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वीआर-निर्देशित माइंडफुल ब्रिदिंग दर्द में दिला सकती है राहत : शोध

कंप्यूटर आधारित काल्पनिक दुनिया प्रस्तुत करने वाली “विजुअल रिएलिटी” (VR) तकनीक का श्वास व्यायामों (माइंडफुल ब्रिदिंग) में उपयोग, कुछ मामलों में शरीर के दर्द में राहत दिला सकता है. हाल ही में हुए एक शोध के नतीजों में यह बात सामने आई है.

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माइंडफुल ब्रिदिंग
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Published : Oct 26, 2021, 4:06 PM IST

माइंडफुल ब्रिदिंग, जिसमें श्वास लेने के पैटर्न पर विशेष ध्यान दिया जाता है, कुछ मामलों में शरीर के दर्द में राहत दिला सकती है. आमतौर पर सामान्य तरीके से की गई इस प्रक्रिया में लोगों को लंबे समय तक अपना ध्यान बनाए रखने में परेशानी आती है. लेकिन हाल ही में हुए एक अध्ययन से पता चलता है कि माइंडफुल ब्रिदिंग के दौरान वीआर यानी “विजुअल रिएलिटी” तकनीक का इस्तेमाल, न सिर्फ श्वास व्यायाम में बल्कि ध्यान केंद्रित करने में भी बेहतर नतीजे देता है .

माइंडफुल ब्रिदिंग में वीआर तकनीक से होने वाले फ़ायदों को लेकर किए गए इस शोध में शोधकर्ताओं ने जाना कि हालांकि वीआर-निर्देशित ब्रीदिंग से दर्द सहने की क्षमता में वैसी ही वृद्धि हुई है जैसी पारंपरिक माइंडफुल ब्रीदिंग में होती है, लेकिन वीआर के इस्तेमाल से न सिर्फ ब्रीदिंग की प्रक्रिया बेहतर हुई बल्कि उनके ज्यादा बेहतर परिणाम भी नजर आए.

क्या है माइंडफुल ब्रिदिंग और उसके फायदे

गौरतलब है की अक्सर तीव्र और पुराने दर्द के इलाज के लिए चिकित्सक ओपिओइड (दवाई) लिखते हैं. लेकिन इन दवाइयों का लंबे समय तक उपयोग शरीर पर पार्श्व प्रभाव भी डाल सकता है. ऐसे में दर्द से छुटकारा पाने या उनमें कमी लाने के लिए ऐसे उपचारों का चयन ज्यादा बेहतर होता है जिसमें दवाइयों का इस्तेमाल ज्यादा ना हो. इसी के चलते पिछले कुछ समय में लोगों में माइंडफुल मेडिटेशन या ब्रिदिंग का चलन बढ़ा है. इस संबंध में पूर्व में किए गए कई अध्ययनों से भी पता चला है कि ध्यान से और सही तरीके से सांस लेने पर शरीर पर एनाल्जेसिक यानी दर्द निवारक प्रभाव पड़ते हैं.

माइंडफुल ब्रीदिंग में व्यक्ति ध्यान केंद्रित करते हुए निर्धारित गति या संख्या आधारित गति पर गहरी सांस लेते, रोकते तथा छोड़ते हैं. शुरुआत में इस तरह की श्वास लेने की प्रक्रिया सरल नही होती हैं क्योंकि लंबी अवधि तक साँसों की गति को नियंत्रित करना सरल नही होता है. ऐसे में लोगों को ध्यान केंद्रित करने में समस्या आ सकती है.

कैसे है वीआर निर्देशित ब्रीदिंग फायदेमंद

शोध के नतीजों में शोधकर्ताओं ने बताया है की वीआर तकनीक लोगों को कंप्यूटर जनित काल्पनिक दुनिया में ले जाती है जो उनके संवेदी अंगों यानी सेंसरी सिस्टम को प्रभावित करती है और उससे उत्पन्न उत्तेजना उनके दर्द को कम करने में मदद करती है.

जर्नल ऑफ मेडिकल इंटरनेट रिसर्च में प्रकाशित इस अध्ययन में वीआर के एनाल्जेसिक (दर्द निवारक) प्रभावों की जांच के लिए मस्तिष्क इमेजिंग का उपयोग किया था . जिसमें शोधकर्ताओं ने स्वस्थ व्यक्तियों के मस्तिष्क की सक्रियता के पैटर्न के आधार पर पारंपरिक रूप से श्वास लेने वाले व्यक्तियों की तुलना उन लोगों से की जो वीआर- निर्देशित श्वास प्रणाली का अभ्यास करते थे.

यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन में प्रोफेसर तथा शोध के प्रमुख लेखक डॉ एलेक्जेंडर डासेल्वा बताते हैं की इस अध्धयन के नतीजों में पाया गया की एक सप्ताह तक दोनों तरह की श्वास प्रणाली का अभ्यास करने वाले प्रतिभागियों में माइंडफुल ब्रिदिंग के उपरांत मस्तिष्क की सक्रियता के अलग-अलग पैटर्न नजर आए, लेकिन दर्द में कमी दोनों ही प्रकारों में देखी गई.

