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कुल्लू: देव महाकुंभ में भगवान नरसिंह की जलेब बनी आकर्षण का केंद्र

अंतरराष्ट्रीय दशहरा पर्व में आज भी सैकड़ों वर्षों पुरानी परंपरा जिंदा है और लोग इसका निर्वाह कर रहे हैं. इसी कड़ी में कुल्लू शहर के रक्षक माने जाने वाले भगवान नरसिंह देवता की अलौकिक एवं भव्य जलेब यात्रा शुरू हो गई है. इस बार सात देवी-देवता ही पर्व में बुलाए गए हैं. जलेब भी सूक्ष्म तौर पर कोविड-19 के नियमों के अनुसार आयोजित हुई है.

Lord Narasimha Rath Yatra started in International Dussehra Festival of Kullu
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Published : Oct 26, 2020, 7:05 PM IST

कुल्लूः विश्व के सबसे बड़े देव महा समागम अंतरराष्ट्रीय दशहरा पर्व में आज भी सैकड़ों वर्षों पुरानी परंपरा जिंदा है और लोग इसका निर्वाह कर रहे हैं. इसी कड़ी में कुल्लू शहर के रक्षक माने जाने वाले भगवान नरसिंह देवता की अलौकिक एवं भव्य जलेब यात्रा शुरू हो गई है.

आकर्षण का केंद्र रहने वाली नरसिंह भगवान की जलेब में भव्य नजारा नजर आया. इस दौरान कुल्लू शहर वाद्ययंत्रों की ध्वनि से गूंज उठा. इस जलेब को राजा की जलेब भी कहा जाता है, क्योंकि इस जलेब में कुल्लू का राजा परंपरा के अनुसार पालकी में सज-धज कर यात्रा करता है. कुल्लू का राजा महेश्वर सिंह इस विशेष प्रकार की पालकी में बैठकर परिक्रमा पर निकल पड़े हैं और यह जलेब पांच दिनों तक चलेगी.

वीडियो रिपोर्ट

दशहरा पर्व में आए सात देवी देवता

दशहरा पर्व में भाग लेने आए सैंकड़ों देवी-देवता बारी-बारी से भाग लेते थे, लेकिन इस बार सिर्फ सात देवी-देवता ही पर्व में बुलाए गए हैं. जलेब भी सूक्ष्म तौर पर कोविड-19 के नियमों के अनुसार आयोजित हुई है.

नरसिंह भगवान की घोड़ी

इस जलेब में जहां आगे नरसिंह भगवान की घोड़ी सज-धज कर चलती है. वहीं, राजा की पालकी के साथ दोनों तरफ देवता के रथ चलते रहे हैं. यह जलेब राजा की चनणी से शुरू होती है और पूरे ढालपुर की परिक्रमा करके चनणी के पास खत्म होती है.

दरअसल यह जलेब भगवान नरसिंह की मानी जाती है. राजा नरसिंह का प्रतिनिधि होने के नाते नरसिंह के रूप में इस पालकी में विराज मान होता है. यह जलेब पुराने समय में कानून व्यवस्था बनाए रखने और बुरी आत्माओं की कुदृष्टि से बचने के लिए चलती थी. यह परंपरा आज भी जीवित है. बता दें कि कुल्लू की देव संस्कृति अपनी अलग परंपरा के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है.

गौर रहे कि राजा की जलेब की परंपरा सदियों से चली आ रही हैं. जब से दशहरा पर्व शुरू हुआ तभी से यह परंपरा चली है. दशहरा पर्व में पुरातन समय में कुल्लू के राजाओं की जो भूमिका थी. वह आज भी उनके वंशज उसी तरह से पुरातन रीति रिवाजों व परंपरागत ढंग से निभा रहे हैं. यह परंपरा भी उसी दौरान 1651 ई. से शुरू हुई थी. जब यहां पर भगवान रघुनाथ के आगमन के बाद दशहरा पर्व शुरू हुआ था.

