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Teething problems in children : टीथिंग की प्रक्रिया में राहत दिला सकते हैं ये उपाय और सावधानियां

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Published : Feb 24, 2023, 8:00 PM IST

Updated : Feb 24, 2023, 8:05 PM IST

बच्चों में दांत निकलना (टीथिंग) एक परेशानी भरा समय होता है. टीथिंग के दौरान उन्हें मसूड़ों से जुड़ी परेशानियों का तो सामना करना ही पड़ता है बल्कि इस समय कई कारणों से भी बच्चे कुछ अन्य समस्याओं को लेकर काफी संवेदनशील हो जाते हैं. इस परेशानियों को कम करने में कुछ सावधानियां या उपाय काफी लाभकारी हो सकते हैं.

dental problems in children
बच्चों पर दांत की समस्या

नई दिल्लीः बच्चे के जन्म के लगभग 5-6 महीने के बाद से उसके दांत निकलने शुरू हो जाते हैं. छोटे बच्चों के दांत निकलना बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि उनके परिजनों के लिए भी एक परेशानी भरा समय होता है. क्योंकि इस दौरान ज्यादातर बच्चों को पेट की गड़बड़ी, बुखार, मसूड़ों में दर्द तथा कुछ अन्य परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है. वहीं इस दौरान परेशानियों के चलते ज्यादातर बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैं और ज्यादा रोने लगते हैं.

दांत निकलने के दौरान यदि बच्चे ज्यादा परेशान होने लगते हैं तो ये कुछ उपाय तथा सावधानियां है जिनका यदि ध्यान रखा जाए तो बच्चों में इस अवधि में होने वाली परेशानियों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. दांत निकलने की प्रक्रिया के दौरान आम तौर पर बच्चों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है और कैसे उन परेशानियों को कम किया जा सकता है, साथ ही उनके ओरल हाइजीन को कैसे दुरुस्त रखा जा सकता है, इस बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखी भव ने बेंगलुरु के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. टीएस राव से जानकारी ली.

टीथिंग में बढ़ जाती है बच्चों की परेशानियां
डॉ. राव बताते हैं कि दांत निकलने या टीथिंग की अवधि कुछ बच्चों में काफी परेशानी भरी हो सकती है. हालांकि कुछ बच्चों में यह समय सरलता से बेहद मामूली परेशानियों के साथ भी बीत जाता है. वह बताते हैं कि टीथिंग की शुरुआत से पहले से ही बच्चों के मसूड़ों में खुजली, दर्द और कई बार सूजन होने लगती है. मसूड़ों की त्वचा से दांत एक बार में बाहर नहीं आते हैं बल्कि यह धीमी प्रक्रिया हैं जिसमें कुछ दिन लगते हैं. ऐसे में मसूड़ों में दांत निकलते समय होने वाली असहजता भी तत्काल ठीक नहीं होती है.

बच्चों के दांत निकलने की शुरुआत से लेकर पूरी तरह से उनके दांत निकलने के बीच, जिस समय त्वचा से दांत बाहर निकलना शुरू होते हैं वह समय ज्यादा कष्ट भरा होता है. खास तौर पर वे बच्चे जिनके सबसे पहले दांत निकल रहे होते हैं उन्हें इस समय ज्यादा परेशानी अनुभव करनी पड़ती है. वैसे भी आमतौर पर बच्चों के दांत पांच से छः महीने तक निकलने शुरू हो जाते हैं. इस उम्र में बच्चे बोल कर अपनी परेशानी नहीं बता पाते हैं. जिसके कारण वे ज्यादा चिड़चिड़े हो जाते हैं और ज्यादा रोने लगते हैं. यह अवस्था उनकी तथा उनके माता-पिता दोनों की परेशानियों को और भी ज्यादा बढ़ा देती है.

