कैदी बनवा दिया. 1937 में ही सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने का फैसला किया गया. इनमे यशपाल शर्मा भी शामिल थे. पांच साल बाद इनकी जेल से रिहाई हुई, लेकिन इनके पंजाब जाने पर सरकार ने पांबदी लगा दी. ऐसे में ये यूपी में जाकर रहने लगे.
जेल में यशपाल शर्मा का स्वास्थ्य खराब हो गया था, पर इनकी कलम में आग अभी बाकी थी. ऐसे में उन्होंने अब कलम के जरिये क्रांति की मशाल जलाए रखने का फैसला किया. नवंबर 1938 से विप्लव पात्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया. मार्क्सवाद की पाठशाला और सिंहावलोकन के कुछ अंश पत्रिका के प्रमुख आकर्षण थे. सामग्री तैयार करने से लेकर, छपाई की व्यवस्था, डिस्पैच और बिक्री के झंझटों सब कुछ के लिए दो ही व्यक्ति थे, यशपाल और उनकी पत्नी प्रकाशवती, लेकिन अपनी विशेषता के कारण विप्लव को बाजार में भरपूर समर्थन मिला. नवंबर 1939 दीपावली से विप्लव का उर्दू संस्करण भी बागी नाम से निकलने लगा. विप्लव से अंग्रेज इतने परेशान हुए कि उसे जबरन बंद करवा दिया.
1939 में ही अधिकांश जेल में और कुछ बाद में लिखी कहानियों का पहला संग्रह पिंजरे की उड़ान नाम से प्रकाशित किया. 1940 में न्याय का संघर्ष और मार्क्सवाद, मई 1941 के आरंभ में पहला उपन्यास दादा कॉमरेड और 1942 में कहानी संग्रह 'वो दुनिया' छपी. 1940 में विप्लव और बागी पत्रिका से भारी जमानत की मांग की गई. जमानत न दे सकने के कारण बागी बंद कर देना पड़ा और विप्लवी ट्रैक्ट के नाम से निकाला जाने लगा. एक बार फिर यशपाल गिरफ्तार कर लिए गए.
जमानत और मुकदमें के बाद रिहाई तो हो गई, लेकिन अब विप्लवी ट्रैक्ट भी बंद हो गया. 1942 में गांधीवाद की शव परीक्षा प्रकाशित किया. प्रकाशवती ने दंत चिकित्सक की प्रैक्टिस शुरू कर दी थी. इस संकट में डैंटिस्ट्री का सामान भी बेच देना पड़ा. आर्थिक हालात ठीक नहीं थे. गुजारे के लिए यशपाल और प्रकाशवती, लैम्प रॉड्स और चमड़े की गद्दियां स्वयं बनाकर थोक में दुकानों में बेच देते थे.
इसके बाद सन 1943 में 'देशद्रोही' का प्रकाशन हुआ और बाद में इसी वर्ष कहानी संग्रह ज्ञानदान का भी. 1944 में एक और कहानी संग्रह अभिशप्त आया. 1945 में बौद्धकालीन ऐतिहासिक परिवेश पर लिखा गया उपन्यास दिव्या प्रकाशित हुआ. 1946 में दो और कहानी संग्रह प्रकाशित हुए 'भस्मावृत चिंगारी' और 'तर्क का तूफान'. इसी साल लघु उपन्यास 1945 के नाविक विद्रोह की पृष्ठभूमि पर 'पार्टी कॉमरेड' भी छपा.
मार्च 1949 में मनुष्य के रूप उपन्यास प्रकाशित हुआ. इसी वर्ष जून में प्रसिद्ध रूसी उपन्यासकार वर्दी कार्खावायेव के उपन्यास डिसाईसिवस्टेप का स्वतंत्र अनुवाद 'पक्का कदम' के नाम से प्रकाशित हुआ. इसी दौरान यूपी में रेलवे यूनियन ने हड़ताल कर दी. सरकार को लगा की यशपाल शर्मा का उपन्यास पढ़कर यूनियन हड़ताल पर उतरी है. उपन्यास का अंतिम अध्याय सामप्त करते समय सरकार ने मार्क्सवादी विचारों से सहानुभूति रखने पर इन्हें गिरफ्तार कर लिया.
इस गिरफ्तारी पर साहित्यिक और राजनैतिक क्षेत्रों में घोर आपत्ति होने और स्वास्थ्य कारणों से छह माह में रिहाई हुई. 1950 में कहानी संग्रह फूलों का कुर्ता और धर्म युद्ध प्रकाशित हुए. राजनीतिक निबंधों के दो संग्रह 'बात-बात में बात' और 'रामराज्य की कथा' भी इसी साल प्रकाशित हुए. 1951 में कहानी संग्रह 'उत्तराधिकारी' और 'चित्र' का शीर्षक प्रकाशित हुई. 'सिंहावलोकन' उपन्यास का पहला भाग भी इसी वर्ष प्रकाशित हुआ.
