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9 महीने बाद खुला चंबा को लाहौल से जोड़ने वाला कुगती पास - कुगती दर्रा

लाहौल-स्पीति को चंबा से जोड़ने वाला 16,800 फीट ऊंचा कुगती दर्रा करीब नौ माह के बाद आवाजाही के लिए खुल गया है. अब इस रास्ते से चंबा के भेड़ पालक लाहौल की पहाड़ियों का रुख करेंगे.

Kugti pass connecting Lahaul and Chamba opened after 9 months
कुगति दर्रा
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Published : Jun 15, 2020, 12:52 PM IST

कुल्लूः जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति को चंबा से जोड़ने वाला 16,800 फीट ऊंचा कुगति दर्रा करीब नौ माह के बाद आवाजाही के लिए खुल गया है. अब इस रास्ते से चंबा के भेड़ पालक लाहौल की पहाड़ियों का रुख करेंगे.

वहीं, कुछ माह यहां रहने के बाद इसी रास्ते से ही चंबा के भेड़ पालक वापस भी लौट जाते हैं. गर्मियों में यह रास्ता जून से सितंबर तक यानी चार-पांच माह ही खुला रहता है. इस पैदल रास्ते से ज्यादातर चंबा के मणिमहेश जाने वाले श्रद्धालु और ट्रैकर करते है. यह रास्ता काफी जोखिम भरा है. मुश्किल रास्ता होने के बावजूद लोग यहां से होकर चार दिन बाद मणिमहेश झील पहुंचते हैं. मान्यता है कि इस ओर से पैदल यात्रा कर निकलने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना जरूरी पूरी होती हैं.

त्रिलोकनाथ में मनाए जाने वाले ऐतिहासिक पोरी मेले के समापन पर श्रद्धालुओं का एक बड़ा जत्था कुगती पास होकर ही मणिमहेश की ओर निकलता है. इस बार कोरोना संकटकाल के चलते इस रास्ते पर श्रद्धालुओं की आवाजाही पर संशय है. हालांकि अभी पोरी मेले का आयोजन किया जाना है. उसके बाद ही स्थानीय पंचायतें इस रास्ते से होकर मणिमहेश यात्रा के बारे में निर्णय लेगी.

कोरोना का संक्रमण नहीं फैला तो शायद मणिमहेश की यात्रा को अनुमति मिल सकती है. स्थानीय निवासी जोबरंग पंचायत के पूर्व प्रधान सोम देव योकी ने रास्ता खुलने की बात कही है. उन्होंने बताया कि यह रूट काफी जोखिम और थकावट भरा है. इसके बावजूद मणिमहेश के दर्शनों को निकले श्रद्धालुओं के आगे पहाड़ बौने पड़ जाते हैं.

पूर्व प्रधान सोम देव ने बताया कि दो-तीन दिन पहले चंबा के भेड़ पालकों ने कुगति पास पार कर लाहौल की पहाड़ियों का रुख किया है. उन्होंने बताया कि भेड़ पालक व ट्रैकिंग करने के शौकीनों के लिए भी यह दर्रा काफी प्रसिद्ध है. इस दर्रे के माध्यम से चंबा पहुंचने के लिए करीब 4 दिन का समय लगता है.

कुल्लूः जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति को चंबा से जोड़ने वाला 16,800 फीट ऊंचा कुगति दर्रा करीब नौ माह के बाद आवाजाही के लिए खुल गया है. अब इस रास्ते से चंबा के भेड़ पालक लाहौल की पहाड़ियों का रुख करेंगे.

वहीं, कुछ माह यहां रहने के बाद इसी रास्ते से ही चंबा के भेड़ पालक वापस भी लौट जाते हैं. गर्मियों में यह रास्ता जून से सितंबर तक यानी चार-पांच माह ही खुला रहता है. इस पैदल रास्ते से ज्यादातर चंबा के मणिमहेश जाने वाले श्रद्धालु और ट्रैकर करते है. यह रास्ता काफी जोखिम भरा है. मुश्किल रास्ता होने के बावजूद लोग यहां से होकर चार दिन बाद मणिमहेश झील पहुंचते हैं. मान्यता है कि इस ओर से पैदल यात्रा कर निकलने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना जरूरी पूरी होती हैं.

त्रिलोकनाथ में मनाए जाने वाले ऐतिहासिक पोरी मेले के समापन पर श्रद्धालुओं का एक बड़ा जत्था कुगती पास होकर ही मणिमहेश की ओर निकलता है. इस बार कोरोना संकटकाल के चलते इस रास्ते पर श्रद्धालुओं की आवाजाही पर संशय है. हालांकि अभी पोरी मेले का आयोजन किया जाना है. उसके बाद ही स्थानीय पंचायतें इस रास्ते से होकर मणिमहेश यात्रा के बारे में निर्णय लेगी.

कोरोना का संक्रमण नहीं फैला तो शायद मणिमहेश की यात्रा को अनुमति मिल सकती है. स्थानीय निवासी जोबरंग पंचायत के पूर्व प्रधान सोम देव योकी ने रास्ता खुलने की बात कही है. उन्होंने बताया कि यह रूट काफी जोखिम और थकावट भरा है. इसके बावजूद मणिमहेश के दर्शनों को निकले श्रद्धालुओं के आगे पहाड़ बौने पड़ जाते हैं.

पूर्व प्रधान सोम देव ने बताया कि दो-तीन दिन पहले चंबा के भेड़ पालकों ने कुगति पास पार कर लाहौल की पहाड़ियों का रुख किया है. उन्होंने बताया कि भेड़ पालक व ट्रैकिंग करने के शौकीनों के लिए भी यह दर्रा काफी प्रसिद्ध है. इस दर्रे के माध्यम से चंबा पहुंचने के लिए करीब 4 दिन का समय लगता है.

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