वह बताते हैं कि जन्म के बाद निकलने वाले यह दांत अस्थाई होते है जो कुछ सालों बाद टूट जाते हैं तथा उनके स्थान पर फिर से उनके स्थाई दांत निकलते हैं. बच्चों के इन अस्थाई दांतों को दूध के दांत भी कहा जाता है. वैसे तो आम वयस्क के मुंह में 32 दांत होते हैं लेकिन दूध के दांत या उनके पहले दांत संख्या में 20 होते हैं. 10 ऊपर और 10 नीचे. इन सभी दांतों को पूरी तरह से निकलने में लगभग तीन साल तक का समय लग जाता है.

कौन सी समस्याएं करती हैं परेशान
वह बताते हैं कि जब बच्चों के दांत निकलना शुरू होते है तो दांत निकलने से पहले से ही उनके मसूड़े इस प्रक्रिया के लिए तैयार होने लगते हैं जिसके चलते उनके मसूड़ों में खुजली और फिर सूजन आने लगती है जिसे आम भाषा में जबड़ों का फूलना भी कहा जाता है. फिर जैसे जैसे त्वचा के दांत बाहर निकलने का समय पास आता है तथा दांत त्वचा से बाहर आने लगते हैं तो उस स्थान पर बच्चे दर्द भी महसूस करने लगते हैं. इस प्रक्रिया में उनकी जबड़ों से जुड़ी सभी मांसपेशियों पर भी जोर पड़ता है. जिसके कारण कई बार उनकी कान से जुड़ी मांसपेशियों में भी परेशानी महसूस होने लगती हैं. इसी के चलते बहुत से बच्चे दांत निकलने के दौरान अपने कान भी खींचने लगते हैं. टीथिंग के दौरान कई बच्चों में शरीर के तापमान में परिवर्तन भी देखा जाता है. लेकिन यदि इस अवस्था में बच्चे को तेज बुखार आए तो इसके लिए अन्य कारक भी जिम्मेदार हो सकते हैं.

वहीं आमतौर पर टीथिंग के दौरान बच्चे के पेट खराब होने के मामले भी देखने में आते हैं लेकिन इसके लिए भी टीथिंग की प्रक्रिया को पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है. दरअसल जिस समय बच्चों के दांत निकल रहे होते हैं, उनके मसूड़ों में खुजली, दर्द और असहजता होती है. ऐसा होने पर वे अपने मुंह में ज्यादा उंगली या हाथ डालते हैं. वहीं वे हर चीज को मुंह में डालने तथा उसे काटने का प्रयास करने लगते हैं, जिससे उनके मसूड़ों की खुजली शांत हो. ऐसे में यदि हाथ साफ ना हो या जिस भी चीज को वे मुंह में डाल रहें हैं उस पर कीटाणु लगे हों तो वे कीटाणु पेट में जाकर पाचन तंत्र पर असर डालते हैं. ऐसे में कई बार बच्चों में दस्त होने जैसी समस्याएं भी नजर आ सकती हैं.

कैसे कम करें परेशानियां
डॉ. राव बताते हैं कि टीथिंग की प्रक्रिया में बच्चे तो परेशान होते ही हैं, उनके माता-पिता तथा उनकी देखभाल करने वाले लोग भी काफी परेशान होते हैं. खासतौर पर स्तनपान करने वाली माताओं को इस दौरान कुछ विशेष समस्याओं का सामना करना पड़ता है. चूंकि इस समय बच्चा हर चीज को चबाने का प्रयास करता है ऐसे में स्तनपान के समय कई बच्चे माता के स्तन पर काट लेते हैं. जिसके कारण कई बार उनके स्तन पर घाव भी हो जाते हैं. वहीं मुंह और कान में असहजता के चलते बच्चे ज्यादा रोने भी लगते हैं.

दांत निकलने की प्रक्रिया के दौरान होने वाली इन तथा अन्य परेशानियों को कम करने तथा संक्रमण, पाचन संबंधी समस्या तथा बुखार जैसे रोग से बचाव में कुछ उपाय तथा सावधानियां काफी कारगर हो सकती हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं. बच्चों की शारीरिक स्वच्छता तथा उनके कपड़ों, खिलौनों तथा उनके आसपास रखी वस्तुओं तथा उनके इस्तेमाल में आने वाली चीजों की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें. इस समय बच्चे ज्यादा लार निकलते हैं और मसूड़ों में खुजली के कारण वे बार-बार अपना हाथ मुंह में डालते हैं. ऐसे में उनके हाथों की सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. साथ ही उनकी लार को भी साफ रुमाल या कपड़े की मदद से साफ करते रहना चाहिए.