1952 में सिंहावलोकन का दूसरा भाग प्रकाशित हुआ और एक मात्र नाटक 'नशे-नशे की बात' भी इसी वर्ष प्रकाशित हुआ. इसी वर्ष दिसंबर में स्विटजरलैंड, ऑस्ट्रिया, रूस और इंग्लैंड में चार पांच माह बिताने के बाद मई 1953 में भारत लौट आए. 1953 में इसी यात्रा के आधार पर पूंजीवादी और समाजवादी व्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन, लोहे की दीवार के दोनों ओर, यात्रावृत्त के रूप में प्रकाशित हुआ.
1954 में एक और कहानी संग्रह 'तुमने क्यों कहा था मैं सुंदर हूं' का प्रकाशन हुआ. 1955 में सिंहावलोकन का तीसरा भाग और कहानी संग्रह 'उत्तमी की मां' प्रकाशित हुआ. इसी साल देव पुरस्कार से सम्मानित किया. अमरीकी उपन्यास लेखिका पर्लबैक के उपन्यास 'पवेलियन ऑफ विमेन' का अनुवाद 'जनानी डयोढ़ी' नाम से प्रकाशित हुआ. इसी वर्ष जून में काबुल के रास्ते दूसरी बार रूस की यात्रा की. कई स्थानों में चार माहीने रह कर फिनलैंड, स्वीडन, इंग्लैंड होते हुए अक्तूबर के अंत में वापस भारत लौटे.
1956 में शांति की समस्या को लेकर दूसरा ऐतिहासिक उपन्यास 'अमिता' का प्रकाशन हुआ. यह उपन्यास अशोक के कलिंग के विजय की पृष्ठभूमि पर आधारित था. पंडित नेहरू से बहुत से राजनैतिक मतभेदों के बावजूद, विश्वशांति के लिए उनके प्रयत्नों की सराहना करते हुए उन्होंने यह नेहरू को समर्पित किया. इसी वर्ष भारतीय अंग्रेजी उपन्यास लेखिका कमला मार्कण्डेय के उपन्यास का अनुवाद 'चलनी में अमृत' प्रकाशित हुआ. रूसी उपन्यास लेखिका गालिना निकोलायेवा के उपन्यास 'हार्वेस्ट' का अनुवाद 'फसल' के नाम से प्रकाशित किया. इसी वर्ष चेकोस्लाकिया से निमंत्रण पर चेकोस्लावाकिया, पूर्वी जर्मनी, रूमानिया की यात्रा की.
1958 में वृहद्काय उपन्यास 'झूठा-सच' का प्रथम भाग प्रकाशित हुआ. एक कहानी संग्रह 'ओ भैरवी' भी आया और यात्रावृत राहबीती भी. 1960 में झूठा-सच का दूसरा भाग प्रकाशित हुआ. 1962 में कहानी संग्रह सच बोलने की भूल. 1963 में लघु उपन्यास 'बारह घंटे छपा'. यह उपन्यास आंख के कष्ट के कारण बोलकर लिखाया था. फरवरी, 1965 में कहानी संग्रह 'खच्चर और आदमी' प्रकाशित हुआ. 'अप्सरा का शाप' भी इसी वर्ष छपा.
1968 में लघु उपन्यास क्यों और कहानी संग्रह भूख के तीन दिन प्रकाशित हुए. 1970 में रूस, इंग्लैंड, अमेरिका और 1973 में मॉरीशस की यात्रा की. इसी का यात्रावृत्त 'स्वर्गोद्यानः बिना सांप' का प्रकाशन हुआ. इसी वर्ष उपन्यास 'मेरी तेरी उसकी बात' प्रकाशित हुआ. इसके लिए 1976 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान दिया गया. फरवरी 1974 में आगरा विश्वविद्यालय ने साहित्य सेवा के सम्मानार्थ डी.लिट की उपाधि प्रदान की. 21 अप्रैल, 1970 को राष्ट्रपति ने पदम भूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया. 26 दिसंबर 1976 को यशपाल शर्मा स्वर्ग सिधार गए. 2003 में इनके नाम से डाक टिकट भी जारी किया.
इतने बड़े क्रांतिकारी और लेखक होने के बाद आज भी यशपाल शर्मा लोगों के लिए अनसुना नाम हैं. स्कूली पाठ्यक्रम तक में इन्हें जगह नहीं मिली. जितना बड़ा कद और योगदान यशपाल शर्मा का आजादी की लड़ाई और साहित्य जगत में है उतना मान सम्मान इन्हें कभी नहीं मिला.