चंडीगढ़: हरियाणा सरकार ने राशन कार्ड धारकों को लेकर जून महीने के लिए बड़ा फैसला लिया है. सरकारी डिपो पर जून महीने में राशन कार्ड धारकों को सरसों का तेल नहीं मिलेगा. बताया जा रहा है कि सरकार ने ये फैसला इसलिए लिया है क्योंकि सरकार के पास तेल निकालने के लिए सरसों ही नहीं है. दरअसल, इस बार सरसों की सरकारी खरीद हुई ही नहीं और किसानों ने प्राइवेट मंडियों में सरसों बेची. ऐसे में सरकार के पास तेल निकालने के लिए सरसों नहीं है. यही कारण है कि जून के महीने में सरकार ने पीडीएस से सरसों के तेल का वितरण रोक दिया है.
सरसों पर बवाल शुरू
इधर सरकार ने पीडीएस से सरसों के तेल का वितरण रोका और उधर विपक्ष ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया. नेता विपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि पहले दाल बंद की, उसके बाद गैस सिलेंडर पर मिलने वाली सब्सिडी खत्म की और अब जून महीने से उनको राशन कार्ड पर सरसों का तेल (mustard oil) देना भी बंद कर दिया.
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हुड्डा यहीं नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा कि इस बार सरसों की रिकॉर्ड पैदावार के बावजूद सरकार गरीबों को खाद्य तेल उपलब्ध नहीं करवा पा रही है. ऐसे में सरकार की कल्याणकारी नीति पर आश्रित परिवारों को बाजार से महंगे रेट में सरसों का तेल खरीदना पड़ेगा. सरसों तेल के दाम इस वक्त रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं.
कोरोना संकट और महंगाई
कोरोना संकट के बीच जनता को बढ़ती महंगाई और ज्यादा सता रही है. सरसों का तेल 210, 215 और 220 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बिक रहा है. अब जब राशन कार्ड धारकों को डिपो पर तेल नहीं मिलेगा, तो उन्हें भी बाजार से महंगे दामों पर तेल खरीदना होगा. ऐसे में कोरोना संकट के बीच ये महंगाई की मार भी लोगों को झेलनी होगी. बता दें कि सरसों का रेट पहले 130 रुपये प्रति लीटर था, जो अब 220 रुपये तक जा चुका है.
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हरियाणा में पहली बार हुई सरसों की प्राइवेट खरीद
बता दें, हरियाणा में इस साल सरसों की खरीद निजी व्यापारियों द्वारा की गई. अधिकतर किसानों ने अपनी सरसों की फसल प्राइवेट सेक्टर में बेची. इसके पीछे एक मुख्य कारण ये है कि सरकार द्वारा सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,650 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया था, लेकिन निजी खरीदारों ने 5500-6000 हजार रुपये तक सरसों खरीदी.