दांतों की खुजली कम करने के लिए कई लोग बच्चों को टीदर्स देते हैं. टीदर्स दरअसल ऐसे खिलौने होते हैं जो विशेषतौर पर बच्चों के दांतों के निकलने के समय उनके मसूड़ों की खुजली को कम करते हैं. लेकिन इनके इस्तेमाल के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना भी बेहद जरूरी होता है. जैसे चूंकि बच्चा उन्हें मुंह में डालता है इसलिए ये हमेशा साफ और कीटाणु मुक्त हों, ये ज्यादा कठोर ना हो तथा ये अच्छी गुणवत्ता वाले हो.

ध्यान रहे की बच्चा मुंह में ऐसी चीज ना डाले जो उसके मसूड़ों को नुकसान पहुंचा सके
बच्चों को चबाने के लिए अच्छी तरह से धुली हुई सब्जियां या फल भी दिए जा सकते हैं. इससे ना सिर्फ उनके मसूड़ों की खुजली में राहत मिल सकती है बल्कि उन्हें पोषण भी मिलेगा. लेकिन यहां यह ध्यान रखना भी जरूरी है जब तक बच्चा अच्छे से चबाना ना सीखे तब तक उसे छोटे कटे हुए सब्जी या फल नहीं देने चाहिए. वे उनके गले में फंस सकते हैं. साथ ही बीज वाले फल देने से पहले उनके बीज पूरी तरह से निकालकर ही उन्हें फल देना चाहिए. यदि मौसम गर्मी का हो तो बच्चों को ठंडे सब्जी या फल देना उन्हें ज्यादा राहत दे सकता है.

मसूड़ों की खुजली के लिए ठंडे व गीले मुलायम कपड़े से हल्की मालिश भी बच्चों को इस अवस्था में आराम दिला सकती है. विशेषतौर पर स्तनपान से पहले तथा सोने से पहले उनके मसूड़ों की हल्के हाथ से मालिश बच्चों की तथा माता, दोनों की परेशानियों कम सकती है.

कैसे रखें ओरल हाइजीन दुरुस्त
डॉ राव बताते हैं कि बच्चों के ओरल हाइजीन को बनाए रखने का प्रयास दांत निकलने से पहले ही शुरू कर देना चाहिए. इससे दांत निकलने के बाद दांत तथा मसूड़ों को स्वस्थ रखा जा सकता है और इसका फायदा सम्पूर्ण स्वास्थ्य को पहुंचता है. यहां तक की बच्चे भी कम बीमार पड़ते हैं. ओरल हाइजीन को दुरुस्त रखने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रहना और कुछ अच्छी आदतों को अपनाना लाभकारी होता है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

जन्म के बाद से ही बच्चों के मुंह की सफाई बनाए रखें. इसके लिए प्रतिदिन एक स्वच्छ, मुलायम व गीले कपड़े की मदद से हल्के हाथ से बच्चे के मसूड़ों और उसकी जीभ को साफ करें. जिन बच्चों का ऊपरी आहार शुरू हो चुका होता है उनके मुंह को भी प्रतिदिन ऐसे ही साफ करें. साथ ही इस समय बच्चे को बेहद मुलायम तथा विशेषतौर पर छोटे बच्चों के लिए उपलब्ध टूथब्रश भी दिया जा सकता है. जिन बच्चों के दांत थोड़े-थोड़े निकलने लगे हैं, उनके दांतों को दिन में दो बार आगे पीछे से अच्छे से साफ करना चाहिए. इससे उनमें शुरुआत से ही दिन में दो बार ब्रश करने की आदत भी विकसित होगी.

