आज की प्रेरणा- परम सत्य जड़ तथा चलायमान समस्त जीवों के बाहर तथा भीतर स्थित हैं

🎬 Watch Now: Feature Video

thumbnail
परमात्मा समस्त इन्द्रियों के मूल स्त्रोत हैं, फिर भी वे इन्द्रियों से रहित हैं. वे प्रकृति के गुणों के परे हैं, फिर भी वे भौतिक प्रकृति के समस्त गुणों के स्वामी हैं. पंच महाभूत, बुद्धि, दसों इन्द्रियाँ तथा मन, पांच इन्द्रिय विषय, जीवन के लक्षण तथा धैर्य - इन सब को संक्षेप में कर्म का क्षेत्र तथा उसकी अन्तः क्रियाएं विकार कहा जाता है. परम सत्य जड़ तथा चलायमान समस्त जीवों के बाहर तथा भीतर स्थित हैं. सूक्ष्म होने के कारण वे भौतिक इन्द्रियों के द्वारा जानने या देखने से परे हैं. यद्यपि वे अत्यन्त दूर रहते हैं, किन्तु हम सबों के निकट भी हैं .परमात्मा प्रकाशमान वस्तुओं के प्रकाशस्त्रोत हैं. वे भौतिक अंधकार से परे हैं और अगोचर हैं. वे ज्ञान हैं, ज्ञेय हैं और ज्ञान के लक्ष्य हैं. वे सबके हृदय में स्थित हैं. प्रकृति तथा जीवों को अनादि समझना चाहिए. उनके विकार तथा गुण प्रकृतिजन्य हैं. प्रकृति समस्त भौतिक कारणों तथा कार्यों तथा परिणामों हेतु कही जाती है, और जीव (पुरुष) इस संसार में विविध सुख-दुख के भोग का कारण कहा जाता है. इस शरीर में एक दिव्य भोक्ता है, जो ईश्वर है, परम स्वामी है और साक्षी तथा अनुमति देने वाले के रूप में विद्यमान है और जो परमात्मा कहलाता है. जो व्यक्ति प्रकृति, जीव तथा प्रकृति के गुणों की अन्तःक्रिया से सम्बन्धित परमात्मा की विचारधारा को समझ लेता है, उसे मुक्ति की प्राप्ति सुनिश्चित है, उसकी वर्तमान स्थिति चाहे जैसी हो. कुछ लोग परमात्मा को ध्यान के द्वारा अपने भीतर देखते हैं, तो दूसरे लोग ज्ञान के अनुशीलन द्वारा और कुछ ऐसे हैं जो निष्काम कर्मयोग द्वारा देखते हैं.चर तथा अचर जो भी अस्तित्व में दिख रहा है, वह कर्मक्षेत्र तथा क्षेत्र के ज्ञाता का संयोग मात्र है. जो यद्यपि आध्यात्मिक ज्ञान से अवगत नहीं होते परन्तु परम पुरुष के विषय में प्रामाणिक पुरुषों से सुनकर उनकी पूजा करने लगते हैं, जन्म तथा मृत्यु पथ को पार कर जाते हैं.
Last Updated : Feb 3, 2023, 8:19 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

author-img

...view details

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.