शिमला: हिमाचल प्रदेश से ही बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के बावजूद हिमाचल बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष का पद करीब एक महीने से खाली चल रहा है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष का पद इतने लंबे समय तक खाली रहा हो ऐसा शायद ही पहले कभी हुआ है. इसलिए पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व और प्रदेश हाईकमान पर सवाल उठना लाजमी है. संगठन मंत्री पवन राणा के खिलाफ कुछ बीजेपी विधायकों का खुले मंच पर विरोध जताना भी इस बात की ओर इशारा करता है कि फिलहाल बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं है.
बीजेपी अध्यक्ष पद से डॉ. राजीव बिंदल ने 27 मई को के इस्तीफे के बाद अब तक प्रदेश बीजेपी बिना अध्यक्ष के ही कार्य कर रही है. इतने लंबे समय तक ताजपोशी ना होना बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व प्रदेश से राज्यसभा सांसद जगत प्रकाश नड्डा को भी सवालों के घेरे में खड़ा करता है. जेपी नड्डा हिमाचल से हैं और प्रदेश की राजनीति को भली-भांति जानते हैं. ऐसे में वह अपने राज्य में पार्टी के अध्यक्ष पद पर जिसे चाहते उसे बिठा सकते थे, लेकिन बिंदल के हटने के बाद अब तक ना तो बीजेपी का कोई कार्यकारी अध्यक्ष बना है और ना ही नियमित अध्यक्ष की नियुक्ति हो पाई है.
वहीं, अब पार्टी की कमान पूरी तरह से संगठन मंत्री पवन राणा के हाथों में चली गई है. पवन राणा भी पहले से विवादों के घेरे में हैं. बीजेपी के कुछ विधायकों ने खुले तौर पर उनके खिलाफ विद्रोह का झंडा उठाया हुआ है. नड्डा के करीबी होने के कारण जिस तरह से विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी से इस्तीफा देकर अचानक बीजेपी अध्यक्ष बने राजीव बिंदल को विवाद के बाद इस पद से हटाया गया उससे बीजेपी कार्यकर्ताओं व नेताओं में साफ संदेश गया कि राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की कमान अभी भी मोदी व शाह की जोड़ी के हाथों में ही है. नड्डा के अपने हाथ में कुछ ज्यादा नहीं है.
बिंदल जेपी नड्डा के करीबी माने जाते रहे हैं और नड्डा चाहते तो नया अध्यक्ष चुने जाने तक बिंदल को कार्यभार संभाले के लिए जिम्मेदारी दे सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इतना ही नहीं वह बिंदल के इस्तीफे को अस्वीकार भी कर सकते थे.
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के पद पर अगर किसी चौंकाने वाले नाम की घोषणा होती है तो बड़ी बात नहीं. चूंकि इससे पहले भी राज्यसभा के लिए इंदु गोस्वामी का नाम बाहर आया तो सभी चौंक गए. उस समय भी नड्डा ही नहीं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से लेकर बीजेपी के अध्यक्ष राजीव बिंदल भी देखते रह गए.
वहीं, अब बीजेपी अध्यक्ष को लेकर भी कुछ उसी तरह का फैसला हो जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए, लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि नड्डा की राष्ट्रीय बीजेपी पर कितनी पैठ बन पाई है. इस पर राजनीतिज्ञ संदेह जताने लगे हैं. चूंकि नड्डा के लिए अपने ही राज्य की बीजेपी का अध्यक्ष नियुक्त करना कोई बड़ा कार्य नहीं है.
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