जिन बच्चों के पांच-छः दांत निकल चुके हो यानी लगभग सात-आठ महीने के बाद से, उनके दांतों को बेहद कम मात्रा में फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट से ब्रश करना शुरू किया जा सकता है. लेकिन ध्यान रहें टूथब्रश बेहद मुलायम हो तथा टूथपेस्ट का इस्तेमाल बेहद थोड़ी मात्रा में ही किया जाए. क्योंकि ज्यादा मात्रा में फ्लोराइड बच्चों के लिए हानिकारक हो सकता है. दांत निकलने के बाद रात को सोने से पहले बच्चों को बोतल से मीठा दूध पीने की आदत से बचाना चाहिए. ऐसे करने से रात भर उनके मुंह विशेषकर दांतों में दूध के कण लगे रह सकते हैं जो दांतों की सड़न का कारण बन सकता है.

पोषण का रखें ध्यान
डॉ राव बताते हैं कि छः महीने के बाद बच्चों को दूध के अलावा दाल व चावल का पानी, फलों का जूस, पतली खिचड़ी, दलिया, नारियल पानी, फलों का जूस तथा सब्जियों का सूप जैसा तरल आहार आहार देना चाहिए. जिसमें आयरन, विटामिन, कैल्शियम, प्रोटीन और मिनरल्स सहित अन्य जरूरी पौष्टिक तत्व जरूरी मात्रा में हो. इसके साथ ही उन्हे नियमित अंतराल पर थोड़ा-थोड़ा पानी भी पिलाते रहना चाहिए. इससे बच्चों के शरीर में इम्यूनिटी का विकास होगा और किसी भी कारण से उनके बीमार होने की आशंका भी कम होगी.

इसके अलावा विशेषतौर पर दांत निकलते समय उन्हे दर्द या परेशानी से बचाने के लिए बिना चिकित्सीय सलाह किसी भी प्रकार की दर्द निवारक दवा नहीं देनी चाहिए या ना ही उनके मसूड़ों पर किसी प्रकार का मलहम या जैल लगाना चाहिए. लेकिन ना सिर्फ टीथिंग के दौरान बल्कि सामान्य तौर पर भी यदि बच्चा लगातार तथा ज्यादा रो रहा हो या उसे बुखार, दस्त या कोई अन्य समस्या हो रही हो तो तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.

ये भी पढ़ेंः Dental Problems In Children : भारतीय वैज्ञानिकों बताया इन कारणों से बच्चों में दांत नहीं बन पाते

नई दिल्लीः बच्चे के जन्म के लगभग 5-6 महीने के बाद से उसके दांत निकलने शुरू हो जाते हैं. छोटे बच्चों के दांत निकलना बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि उनके परिजनों के लिए भी एक परेशानी भरा समय होता है. क्योंकि इस दौरान ज्यादातर बच्चों को पेट की गड़बड़ी, बुखार, मसूड़ों में दर्द तथा कुछ अन्य परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है. वहीं इस दौरान परेशानियों के चलते ज्यादातर बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैं और ज्यादा रोने लगते हैं.

दांत निकलने के दौरान यदि बच्चे ज्यादा परेशान होने लगते हैं तो ये कुछ उपाय तथा सावधानियां है जिनका यदि ध्यान रखा जाए तो बच्चों में इस अवधि में होने वाली परेशानियों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. दांत निकलने की प्रक्रिया के दौरान आम तौर पर बच्चों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है और कैसे उन परेशानियों को कम किया जा सकता है, साथ ही उनके ओरल हाइजीन को कैसे दुरुस्त रखा जा सकता है, इस बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखी भव ने बेंगलुरु के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. टीएस राव से जानकारी ली.

टीथिंग में बढ़ जाती है बच्चों की परेशानियां
डॉ. राव बताते हैं कि दांत निकलने या टीथिंग की अवधि कुछ बच्चों में काफी परेशानी भरी हो सकती है. हालांकि कुछ बच्चों में यह समय सरलता से बेहद मामूली परेशानियों के साथ भी बीत जाता है. वह बताते हैं कि टीथिंग की शुरुआत से पहले से ही बच्चों के मसूड़ों में खुजली, दर्द और कई बार सूजन होने लगती है. मसूड़ों की त्वचा से दांत एक बार में बाहर नहीं आते हैं बल्कि यह धीमी प्रक्रिया हैं जिसमें कुछ दिन लगते हैं. ऐसे में मसूड़ों में दांत निकलते समय होने वाली असहजता भी तत्काल ठीक नहीं होती है.

