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बच्चों के सम्पूर्ण विकास के लिए जरूरी है तेल मालिश

बच्चे के जन्म के बाद उसके शरीर की मजबूती और विकास के लिए मालिश बहुत जरूरी होती है. मालिश से जहां बच्चों की हड्डियां मजबूत होती हैं, वहीं उनकी अंदरूनी तंत्रों को सुचारू रूप से संचालित भी करता है. इससे ना सिर्फ बच्चे को फायदा पहुंचता हैं, बल्कि मां और बच्चे के बीच भावनात्मक संबंध बनता है. डॉ. राज्यलक्ष्मी माधवम ने बच्चे की मालिश से जुड़ी विशेष जानकारी साझा की हैं.

Oil massage for children
बच्चों की तेल मालिश
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Published : Aug 14, 2020, 3:20 PM IST

हमारे देश में शुरुआत से ही नवजात बच्चों की अभ्यंग या मालिश की परंपरा रही है. पीढ़ी चाहे नई हो या पुरानी, नन्हें बच्चों में मालिश की जरूरत और उसके फायदों को सभी खूब समझते है. घर की बड़ी महिलाओं तथा मां की इस सोच से चिकित्सक भी इत्तेफाक रखते हैं और छोटे बच्चों के सम्पूर्ण विकास के लिए मालिश को जरूरी मानते है. नवजातों में मालिश की जरूरत और उसके सही तरीकों के बारे में ETV भारत सुखीभवा टीम ने एएमडी सरकारी आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज की प्रवक्ता तथा एमडी आयुर्वेद डॉ. राज्यलक्ष्मी माधवम से बात की.

क्यों जरूरी है मालिश

डॉ. माधवम बताती हैं की बच्चे की नियमित मालिश न सिर्फ उसकी हड्डियों को मजबूत कर शरीर के विकास की रफ्तार बढ़ाती है, बल्कि उसके अंदरूनी तंत्रों जैसे पाचन तंत्र और तंत्रिका तंत्र आदि को भी मजबूत करती है. इसके अलावा मालिश से बच्चे का वजन बढ़ता है, उसके शरीर के रक्त संचार में सुधार होता है, बच्चे की त्वचा और बाल दोनों को पोषण मिलता है तथा उसमें रोग प्रतिरोधक क्षमताओं का भी विकास होता है. मालिश के उपरांत बच्चा अच्छी नींद लेता है, जिससे उसके शरीर का तनाव भी दूर होता है.

बच्चे की मालिश सिर्फ उसे ही नहीं बल्कि उसकी मां को भी फायदा पहुंचाता है. बच्चे के जन्म के बाद से ज्यादातर मांओं की दिनचर्या बिल्कुल बदल जाती है. बच्चे के दिनचर्या के अनुरूप ही उन्हें अपना कार्य करना पड़ता है, जिससे उन्हें शारीरिक थकान के साथ ही मानसिक तनाव का भी सामना करना पड़ता है. लेकिन जब मां अपने बच्चे की स्वयं मालिश करती है, तो प्रेम से अभिभूत मां और बच्चे दोनों के शरीर में ऑक्सीटोसिन नाम का हार्मोन बनता है, जिससे ना सिर्फ मां को तनाव से मुक्ति मिलती है, बल्कि शारीरिक थकावट से भी आराम मिलता है. वही मां के हाथों से ममत्व भारी मालिश से दोनों के बीच भावनात्मक संबंध भी मजबूत होता है.

कैसे करें शिशु की मालिश

नवजात बच्चे का शरीर बहुत ही कोमल होता है. इसलिए जब भी उसकी मालिश की जाये बहुत ही सौम्य हाथों से की जाये. डॉ. माधवम बताती हैं की बच्चे की प्रतिदिन की दिनचर्या एक जैसे ही होती है यानि उनके सोने, जागने और भूख लगने समय प्रतिदिन एक ही होता है. यदि उनकी दिनचर्या को बदलने की कोशिश की जाये तो वह बोल कर अपनी बात जाहिर तो नहीं कर सकता है, लेकिन रो कर अपना गुस्सा या परेशानी जताता है. इसलिए जरूरी है की बच्चों के हर काम का समय निश्चित हो.

