शिमला: हिमाचल विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की सूची कभी भी जारी हो सकती है. उम्मीदवारों को चुनने में बीजेपी ने आंतरिक सर्वे से लेकर पदाधिकारियों की वोटिंग का सहारा लिया. इसके बाद कोर ग्रुप में मंथन हुआ और अब केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के बाद आज रात उम्मीदवारों की सूची जारी हो सकती है. उम्मीदवारों के नाम पर अंतिम मुहर बीजेपी की संसदीय बोर्ड की बैठक में लगेगी. उससे पहले बीजेपी का टिकट चाहने वाले नेताओं के दिल की धड़कन बढ़ी हुई है. क्योंकि उम्मीदवारों को लेकर बीजेपी में अब तक जो माथापच्ची हुई है उससे कुछ ऐसी चीजें सामने निकलकर आई हैं. जो कई नेताओं के सपनों पर पानी फेर सकता है.
परिवारवाद पर नरम- बीजेपी हर चुनाव में कांग्रेस के परिवारवाद को निशाने पर लेती है और खुद नई रवायत शुरू कर ने का दावा करती रही है. हालांकि कई मौकों पर परिवारवाद बीजेपी में भी देखने को मिला है. शायद यही वजह है कि इस बार हिमाचल के उम्मीदवारों की लिस्ट में भी परिवारवाद पर नरमी नजर आ सकती है. सूत्रों के मुताबिक नरमी के मिल रहे संकेत का असर पूर्व मंत्री नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा, हमीरपुर जिले में आईडी धीमान के बेटे अनिल धीमान और महेश्वर सिंह के बेटे हितेश्वर सिंह को टिकट मिल सकता है. हालांकि महेश्वर सिंह खुद के लिए कुल्लू और बेटे के लिए बंजार सीट से टिकट मांग रहे हैं.
उम्र को लेकर कोई ढील नहीं- बीजेपी युवाओं को टिकट देने की भी पैरोकार रही है और इसी आधार पर वो 70 साल से अधिक के नेताओं को टिकट ना देने के पक्ष में रही है. बीजेपी के इस नियम की झलक उम्मीदवारों की सूची में दिख सकती है. उम्र के पैमान में कर्नल इंद्र सिंह, कद्दावर नेता महेंद्र सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल फिट नहीं बैठते हैं. ऐसे में ये चेहरे अगर उम्मीदवारों की लिस्ट में ना दिखें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. वो बात और है कि बीजेपी ने पिछले साल हुए केरल विधानसभा चुनाव में पार्टी ने मेट्रो मैन ई.श्रीधरन को अपना सीएम उम्मीदवार बनाकर टिकट दिया था.
20 से 22 टिकटों पर तलवार- परिवारवाद से लेकर परफॉरमेंस और उम्र जैसे कई मानकों पर खरा उतरने के बाद ही बीजेपी का टिकट मिलेगा. इसलिये इस समय बीजेपी के टिकट की राह देख रहे नेताओं के दिल की धड़कन बढ़ी हुई है. बताया जा रहा है कि इस बार 20 से 22 नेताओं के टिकट कट सकते हैं. विधायकों से लेकर मंत्रियों तक सभी जानते हैं कि बीजेपी की टिकट मिलने का पहला पैमाना जीत है. पार्टी के द्वारा करवाए गए सर्वे की रिपोर्ट को पहला आधार माना गया है. अगर रिपोर्ट कार्ड ठीक रहा तो फिर उम्र से लेकर परिवारवाद जैसी बाधाओं से पार पाना होगा.
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