बच्चों के दांत निकलने की शुरुआत से लेकर पूरी तरह से उनके दांत निकलने के बीच, जिस समय त्वचा से दांत बाहर निकलना शुरू होते हैं वह समय ज्यादा कष्ट भरा होता है. खास तौर पर वे बच्चे जिनके सबसे पहले दांत निकल रहे होते हैं उन्हें इस समय ज्यादा परेशानी अनुभव करनी पड़ती है. वैसे भी आमतौर पर बच्चों के दांत पांच से छः महीने तक निकलने शुरू हो जाते हैं. इस उम्र में बच्चे बोल कर अपनी परेशानी नहीं बता पाते हैं. जिसके कारण वे ज्यादा चिड़चिड़े हो जाते हैं और ज्यादा रोने लगते हैं. यह अवस्था उनकी तथा उनके माता-पिता दोनों की परेशानियों को और भी ज्यादा बढ़ा देती है.

वह बताते हैं कि जन्म के बाद निकलने वाले यह दांत अस्थाई होते है जो कुछ सालों बाद टूट जाते हैं तथा उनके स्थान पर फिर से उनके स्थाई दांत निकलते हैं. बच्चों के इन अस्थाई दांतों को दूध के दांत भी कहा जाता है. वैसे तो आम वयस्क के मुंह में 32 दांत होते हैं लेकिन दूध के दांत या उनके पहले दांत संख्या में 20 होते हैं. 10 ऊपर और 10 नीचे. इन सभी दांतों को पूरी तरह से निकलने में लगभग तीन साल तक का समय लग जाता है.

कौन सी समस्याएं करती हैं परेशान
वह बताते हैं कि जब बच्चों के दांत निकलना शुरू होते है तो दांत निकलने से पहले से ही उनके मसूड़े इस प्रक्रिया के लिए तैयार होने लगते हैं जिसके चलते उनके मसूड़ों में खुजली और फिर सूजन आने लगती है जिसे आम भाषा में जबड़ों का फूलना भी कहा जाता है. फिर जैसे जैसे त्वचा के दांत बाहर निकलने का समय पास आता है तथा दांत त्वचा से बाहर आने लगते हैं तो उस स्थान पर बच्चे दर्द भी महसूस करने लगते हैं. इस प्रक्रिया में उनकी जबड़ों से जुड़ी सभी मांसपेशियों पर भी जोर पड़ता है. जिसके कारण कई बार उनकी कान से जुड़ी मांसपेशियों में भी परेशानी महसूस होने लगती हैं. इसी के चलते बहुत से बच्चे दांत निकलने के दौरान अपने कान भी खींचने लगते हैं. टीथिंग के दौरान कई बच्चों में शरीर के तापमान में परिवर्तन भी देखा जाता है. लेकिन यदि इस अवस्था में बच्चे को तेज बुखार आए तो इसके लिए अन्य कारक भी जिम्मेदार हो सकते हैं.

वहीं आमतौर पर टीथिंग के दौरान बच्चे के पेट खराब होने के मामले भी देखने में आते हैं लेकिन इसके लिए भी टीथिंग की प्रक्रिया को पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है. दरअसल जिस समय बच्चों के दांत निकल रहे होते हैं, उनके मसूड़ों में खुजली, दर्द और असहजता होती है. ऐसा होने पर वे अपने मुंह में ज्यादा उंगली या हाथ डालते हैं. वहीं वे हर चीज को मुंह में डालने तथा उसे काटने का प्रयास करने लगते हैं, जिससे उनके मसूड़ों की खुजली शांत हो. ऐसे में यदि हाथ साफ ना हो या जिस भी चीज को वे मुंह में डाल रहें हैं उस पर कीटाणु लगे हों तो वे कीटाणु पेट में जाकर पाचन तंत्र पर असर डालते हैं. ऐसे में कई बार बच्चों में दस्त होने जैसी समस्याएं भी नजर आ सकती हैं.

