चंडीगढ़: संसद के मानसून सत्र में सदन में पेश हुए कृषि बिलों पर देश में बवाल मचा है. इन बिलों का चौतरफा विरोध देखने को मिल रहा है. कृषि बिलों को लेकर हरियाणा की राजनीति भी अपना रुख बदल रही है. सत्तासीन बीजेपी और जेजेपी किसानों पर हुए लाठीचार्ज को लेकर अलग-अलग रास्ता पकड़ चुकी हैं. जेजेपी ये कह रही है कि किसानों पर जो लाठियां चलीं वो देवीलाल के परिवार पर चली हैं और इसकी जांच होनी चाहिए. तो गृह मंत्री अनिल विज ये कहते हैं कि जब लाठीचार्ज हुआ ही नहीं तो जांच किस बात की.
जेजेपी पर बढ़ा राजनीतिक दबाव
पंजाब अकाली दल की नेता और मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर के इस्तीफे के बाद जेजेपी पर राजनीतिक दबाव बढ़ने लगा है. कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि अगर जेजेपी किसानों के हितों को समझती तो बीजेपी से समर्थन वापस ले लेती, लेकिन इनको किसानों से कोई सरोकार नहीं है.
जेजेपी पर सिर्फ राजनीतिक दबाव ही नहीं बल्कि किसानों की तरफ से भी जवाबदेही का बोझ बढ़ता जा रहा है. भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के इस्तीफे की मांग की है. उन्होंने कहा कि दुष्यंत चौटाला को शर्म आनी चाहिए.
क्या मानते हैं राजनीतिक जानकार ?
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस समय जेजेपी पर सबसे ज्यादा दबाव है, क्योंकि ये वो पार्टी है जो खुद को किसान हितैषी बताती है और देवीलाल के नाम पर राजनीति करती है. लेकिन सवाल ये है कि क्या इस दबाव से जेजेपी और बीजेपी के रिश्तों पर कोई असर पड़ेगा या नहीं ?
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10 सितंबर को कुरुक्षेत्र के पीपली में किसानों पर जो लाठीचार्ज हुआ, उसने दो सहयोगी पार्टियों को आमने-सामने लाकर खड़ा कर दिया. कृषि अध्यादेशों पर बीजेपी और जेजेपी एक साथ होने का दावा जरूर कर रही है, लेकिन किसानों पर हुए लाठीचार्ज को लेकर मतभेद बरकरार है. अब देखने वाली बात होगी कि ये मतभेद इन दोनों दलों के रिश्तों को कितना खट्टा करता है ?