मालिश के लिए भी एक समय निश्चित होगा, तभी वह उसका आनंद ले पाएगा. सबसे पहले मालिश की शुरुआत बच्चे के सर से करनी चाहिए. फिर उसके पैरों की मालिश करें, उसके बाद हाथों और फिर दोबारा उसके पैरों की मालिश करें. इसके उपरांत उसके पेट और छाती की मालिश करें. और सबसे आखिर में पीठ की. ध्यान देने योग्य बात यह है की जिस समय बच्चे के हाथ और पांव की मालिश की जाए उनकी उंगलियों की मालिश करें.

डॉ. माधवम बताती हैं की यदि बच्चे की नियमित मालिश हो तो, वो ही सबसे अच्छा है. लेकिन किसी कारणवश ऐसा ना हो पाए, तो सप्ताह में कम से कम एक दिन तो बच्चे की मालिश होनी ही चाहिए. वैसे ही यदि बच्चे के लिए किसी मालिश वाली को लगाया गया हो तो भी माता को चाहिए की वह थोड़े-थोड़े समय उपरांत स्वयं भी उसकी मालिश करती रहे. मालिश करने के तुरंत बाद बच्चे को नहलाना नहीं चाहिए. आमतौर पर मालिश के बाद बच्चों को अच्छी नींद आती है. इसलिए कम से कम एक घंटा उन्हें सोने दें, उसके बाद उन्हें नहलाएं.

मालिश के दौरान बरतें सावधानियां

छोटे बच्चे का शरीर बहुत ही कोमल और लचीला होता है. इसलिए जरूरी होता है की उसकी मालिश नरम हाथों से की जाएं. खासतौर पर जब बच्चे के सर की मालिश की जाए, तो बहुत ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है. क्योंकि नवजात के सिर की हड्डियां या कपाल बहुत नरम होता है, इसलिए वहां कभी भी दबाव नहीं डालना चाहिए.

डॉ. माधवम बताती हैं की नवजातों की मालिश चिकित्सक से सलाह लेने के बाद उनके जन्म के एक सप्ताह बाद से ही शुरू की जा सकती है. चिकित्सक की सलाह इसलिए जरूरी है की कहीं बच्चे को कोई ऐसी समस्या ना हो जिसके चलते उसे मालिश से नुकसान पहुंचे. इसके अलावा कभी भी बच्चे को दूध पिलाने के तुरंत बाद मालिश नहीं करनी चाहिए. मालिश हमेशा खाली पेट या दूध पीने के कम से कम एक घंटे के बाद करनी चाहिए.

शिशु की मालिश हमेशा सुरक्षित और आरामदायक स्थान पर करनी चाहिए. साथ ही मालिश वाले तेल का तापमान हल्का गुनगुना यानि हल्का गरम और कमरे का तापमान सामान्य होना चाहिए. कभी भी शिशु की मालिश पंखे के नीचे या एसी की हवा में नहीं करनी चाहिए.

यदि बच्चे को नजला, जुकाम, बुखार या किसी प्रकार का संक्रमण जैसी समस्या हो, तो कुछ दिनों के लिए मालिश ना करें और चिकित्सक की सलाह के उपरांत ही मालिश करें.