भगवान नरसिंह की जलेब चलना दशहरा पर्व में शुभ माना जाता है. उस दौरान भगवान नरसिंह की जलेब की परिक्रमा इसलिए होती थी, ताकि सुरक्षा का पूरा जायजा लिया जा सके. माना जाता है कि भगवान नरसिंह इस दौरान पूरे कुल्लू शहर की किलाबंदी कर देते हैं और अपनी शक्तियों से किसी भी बुरी आत्मा को देवनगरी में प्रवेश करने नहीं देते.

कुल्लूः विश्व के सबसे बड़े देव महा समागम अंतरराष्ट्रीय दशहरा पर्व में आज भी सैकड़ों वर्षों पुरानी परंपरा जिंदा है और लोग इसका निर्वाह कर रहे हैं. इसी कड़ी में कुल्लू शहर के रक्षक माने जाने वाले भगवान नरसिंह देवता की अलौकिक एवं भव्य जलेब यात्रा शुरू हो गई है.

आकर्षण का केंद्र रहने वाली नरसिंह भगवान की जलेब में भव्य नजारा नजर आया. इस दौरान कुल्लू शहर वाद्ययंत्रों की ध्वनि से गूंज उठा. इस जलेब को राजा की जलेब भी कहा जाता है, क्योंकि इस जलेब में कुल्लू का राजा परंपरा के अनुसार पालकी में सज-धज कर यात्रा करता है. कुल्लू का राजा महेश्वर सिंह इस विशेष प्रकार की पालकी में बैठकर परिक्रमा पर निकल पड़े हैं और यह जलेब पांच दिनों तक चलेगी.

वीडियो रिपोर्ट

दशहरा पर्व में आए सात देवी देवता

दशहरा पर्व में भाग लेने आए सैंकड़ों देवी-देवता बारी-बारी से भाग लेते थे, लेकिन इस बार सिर्फ सात देवी-देवता ही पर्व में बुलाए गए हैं. जलेब भी सूक्ष्म तौर पर कोविड-19 के नियमों के अनुसार आयोजित हुई है.

नरसिंह भगवान की घोड़ी

इस जलेब में जहां आगे नरसिंह भगवान की घोड़ी सज-धज कर चलती है. वहीं, राजा की पालकी के साथ दोनों तरफ देवता के रथ चलते रहे हैं. यह जलेब राजा की चनणी से शुरू होती है और पूरे ढालपुर की परिक्रमा करके चनणी के पास खत्म होती है.

दरअसल यह जलेब भगवान नरसिंह की मानी जाती है. राजा नरसिंह का प्रतिनिधि होने के नाते नरसिंह के रूप में इस पालकी में विराज मान होता है. यह जलेब पुराने समय में कानून व्यवस्था बनाए रखने और बुरी आत्माओं की कुदृष्टि से बचने के लिए चलती थी. यह परंपरा आज भी जीवित है. बता दें कि कुल्लू की देव संस्कृति अपनी अलग परंपरा के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है.

गौर रहे कि राजा की जलेब की परंपरा सदियों से चली आ रही हैं. जब से दशहरा पर्व शुरू हुआ तभी से यह परंपरा चली है. दशहरा पर्व में पुरातन समय में कुल्लू के राजाओं की जो भूमिका थी. वह आज भी उनके वंशज उसी तरह से पुरातन रीति रिवाजों व परंपरागत ढंग से निभा रहे हैं. यह परंपरा भी उसी दौरान 1651 ई. से शुरू हुई थी. जब यहां पर भगवान रघुनाथ के आगमन के बाद दशहरा पर्व शुरू हुआ था.

भगवान नरसिंह की जलेब चलना दशहरा पर्व में शुभ माना जाता है. उस दौरान भगवान नरसिंह की जलेब की परिक्रमा इसलिए होती थी, ताकि सुरक्षा का पूरा जायजा लिया जा सके. माना जाता है कि भगवान नरसिंह इस दौरान पूरे कुल्लू शहर की किलाबंदी कर देते हैं और अपनी शक्तियों से किसी भी बुरी आत्मा को देवनगरी में प्रवेश करने नहीं देते.

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