चंडीगढ़: आधुनिक समय में जहां जनजीवन तेज रफ्तार पकड़ रहा है. वहीं दिन भर की भागदौड़ के बीच लोगों के साथ कुछ ऐसे हादसे हो जाते हैं, जिसके बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होता है. इसमें स्ट्रोक और अचानक चलते हुए लड़खड़ाकर गिर जाने वाले वाली समस्या शामिल हैं, जिसे आम भाषा में दौरा या अधरंग भी कहा जाता है. जिससे उस मरीज के शरीर का कुछ भाग बेजान हो जाता है. ऐसे मरीजों को अपने शरीर को समझने और उसे ठीक करने में बायोफीडबैक तकनीक काफी मददगार साबित हो रही है.
बायोफीडबैक तकनीक का इस्तेमाल भारत में सिर्फ 10 बड़े स्वास्थ्य संस्थानों में ही किया जा रहा है. जिनमें चंडीगढ़ पीजीआईएमआर भी शामिल है. फिजिकल मेडिसिन रिहैबिलिटेशन विभाग पीजीआई में पुनर्वास विभाग की डॉ. सौम्या सक्सेना ने बताया कि बायोफीडबैक तकनीक के साथ समस्या के कारणों को तलाश कर उसे दूर किया जाता है.
बायोफीडबैक तकनीक से स्वस्थ हुए 50 मरीज: बायोफीडबैक तकनीक की मदद से उन मरीजों का इलाज किया जा रहा है जो लंबे समय से सीधा चलने में असमर्थ हैं या शरीर के एक हिस्से के काम न करने के चलते कुछ नहीं कर पाते हैं. डॉ. सौम्या सक्सेना ने बताया कि इस समस्या से संबंधित 50 से अधिक मरीजों की समस्या का समाधान इस मशीन द्वारा किया गया है.
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वहीं मौजूदा समय में भी 20 मरीजों पर बायोफीडबैक तकनीक का प्रयोग कर शोध में उनकी समस्या का समाधान तलाशने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने बताया कि ऐसे मरीजों का चयन किया गया है जिनका अपनी चाल पर नियंत्रण नहीं था. बायोफीडबैक एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग कर व्यक्ति अपने शरीर के कुछ कार्यों को नियंत्रित करना सीखने के लिए कर सकते हैं. जैसे कि हृदय गति और कमजोर शरीर के आकलन को इस मशीन से मापा जाता है.
बायोफीडबैक तकनीक से मरीजों का इलाज: बायोफीडबैक के दौरान व्यक्ति इलेक्ट्रिकल सेंसर से जुड़ा होता है, जो शरीर के बारे में जानकारी प्राप्त करने में सहायक होता है. बायोफीडबैक सिस्टम के जरिए बैलेंस सिस्टम तकनीक का इस्तेमाल अधिक किया जाता है. इस प्रक्रिया में एक मरीज पर 15 मिनट लगाए जाता है. इसमें एक मरीज को 60 सेकंड के लिए आंखों को खोलकर खड़ा और 60 सेकंड दोनों आंखों को बंद करके खड़ा किया जाता.
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इसके बाद मरीज को 3 मिनट तक आंखों को खोलकर खड़ा किया जाता है. वहीं बैलेंस सिस्टम में मरीजों को दाएं और बाएं दोनों ही तरफ अपने शरीर का संतुलन बनाने को कहा जाता है. ऐसे में मरीज अपने शरीर के आगे और पीछे के संतुलित को खुद स्क्रीन पर भी देख सकता है. बैलेंस सिस्टम प्रक्रिया को तीन बार दोहराया जाता है.
ऐसे काम करती है बायोफीडबैक तकनीक: बैलेंस सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए किसी मरीज को पूरी तरह ठीक कर पाना मुश्किल होगा लेकिन उसे पहले की स्थिति के मुकाबले सही स्थिति में लाना इस मशीन का काम होता है. इसमें 11 से 12 हफ्तों का समय लग सकता है. वहीं, यह प्रक्रिया एक मरीज पर 15 मिनट तक की जाती है. ऐसे में मरीज को हफ्ते में दो बार बुलाया जाता है.
यह तकनीक स्ट्रोक से संबंधित मरीजों के लिए इस्तेमाल की जाती है क्योंकि स्ट्रोक के मरीजों का कुछ हिस्सा बेजान हो जाता है और काम करना बंद कर देता है. ऐसे में मरीज अपने सही वाले हिस्से पर अधिक जोर डालता है जिसके चलते कमजोर हिस्से पर काम करना शरीर बंद कर देता है. बैलेंस सिस्टम और बायोफीडबैक तकनीक के साथ उस मरीज के कमजोर हिस्से को नापा जाता है.