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तिब्बत की आजादी के लिए संघर्ष करने वाली अमा आधे का निधन, मैक्लोडगंज में हुआ दाह संस्कार - धर्म गुरु दलाई लामा

चीन की जेलों में 27 वर्षों तक कैद काटने वाली 92 वर्षीय तिब्बती महिला अमा आधे का सोमवार को मैक्लोडगंज में निधन हो गया. अमा आधे ने चीन के कब्जे वाले तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन का जमकर विरोध किया. साथ ही तिब्बत की आजादी के लिए जमकर लड़ाई लड़ी थी.

Ama adhe passed away at Mcleodganj on Monday
तिब्बती महिला अमा आधे
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Published : Aug 4, 2020, 10:59 AM IST

धर्मशाला/कांगड़ाः धर्मशाला के मैक्लोडगंज में तिब्बती समुदाय के लोग बसते हैं. धर्म गुरु दलाई लामा के साथ बहुत से लोग यहां आए थे, जिसमें एक थी अमा आधे. बता दें कि चीन की जेलों में 27 वर्षों तक कैद काटने वाली 92 वर्षीय तिब्बती महिला अमा आधे का सोमवार को मैक्लोडगंज में निधन हो गया.

अमा आधे ने चीन के कब्जे वाले तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन का जमकर विरोध किया. साथ ही तिब्बत की आजादी के लिए जमकर लड़ाई लड़ी थी. गर्भवती होने के दौरान भी उन्होंने चीन सरकार के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखा था.

गर्भावस्था में ही उनको चीन सरकार ने जेल में कैद कर दिया था. अमा आधे की मृत्यु अधिक उम्र होने के कारण हुई है. उन्हें कोई बड़ी स्वास्थ्य संबंधी समस्या नहीं थी. 1928 में पूर्वी तिब्बत में एक खानाबदोश परिवार में जन्मी अमा आधे ने 1950 में तिब्बत पर चीनी आक्रमण के बाद अपना संघर्ष चरम पर पहुंचाया.

1954 में जब उनका पहला बच्चा एक वर्ष का था और वह गर्भवती भी थी, तो उनके पति की जहर खाने से मृत्यु हो गई. इसके बाद वह खापों के तिब्बती प्रतिरोध में शामिल हो गईं. 1958 में उन्हें गिरफ्तार किया गया और दो छोटे बच्चों से वे अलग हो गई.

चीन की जेलों में उन्हें 27 साल की कैद के दौरान प्रताड़ित किया गया. वह 1985 में कैद से छूटी और 1987 में भारत भाग आईं. यहां पर उन्होंने दलाईलामा की शरण में मैक्लोडगंज को अपना घर बना लिया.अमा आधे ने अपनी जीवन की कहानी को एक पुस्तक 'अमा आधे द वायस दैट रिमेंबर्स' प्रकाशित की जो 1997 में प्रकाशित हुई. मैक्लोडगंज में अमा आधे का दाह संस्कार किया गया.

ये भी पढ़ेंः हमीरपुर के ये चार गांव बने कंटेनमेंट जोन, रहेंगी ये पाबंदियां

धर्मशाला/कांगड़ाः धर्मशाला के मैक्लोडगंज में तिब्बती समुदाय के लोग बसते हैं. धर्म गुरु दलाई लामा के साथ बहुत से लोग यहां आए थे, जिसमें एक थी अमा आधे. बता दें कि चीन की जेलों में 27 वर्षों तक कैद काटने वाली 92 वर्षीय तिब्बती महिला अमा आधे का सोमवार को मैक्लोडगंज में निधन हो गया.

अमा आधे ने चीन के कब्जे वाले तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन का जमकर विरोध किया. साथ ही तिब्बत की आजादी के लिए जमकर लड़ाई लड़ी थी. गर्भवती होने के दौरान भी उन्होंने चीन सरकार के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखा था.

गर्भावस्था में ही उनको चीन सरकार ने जेल में कैद कर दिया था. अमा आधे की मृत्यु अधिक उम्र होने के कारण हुई है. उन्हें कोई बड़ी स्वास्थ्य संबंधी समस्या नहीं थी. 1928 में पूर्वी तिब्बत में एक खानाबदोश परिवार में जन्मी अमा आधे ने 1950 में तिब्बत पर चीनी आक्रमण के बाद अपना संघर्ष चरम पर पहुंचाया.

1954 में जब उनका पहला बच्चा एक वर्ष का था और वह गर्भवती भी थी, तो उनके पति की जहर खाने से मृत्यु हो गई. इसके बाद वह खापों के तिब्बती प्रतिरोध में शामिल हो गईं. 1958 में उन्हें गिरफ्तार किया गया और दो छोटे बच्चों से वे अलग हो गई.

चीन की जेलों में उन्हें 27 साल की कैद के दौरान प्रताड़ित किया गया. वह 1985 में कैद से छूटी और 1987 में भारत भाग आईं. यहां पर उन्होंने दलाईलामा की शरण में मैक्लोडगंज को अपना घर बना लिया.अमा आधे ने अपनी जीवन की कहानी को एक पुस्तक 'अमा आधे द वायस दैट रिमेंबर्स' प्रकाशित की जो 1997 में प्रकाशित हुई. मैक्लोडगंज में अमा आधे का दाह संस्कार किया गया.

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