उन्होंने बताया कि "पारंपरिक माइंडफुल ब्रिदिंग में प्रतिभागियों के दिमाग के अग्र भाग में हुई संवेदनाओं पर ध्यान केंद्रित होने पर दर्द में कमी आई थी वहीं वीआर ब्रीदिंग ग्रुप में, दिमाग से अधिक संवेदी अंगों के प्रभावित होने से दर्द में कमी देखी गई थी . यानी सामान्य श्वास तकनीक में आंतरिक संवेदनाओं पर मन को केंद्रित करके तथा वीआर-निर्देशित श्वास में बाहरी संवेदनाओं पर ध्यान केंद्रित होने पर दर्द में कमी देखी गई. शोध में यह भी सामने आया है कि वीआर तकनीक की मदद लेने वाले लोगों में लंबे समय तक दर्द निवारण में इसके फायदे नजर आ सकते हैं.

प्रयोगिक व्यवस्था

इस शोध में 40 स्वस्थ वयस्कों को शामिल किया गया. जिन्होंने 7 दिनों के लिए पारंपरिक या वीआर- निर्देशित माइंडफुल ब्रीदिंग का अभ्यास किया था. इनमें पारंपरिक माइंडफुल ब्रीदिंग ग्रुप और वीआर माइंडफुल ब्रीदिंग ग्रुप ने पहले और सातवें दिन लैब में अपनी-अपनी सांस लेने की तकनीक का प्रदर्शन किया. बाकी के 5 दिनों के दौरान उन्होंने घर पर ही सांस लेने की अपनी दिनचर्या का पालन किया . प्रयोगशाला में पहले और सातवें दिन सांस लेने की क्रिया पूरी होने के बाद शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों के दर्द की सीमा को मापने के लिए एक परीक्षण किया. जिसमें उन्होंने प्रतिभागियों के सांस लेने के व्यायाम और उसके दर्द पर प्रभाव को लेकर प्रतिभागियों की मस्तिष्क गतिविधि को रिकॉर्ड किया. जिसके लिए शोधकर्ताओं ने एफ.एन.आई.आर.एस (FNIRS) नामक एक इमेजिंग तकनीक का उपयोग करके मस्तिष्क गतिविधि के स्तर में परिवर्तन को ट्रैक किया.

जिसके परिणामों से पता चला कि पारंपरिक माइंडफुल ब्रीदिंग और वीआर-निर्देशित माइंडफुल ब्रीदिंग मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों के बीच दर्द सहने की सीमा को बढ़ाने के लिए अलग-अलग तरीके से गतिविधि को नियंत्रित करते हैं.

पढ़ें: शरीर को निरोगी तथा आयु को लंबा करता है प्राणायाम

माइंडफुल ब्रिदिंग, जिसमें श्वास लेने के पैटर्न पर विशेष ध्यान दिया जाता है, कुछ मामलों में शरीर के दर्द में राहत दिला सकती है. आमतौर पर सामान्य तरीके से की गई इस प्रक्रिया में लोगों को लंबे समय तक अपना ध्यान बनाए रखने में परेशानी आती है. लेकिन हाल ही में हुए एक अध्ययन से पता चलता है कि माइंडफुल ब्रिदिंग के दौरान वीआर यानी “विजुअल रिएलिटी” तकनीक का इस्तेमाल, न सिर्फ श्वास व्यायाम में बल्कि ध्यान केंद्रित करने में भी बेहतर नतीजे देता है .

माइंडफुल ब्रिदिंग में वीआर तकनीक से होने वाले फ़ायदों को लेकर किए गए इस शोध में शोधकर्ताओं ने जाना कि हालांकि वीआर-निर्देशित ब्रीदिंग से दर्द सहने की क्षमता में वैसी ही वृद्धि हुई है जैसी पारंपरिक माइंडफुल ब्रीदिंग में होती है, लेकिन वीआर के इस्तेमाल से न सिर्फ ब्रीदिंग की प्रक्रिया बेहतर हुई बल्कि उनके ज्यादा बेहतर परिणाम भी नजर आए.

क्या है माइंडफुल ब्रिदिंग और उसके फायदे

गौरतलब है की अक्सर तीव्र और पुराने दर्द के इलाज के लिए चिकित्सक ओपिओइड (दवाई) लिखते हैं. लेकिन इन दवाइयों का लंबे समय तक उपयोग शरीर पर पार्श्व प्रभाव भी डाल सकता है. ऐसे में दर्द से छुटकारा पाने या उनमें कमी लाने के लिए ऐसे उपचारों का चयन ज्यादा बेहतर होता है जिसमें दवाइयों का इस्तेमाल ज्यादा ना हो. इसी के चलते पिछले कुछ समय में लोगों में माइंडफुल मेडिटेशन या ब्रिदिंग का चलन बढ़ा है. इस संबंध में पूर्व में किए गए कई अध्ययनों से भी पता चला है कि ध्यान से और सही तरीके से सांस लेने पर शरीर पर एनाल्जेसिक यानी दर्द निवारक प्रभाव पड़ते हैं.