मालिश के लिए कौन सा तेल अच्छा

डॉ. माधवम कहती हैं की क्षेत्र और मौसम के अनुसार ही ठंडी या गर्म तासीर वाले तेल का चयन किया जाना चाहिए. जैसे दक्षिण भारत में लोग तिल के तेल तथा नारियल के तेल का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं. वहीं उत्तर भारत में लोग जैतून, बादाम या सरसों के तेल से बच्चे के शरीर की मालिश करना पसंद करते हैं. इसके अलावा आयुर्वेद में बाल तेल, बाल अश्वगंधा तेल, लाल तेल, चंदन बाल तेल, लाक्षादी तेल तथा मंजिस्तधी तेल बच्चों की मालिश के लिए उपयुक्त बताया गया है.

हमारे देश में शुरुआत से ही नवजात बच्चों की अभ्यंग या मालिश की परंपरा रही है. पीढ़ी चाहे नई हो या पुरानी, नन्हें बच्चों में मालिश की जरूरत और उसके फायदों को सभी खूब समझते है. घर की बड़ी महिलाओं तथा मां की इस सोच से चिकित्सक भी इत्तेफाक रखते हैं और छोटे बच्चों के सम्पूर्ण विकास के लिए मालिश को जरूरी मानते है. नवजातों में मालिश की जरूरत और उसके सही तरीकों के बारे में ETV भारत सुखीभवा टीम ने एएमडी सरकारी आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज की प्रवक्ता तथा एमडी आयुर्वेद डॉ. राज्यलक्ष्मी माधवम से बात की.

क्यों जरूरी है मालिश

डॉ. माधवम बताती हैं की बच्चे की नियमित मालिश न सिर्फ उसकी हड्डियों को मजबूत कर शरीर के विकास की रफ्तार बढ़ाती है, बल्कि उसके अंदरूनी तंत्रों जैसे पाचन तंत्र और तंत्रिका तंत्र आदि को भी मजबूत करती है. इसके अलावा मालिश से बच्चे का वजन बढ़ता है, उसके शरीर के रक्त संचार में सुधार होता है, बच्चे की त्वचा और बाल दोनों को पोषण मिलता है तथा उसमें रोग प्रतिरोधक क्षमताओं का भी विकास होता है. मालिश के उपरांत बच्चा अच्छी नींद लेता है, जिससे उसके शरीर का तनाव भी दूर होता है.

बच्चे की मालिश सिर्फ उसे ही नहीं बल्कि उसकी मां को भी फायदा पहुंचाता है. बच्चे के जन्म के बाद से ज्यादातर मांओं की दिनचर्या बिल्कुल बदल जाती है. बच्चे के दिनचर्या के अनुरूप ही उन्हें अपना कार्य करना पड़ता है, जिससे उन्हें शारीरिक थकान के साथ ही मानसिक तनाव का भी सामना करना पड़ता है. लेकिन जब मां अपने बच्चे की स्वयं मालिश करती है, तो प्रेम से अभिभूत मां और बच्चे दोनों के शरीर में ऑक्सीटोसिन नाम का हार्मोन बनता है, जिससे ना सिर्फ मां को तनाव से मुक्ति मिलती है, बल्कि शारीरिक थकावट से भी आराम मिलता है. वही मां के हाथों से ममत्व भारी मालिश से दोनों के बीच भावनात्मक संबंध भी मजबूत होता है.

कैसे करें शिशु की मालिश

नवजात बच्चे का शरीर बहुत ही कोमल होता है. इसलिए जब भी उसकी मालिश की जाये बहुत ही सौम्य हाथों से की जाये. डॉ. माधवम बताती हैं की बच्चे की प्रतिदिन की दिनचर्या एक जैसे ही होती है यानि उनके सोने, जागने और भूख लगने समय प्रतिदिन एक ही होता है. यदि उनकी दिनचर्या को बदलने की कोशिश की जाये तो वह बोल कर अपनी बात जाहिर तो नहीं कर सकता है, लेकिन रो कर अपना गुस्सा या परेशानी जताता है. इसलिए जरूरी है की बच्चों के हर काम का समय निश्चित हो.

