हमीरपुर: दक्षिण भारत में पाया जाने वाले लाल चंदन की खेती अब हिमाचल में संभव होगी. हिमाचल में अब तक सफेद चंदन ही उगाया जा रहा था, लेकिन अब उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी हमीरपुर के विशेषज्ञों ने संस्थान की नर्सरी में लाल चंदन उगाने में सफलता (red sandalwood farming in himachal ) हासिल की है. बेंगलुरु से लाल चंदन के बीज तैयार किया है. दर्जनों पौधों तैयार किया है. विशेषज्ञों के इन प्रयासों से अब देवभूमि हिमाचल के लाल चंदन से अब देश महकेगा. अब इन पौधों को नर्सरी से निकाल कर जमीन में रोपा जाएगा.
लाल चंदन के यह पौधे समुद्र तल से 750 मीटर तक की ऊंचाई वाले इलाकों में उग सकते हैं. ऐसे में हिमाचल के निचले क्षेत्रों में इसकी खेती की संभावना प्रबल है. सफेद चंदन के मुकाबले लाल चंदन को पैदा करने और इस्तेमाल करने का तरीका बेहद अलग है. बाजार में लाल चंदन की लकड़ी की कीमत हजारों रुपये प्रति किलो है. हिमाचल में वर्तमान में सफेद चंदन के पेड़ कांगड़ा और बिलासपुर जिले के जंगलों (Forest in Bilaspur) में पाए जाते हैं.
नेरी महाविद्यालय के विशेषज्ञों ने इससे पहले सफेद चंदन की उन्नत किस्म तैयार की थी, नेरी महाविद्यालय के इर्द गिर्द सफेद चंदन के जंगल भी संस्थान के प्रयासों से लहलहा रहे है. वहीं, अब लाल चंदन की खेती को बढ़ावा देने के लिए संस्थान के विशेषज्ञों ने कदम बढ़ा दिए हैं. हिमाचल के सबसे बड़े जिला कांगड़ा के शक्तिपीठ ज्वालामुखी में भी सैकड़ों चंदन के पौधे हैं, लेकिन हमीरपुर में नर्सरी विकसित होने के बाद अब प्रदेश के अन्य भागों में भी इसके पौधे लगाए जा सकेंगे. नेरी स्थित अनुसंधान केंद्र में कुछ वर्ष पहले कर्नाटक से लाए चंदन के पौधों पर रिसर्च शुरू हुई थी. डॉ. वाईएस परमार उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी के विशेषज्ञों ने अब उन्नत किस्म के पौधों की नर्सरी तैयार करने में सफलता हासिल की है. हालांकि लाल चंदन को अभी शुरुआती चरण में हिमाचल में उगाने का प्रयास संस्थान की ओर से किया गया है.
जहां-जहां सफेद चंदन वहां पर लाल चंदन की संभावना: हिमाचल प्रदेश में चंदन के पेड़ (Sandalwood Trees in Himachal Pradesh) कांगड़ा, बिलासपुर, हमीरपुर और सिरमौर जिलों में पाए जाते हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि इन जगहों पर लाल चंदन उगाने में कोई दिक्क्त नहीं होगी. बेशक दोनों के पौधों को उगाने का तरीका अलग है, लेकिन पर्यावरण दोनों को एक जैसा चाहिए होता है. कांगड़ा जिले की ज्वालामुखी घाटी में चंदन 30 से 35 हेक्टेयर व बिलासपुर जिले के चंगर सेक्टर में 10.15 हेक्टेयर में है. सिरमौर की पांवटा घाटी में भी चंदन के पेड़ हैं. चंदन का पेड़ शून्य से 45 डिग्री सेल्सियस तापमान में उगने की क्षमता रखता है. चंदन एक ऐसा पौधा है जिसे शुरुआती दिनों में दूसरे पौधों की मदद से तैयार किया जाता है. चंदन का पौधा 35 से 40 फीट ऊंचा होता है. एक एकड़ भूमि पर 300 पौधे तैयार किए जा सकते हैं.
जानवरों की उजाड़ से परेशान किसानों के लिए बेहतर विकल्प: चंदन के पेड़ में करीब 2 घन फीट लकड़ी तैयार होती है, जिसका वजन 15 से 20 किलोग्राम होता है. यह 600 से 1000 मीटर की ऊंचाई वाले इलाके में तैयार हो जाता है. एक एकड़ जमीन से 15 साल में 15 किलोग्राम प्रति पेड़ की दर से 300 पौधे से करीब ढाई करोड़ कमाए जा सकते हैं. हिमाचल के साथ ही देश भर में लगभग सभी राज्यों में जंगली जानवरों की वजह से किसान खेती छोड़ रहे हैं. ऐसे में चंदन एक बेहतर विकल्प बन सकता है. हिमाचल प्रदेश में अधिकतर जमीन पथरीली है या फिर उसमें सिंचाई का कोई साधन नहीं है. जंगली जानवर भी फसलों को तबाह कर रहे हैं. ऐसे में चंदन की खेती आमदनी का बेहतर स्रोत है. चंदन की खेती में जंगली जानवरों की उजाड़ का भी कोई डर नहीं है.
उगाने का तरीका अलग, पत्तियों से हो जाती है पहचान: उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी हमीरपुर के डीन डॉ. कमल शर्मा का कहना है कि लाल चंदन को सफेद चंदन के मुताबिक अनूकुल वातावरण (sandalwood plantation in himachal) में उगाया जा सकता है, हालांकि दोनों को उगाने का तरीका अलग है. सफेद चंदन का पौधा एक सेमी पैरासिटिक प्लांट है जोकि दूसरो पौधों की जड़ों से अपना पोषण प्राप्त करता है. शुरुआती के कुछ सालों में दूसरी पौधों की जड़ों से पोषण हासिल करने बाद यह पोषण खुद लेना शुरू करता है. दोनों की कीमत अलग है. लाल चंदन की लकड़ी सफेद चंदन के मुकाबले ज्यादा सुंदर होती है. सफेद चंदन ज्यादा खुशबूदार होता है. यह एक महंगी इमारती लकड़ी है.
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