कुल्लू: रक्षाबंधन यानी रक्षा की कामना के लिए बहन की ओर से बांधा जाने वाला एक बंधन. यह त्योहार भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है. इस दिन सभी बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं. भाई बहन एक दूसरे को मिठाई खिलाते हैं और सुख-दुख में एक दूसरे के साथ रहने का विश्वास दिलाते हैं.
वहीं, कुल्लू के प्रसिद्ध पर्यटन नगरी मनाली के कुछ गांव में रक्षाबंधन से लेकर दशहरा तक राखी को लेकर जीजा साली के बीच एक अनोखी प्रतियोगिता शुरू हो जाती है. यहां साली और भाभी को राखी का बेसब्री से इंतजार रहता है, ताकि भाभी अपने देवर और साली अपने जीजा की कलाई पर बांधी गई राखी को तोड़ सके.
अगर साली ने अपने जीजा की राखी को दशहरे से पहले तोड़ दिया तो साली की जीत हो जाती है. अगर साली राखी को नहीं तोड़ पाई तो ऐसे में यह जीत जीजा की मानी जाती है और इस जीत को लेकर घर में जश्न भी मनाया जाता है. कई दशकों से चली आ रही जीजा-साली की राखी तोड़ने की अनूठी परंपरा यहां निरंतर जारी है. स्थानीय लोगों के अनुसार मनाली क्षेत्र में करीब दो दशक पहले केवल पुरोहित ही लोगों को राखी बांधते थे, लेकिन अब बहनें अपने भाई को राखी बांधने के लिए उनके घर जाती हैं और वह इस त्योहार का पूरे साल इंतजार करती हैं.
उझी घाटी के स्थानीय लोगों शमशेर, हेत राम ने बताया कि बहन की ओर से जो भाई की कलाई पर राखी बांधी जाती है, उस डोर को दशहरे तक संभाल कर रखना होता है. अगर इससे पहले उनकी भाभी या साली ने राखी तोड़ दी तो पुरुष की हार मानी जाती है. ग्रामीणों का इस अनूठी परंपरा के पीछे एक तर्क यह भी है कि पुरुष को रक्षा के सारे सूत्र आने चाहिए. अगर पुरुष अपने राखी को दशहरे तक बचाने में कामयाब होता है, तो वह अपनी बहन व समाज की रक्षा करने में भी सक्षम है और ऐसे में हंसी मजाक के बीच इस अनूठी परंपरा का आज भी उझी घाटी के ग्रामीण इलाकों में निर्वहन किया जाता है.
मनाली के युवा सुरेंद्र और रवि का कहना है कि इस अनूठी परंपरा को युवा पीढ़ी आज भी बड़े प्यार से निभा रही है. यहां राखी को भाई व बहन के बीच प्रेम व बहन की रक्षा का प्रतीक मानने के साथ साथ जीजा व साली के बीच एक अनूठी परंपरा को निभाने का भी प्रतीक माना जाता है. इस परंपरा को कब शुरू किया गया, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.
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