कैसे कम करें परेशानियां
डॉ. राव बताते हैं कि टीथिंग की प्रक्रिया में बच्चे तो परेशान होते ही हैं, उनके माता-पिता तथा उनकी देखभाल करने वाले लोग भी काफी परेशान होते हैं. खासतौर पर स्तनपान करने वाली माताओं को इस दौरान कुछ विशेष समस्याओं का सामना करना पड़ता है. चूंकि इस समय बच्चा हर चीज को चबाने का प्रयास करता है ऐसे में स्तनपान के समय कई बच्चे माता के स्तन पर काट लेते हैं. जिसके कारण कई बार उनके स्तन पर घाव भी हो जाते हैं. वहीं मुंह और कान में असहजता के चलते बच्चे ज्यादा रोने भी लगते हैं.

दांत निकलने की प्रक्रिया के दौरान होने वाली इन तथा अन्य परेशानियों को कम करने तथा संक्रमण, पाचन संबंधी समस्या तथा बुखार जैसे रोग से बचाव में कुछ उपाय तथा सावधानियां काफी कारगर हो सकती हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं. बच्चों की शारीरिक स्वच्छता तथा उनके कपड़ों, खिलौनों तथा उनके आसपास रखी वस्तुओं तथा उनके इस्तेमाल में आने वाली चीजों की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें. इस समय बच्चे ज्यादा लार निकलते हैं और मसूड़ों में खुजली के कारण वे बार-बार अपना हाथ मुंह में डालते हैं. ऐसे में उनके हाथों की सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. साथ ही उनकी लार को भी साफ रुमाल या कपड़े की मदद से साफ करते रहना चाहिए.

दांतों की खुजली कम करने के लिए कई लोग बच्चों को टीदर्स देते हैं. टीदर्स दरअसल ऐसे खिलौने होते हैं जो विशेषतौर पर बच्चों के दांतों के निकलने के समय उनके मसूड़ों की खुजली को कम करते हैं. लेकिन इनके इस्तेमाल के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना भी बेहद जरूरी होता है. जैसे चूंकि बच्चा उन्हें मुंह में डालता है इसलिए ये हमेशा साफ और कीटाणु मुक्त हों, ये ज्यादा कठोर ना हो तथा ये अच्छी गुणवत्ता वाले हो.

ध्यान रहे की बच्चा मुंह में ऐसी चीज ना डाले जो उसके मसूड़ों को नुकसान पहुंचा सके
बच्चों को चबाने के लिए अच्छी तरह से धुली हुई सब्जियां या फल भी दिए जा सकते हैं. इससे ना सिर्फ उनके मसूड़ों की खुजली में राहत मिल सकती है बल्कि उन्हें पोषण भी मिलेगा. लेकिन यहां यह ध्यान रखना भी जरूरी है जब तक बच्चा अच्छे से चबाना ना सीखे तब तक उसे छोटे कटे हुए सब्जी या फल नहीं देने चाहिए. वे उनके गले में फंस सकते हैं. साथ ही बीज वाले फल देने से पहले उनके बीज पूरी तरह से निकालकर ही उन्हें फल देना चाहिए. यदि मौसम गर्मी का हो तो बच्चों को ठंडे सब्जी या फल देना उन्हें ज्यादा राहत दे सकता है.

मसूड़ों की खुजली के लिए ठंडे व गीले मुलायम कपड़े से हल्की मालिश भी बच्चों को इस अवस्था में आराम दिला सकती है. विशेषतौर पर स्तनपान से पहले तथा सोने से पहले उनके मसूड़ों की हल्के हाथ से मालिश बच्चों की तथा माता, दोनों की परेशानियों कम सकती है.