मालिश के लिए भी एक समय निश्चित होगा, तभी वह उसका आनंद ले पाएगा. सबसे पहले मालिश की शुरुआत बच्चे के सर से करनी चाहिए. फिर उसके पैरों की मालिश करें, उसके बाद हाथों और फिर दोबारा उसके पैरों की मालिश करें. इसके उपरांत उसके पेट और छाती की मालिश करें. और सबसे आखिर में पीठ की. ध्यान देने योग्य बात यह है की जिस समय बच्चे के हाथ और पांव की मालिश की जाए उनकी उंगलियों की मालिश करें.

डॉ. माधवम बताती हैं की यदि बच्चे की नियमित मालिश हो तो, वो ही सबसे अच्छा है. लेकिन किसी कारणवश ऐसा ना हो पाए, तो सप्ताह में कम से कम एक दिन तो बच्चे की मालिश होनी ही चाहिए. वैसे ही यदि बच्चे के लिए किसी मालिश वाली को लगाया गया हो तो भी माता को चाहिए की वह थोड़े-थोड़े समय उपरांत स्वयं भी उसकी मालिश करती रहे. मालिश करने के तुरंत बाद बच्चे को नहलाना नहीं चाहिए. आमतौर पर मालिश के बाद बच्चों को अच्छी नींद आती है. इसलिए कम से कम एक घंटा उन्हें सोने दें, उसके बाद उन्हें नहलाएं.

मालिश के दौरान बरतें सावधानियां

छोटे बच्चे का शरीर बहुत ही कोमल और लचीला होता है. इसलिए जरूरी होता है की उसकी मालिश नरम हाथों से की जाएं. खासतौर पर जब बच्चे के सर की मालिश की जाए, तो बहुत ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है. क्योंकि नवजात के सिर की हड्डियां या कपाल बहुत नरम होता है, इसलिए वहां कभी भी दबाव नहीं डालना चाहिए.

डॉ. माधवम बताती हैं की नवजातों की मालिश चिकित्सक से सलाह लेने के बाद उनके जन्म के एक सप्ताह बाद से ही शुरू की जा सकती है. चिकित्सक की सलाह इसलिए जरूरी है की कहीं बच्चे को कोई ऐसी समस्या ना हो जिसके चलते उसे मालिश से नुकसान पहुंचे. इसके अलावा कभी भी बच्चे को दूध पिलाने के तुरंत बाद मालिश नहीं करनी चाहिए. मालिश हमेशा खाली पेट या दूध पीने के कम से कम एक घंटे के बाद करनी चाहिए.

शिशु की मालिश हमेशा सुरक्षित और आरामदायक स्थान पर करनी चाहिए. साथ ही मालिश वाले तेल का तापमान हल्का गुनगुना यानि हल्का गरम और कमरे का तापमान सामान्य होना चाहिए. कभी भी शिशु की मालिश पंखे के नीचे या एसी की हवा में नहीं करनी चाहिए.

यदि बच्चे को नजला, जुकाम, बुखार या किसी प्रकार का संक्रमण जैसी समस्या हो, तो कुछ दिनों के लिए मालिश ना करें और चिकित्सक की सलाह के उपरांत ही मालिश करें.

मालिश के लिए कौन सा तेल अच्छा

डॉ. माधवम कहती हैं की क्षेत्र और मौसम के अनुसार ही ठंडी या गर्म तासीर वाले तेल का चयन किया जाना चाहिए. जैसे दक्षिण भारत में लोग तिल के तेल तथा नारियल के तेल का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं. वहीं उत्तर भारत में लोग जैतून, बादाम या सरसों के तेल से बच्चे के शरीर की मालिश करना पसंद करते हैं. इसके अलावा आयुर्वेद में बाल तेल, बाल अश्वगंधा तेल, लाल तेल, चंदन बाल तेल, लाक्षादी तेल तथा मंजिस्तधी तेल बच्चों की मालिश के लिए उपयुक्त बताया गया है.

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