माइंडफुल ब्रीदिंग में व्यक्ति ध्यान केंद्रित करते हुए निर्धारित गति या संख्या आधारित गति पर गहरी सांस लेते, रोकते तथा छोड़ते हैं. शुरुआत में इस तरह की श्वास लेने की प्रक्रिया सरल नही होती हैं क्योंकि लंबी अवधि तक साँसों की गति को नियंत्रित करना सरल नही होता है. ऐसे में लोगों को ध्यान केंद्रित करने में समस्या आ सकती है.

कैसे है वीआर निर्देशित ब्रीदिंग फायदेमंद

शोध के नतीजों में शोधकर्ताओं ने बताया है की वीआर तकनीक लोगों को कंप्यूटर जनित काल्पनिक दुनिया में ले जाती है जो उनके संवेदी अंगों यानी सेंसरी सिस्टम को प्रभावित करती है और उससे उत्पन्न उत्तेजना उनके दर्द को कम करने में मदद करती है.

जर्नल ऑफ मेडिकल इंटरनेट रिसर्च में प्रकाशित इस अध्ययन में वीआर के एनाल्जेसिक (दर्द निवारक) प्रभावों की जांच के लिए मस्तिष्क इमेजिंग का उपयोग किया था . जिसमें शोधकर्ताओं ने स्वस्थ व्यक्तियों के मस्तिष्क की सक्रियता के पैटर्न के आधार पर पारंपरिक रूप से श्वास लेने वाले व्यक्तियों की तुलना उन लोगों से की जो वीआर- निर्देशित श्वास प्रणाली का अभ्यास करते थे.

यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन में प्रोफेसर तथा शोध के प्रमुख लेखक डॉ एलेक्जेंडर डासेल्वा बताते हैं की इस अध्धयन के नतीजों में पाया गया की एक सप्ताह तक दोनों तरह की श्वास प्रणाली का अभ्यास करने वाले प्रतिभागियों में माइंडफुल ब्रिदिंग के उपरांत मस्तिष्क की सक्रियता के अलग-अलग पैटर्न नजर आए, लेकिन दर्द में कमी दोनों ही प्रकारों में देखी गई.

उन्होंने बताया कि "पारंपरिक माइंडफुल ब्रिदिंग में प्रतिभागियों के दिमाग के अग्र भाग में हुई संवेदनाओं पर ध्यान केंद्रित होने पर दर्द में कमी आई थी वहीं वीआर ब्रीदिंग ग्रुप में, दिमाग से अधिक संवेदी अंगों के प्रभावित होने से दर्द में कमी देखी गई थी . यानी सामान्य श्वास तकनीक में आंतरिक संवेदनाओं पर मन को केंद्रित करके तथा वीआर-निर्देशित श्वास में बाहरी संवेदनाओं पर ध्यान केंद्रित होने पर दर्द में कमी देखी गई. शोध में यह भी सामने आया है कि वीआर तकनीक की मदद लेने वाले लोगों में लंबे समय तक दर्द निवारण में इसके फायदे नजर आ सकते हैं.

प्रयोगिक व्यवस्था

इस शोध में 40 स्वस्थ वयस्कों को शामिल किया गया. जिन्होंने 7 दिनों के लिए पारंपरिक या वीआर- निर्देशित माइंडफुल ब्रीदिंग का अभ्यास किया था. इनमें पारंपरिक माइंडफुल ब्रीदिंग ग्रुप और वीआर माइंडफुल ब्रीदिंग ग्रुप ने पहले और सातवें दिन लैब में अपनी-अपनी सांस लेने की तकनीक का प्रदर्शन किया. बाकी के 5 दिनों के दौरान उन्होंने घर पर ही सांस लेने की अपनी दिनचर्या का पालन किया . प्रयोगशाला में पहले और सातवें दिन सांस लेने की क्रिया पूरी होने के बाद शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों के दर्द की सीमा को मापने के लिए एक परीक्षण किया. जिसमें उन्होंने प्रतिभागियों के सांस लेने के व्यायाम और उसके दर्द पर प्रभाव को लेकर प्रतिभागियों की मस्तिष्क गतिविधि को रिकॉर्ड किया. जिसके लिए शोधकर्ताओं ने एफ.एन.आई.आर.एस (FNIRS) नामक एक इमेजिंग तकनीक का उपयोग करके मस्तिष्क गतिविधि के स्तर में परिवर्तन को ट्रैक किया.

जिसके परिणामों से पता चला कि पारंपरिक माइंडफुल ब्रीदिंग और वीआर-निर्देशित माइंडफुल ब्रीदिंग मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों के बीच दर्द सहने की सीमा को बढ़ाने के लिए अलग-अलग तरीके से गतिविधि को नियंत्रित करते हैं.

पढ़ें: शरीर को निरोगी तथा आयु को लंबा करता है प्राणायाम

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