कैसे रखें ओरल हाइजीन दुरुस्त
डॉ राव बताते हैं कि बच्चों के ओरल हाइजीन को बनाए रखने का प्रयास दांत निकलने से पहले ही शुरू कर देना चाहिए. इससे दांत निकलने के बाद दांत तथा मसूड़ों को स्वस्थ रखा जा सकता है और इसका फायदा सम्पूर्ण स्वास्थ्य को पहुंचता है. यहां तक की बच्चे भी कम बीमार पड़ते हैं. ओरल हाइजीन को दुरुस्त रखने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रहना और कुछ अच्छी आदतों को अपनाना लाभकारी होता है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

जन्म के बाद से ही बच्चों के मुंह की सफाई बनाए रखें. इसके लिए प्रतिदिन एक स्वच्छ, मुलायम व गीले कपड़े की मदद से हल्के हाथ से बच्चे के मसूड़ों और उसकी जीभ को साफ करें. जिन बच्चों का ऊपरी आहार शुरू हो चुका होता है उनके मुंह को भी प्रतिदिन ऐसे ही साफ करें. साथ ही इस समय बच्चे को बेहद मुलायम तथा विशेषतौर पर छोटे बच्चों के लिए उपलब्ध टूथब्रश भी दिया जा सकता है. जिन बच्चों के दांत थोड़े-थोड़े निकलने लगे हैं, उनके दांतों को दिन में दो बार आगे पीछे से अच्छे से साफ करना चाहिए. इससे उनमें शुरुआत से ही दिन में दो बार ब्रश करने की आदत भी विकसित होगी.

जिन बच्चों के पांच-छः दांत निकल चुके हो यानी लगभग सात-आठ महीने के बाद से, उनके दांतों को बेहद कम मात्रा में फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट से ब्रश करना शुरू किया जा सकता है. लेकिन ध्यान रहें टूथब्रश बेहद मुलायम हो तथा टूथपेस्ट का इस्तेमाल बेहद थोड़ी मात्रा में ही किया जाए. क्योंकि ज्यादा मात्रा में फ्लोराइड बच्चों के लिए हानिकारक हो सकता है. दांत निकलने के बाद रात को सोने से पहले बच्चों को बोतल से मीठा दूध पीने की आदत से बचाना चाहिए. ऐसे करने से रात भर उनके मुंह विशेषकर दांतों में दूध के कण लगे रह सकते हैं जो दांतों की सड़न का कारण बन सकता है.

पोषण का रखें ध्यान
डॉ राव बताते हैं कि छः महीने के बाद बच्चों को दूध के अलावा दाल व चावल का पानी, फलों का जूस, पतली खिचड़ी, दलिया, नारियल पानी, फलों का जूस तथा सब्जियों का सूप जैसा तरल आहार आहार देना चाहिए. जिसमें आयरन, विटामिन, कैल्शियम, प्रोटीन और मिनरल्स सहित अन्य जरूरी पौष्टिक तत्व जरूरी मात्रा में हो. इसके साथ ही उन्हे नियमित अंतराल पर थोड़ा-थोड़ा पानी भी पिलाते रहना चाहिए. इससे बच्चों के शरीर में इम्यूनिटी का विकास होगा और किसी भी कारण से उनके बीमार होने की आशंका भी कम होगी.

इसके अलावा विशेषतौर पर दांत निकलते समय उन्हे दर्द या परेशानी से बचाने के लिए बिना चिकित्सीय सलाह किसी भी प्रकार की दर्द निवारक दवा नहीं देनी चाहिए या ना ही उनके मसूड़ों पर किसी प्रकार का मलहम या जैल लगाना चाहिए. लेकिन ना सिर्फ टीथिंग के दौरान बल्कि सामान्य तौर पर भी यदि बच्चा लगातार तथा ज्यादा रो रहा हो या उसे बुखार, दस्त या कोई अन्य समस्या हो रही हो तो तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.

ये भी पढ़ेंः Dental Problems In Children : भारतीय वैज्ञानिकों बताया इन कारणों से बच्चों में दांत नहीं बन पाते

Last Updated : Feb 24, 2023, 8:05 PM IST
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