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दिल और दिमाग को तरोताजा करती है होली : कोरोना काल में सावधानी से मनाएं होली

होली का त्योहार हुड़दंग और आनंद का त्योहार माना जाता है। इस दिन खेले जाने वाले रंग हमारी मनःस्थिति पर एक अलग ही प्रकार का सकारात्मक असर छोड़ते हैं। लेकिन इस बार जब होली कोरोना काल के दौरान मनाई जा रही है, तो उत्सव के आनंद को बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी है कि कोरोनावायरस से जुड़ी तमाम सावधानियों का उपयोग किया जाए।

Holi is beneficial for health
होली स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद
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Published : Mar 29, 2021, 10:56 AM IST

हमारे देश में होली का त्योहार हर उम्र और वर्ग के लोग आनंद और उत्साह के साथ मनाते हैं। रंगीन चटक गुलाल, पानी से भरी पिचकारी और नाना प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन इस उत्सव के उत्साह को दोगुना कर देते हैं। फाग या जिसे रंग वाली होली कहते हैं, से पहले दिन छोटी होली मनाई जाती है। एक और जहां फाग का दिन रंगों से सरोबार रहता है, वहीं छोटी होली के दिन पूजा पाठ का आयोजन किया जाता है। होली और फाग या जिसे दुल्हेंडी भी कहा जाता है, दोनों को मनाए जाने के पीछे अलग-अलग कहानियां हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि होली का त्योहार ना सिर्फ हमारे मानसिक स्वास्थ्य बल्कि हमारे आसपास के वातावरण को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। ETV भारत सुखीभवा अपने पाठकों के साथ सांझा कर रहा है होली से जुड़ी कहानियां, और साथ ही साथ होली का त्योहार किस तरह से हमें प्रभावित करता है, इससे जुड़ी जानकारी।

क्यों मनाते हैं होली?

छोटी होली की कहानी आमतौर पर सभी लोग जानते हैं। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद को मारने के लिए उसकी बुआ होलिका ने नन्हे प्रहलाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया था। होलिका के पास एक चुनरी थी, कहा जाता है होलिका को वरदान प्राप्त था कि यदि वह उस चुनरी को पहनकर अग्नि में प्रवेश करेगी, तो अग्नि उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। छोटी होली के दिन भी होलिका उसी चुनरी को पहनकर प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश करती है, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वह चुनरी उड़ कर प्रहलाद के ऊपर गिर जाती है, जिससे प्रहलाद का जीवन बच जाता है, लेकिन होलिका का दहन हो जाता है। इसीलिए बुराई पर अच्छाई की जीत बनाने के लिए हर साल छोटी होली के दिन लोग होलिका दहन करते हैं।

वहीं माना जाता है कि एक बार भगवान कृष्ण ने अपनी माता यशोदा से शिकायत की कि राधा हमेशा उन्हें उनके सांवले रंग के लिए चिढ़ाती है। बच्चों की इस लड़ाई को हंसी ठिठोली में निपटाते हुए मां यशोदा ने कृष्ण को उपाय सुझाया की क्यों ना वह राधा को रंगों से सरोबार कर दें। मां की बात सुनकर कृष्ण ने राधा को अलग-अलग रंग के रंगों से रंग दिया। बस इसी के बाद से फाग मनाएं जाने की शुरुआत हो गई। होली के त्योहार को श्रीकृष्ण से जोड़कर देखा जाता है, इसलिए आज भी मथुरा, वृंदावन और उनके आसपास के इलाकों में होली की एक अलग ही धूम होती है।

कोरोना काल में ऐसे मनाएं होली

वर्तमान समय में कोरोना की गंभीरता को देखते हुए बहुत जरूरी है कि सुरक्षा नियमों का पालन किया जाए। जहां तक संभव हो होली खेलने से बचें, और यदि होली मनाते भी है, तो बहुत छोटे समूहों में एकत्रित हो। होली के दिन इन खास बातों को ध्यान में रखकर संक्रमण से बचने का प्रयास किया जा सकता है।

⦁ कोशिश करें दूर से रंग गुलाल उड़ाए किसी से भी गले मिलने या हाथ मिलाने से बचें।

⦁ ऐसे लोगों से दूरी बनाकर रखें, जो बीमार हो या जिनमें खांसी या जुखाम जैसी समस्या नजर आ रही हो।

⦁ रंग खेलते समय आंख या मुंह पर हाथ लगाने से बचें।

⦁ कोशिश करें कि हाथों को लगातार धोते रहें।

मनः स्थिति को प्रभावित करते रंग

कलर थेरेपिस्ट मानते हैं कि रंग हमारे स्वास्थ के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। होली के दिन इस्तेमाल में आने वाले चटक और चमकीले रंग ना सिर्फ हमारे मस्तिष्क, बल्कि हमारे शरीर को भी असंख्य फायदे पहुंचाते हैं। कलर थेरेपी के जानकार बताते हैं कि लाल रंग हमारे दिल की धड़कन की गति को नियमित रखने और सांस लेने की प्रक्रिया को सुचारू रखने में काफी मदद करता है। वहीं पीला और नीला रंग हमारे मस्तिष्क को शांत करने में मदद करता है, साथ ही मन को आनंद और प्रफुल्लता से भरता है।

होलिका दहन के फायदे

होली का त्योहार सर्दियों और गर्मियों के संधिकाल में मनाया जाता है। यह एक ऐसा समय होता है, जब हमारे वातावरण में बहुत से बैक्टीरिया तथा प्रदूषण बढ़ाने वाले तत्वों को पनपने का मौका मिलता है। जिनका हमारे शरीर पर भी खासा प्रभाव पड़ता है। होलिका दहन के दिन होली का जलाया जाना बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होता है, लेकिन होलिका दहन से पहले होने वाली पूजा के चलते बहुत से लोग होलिका में गोबर के उपले तथा घी डालते हैं। जिससे जब होलिका को जलाया जाता है, तो आसपास के वातावरण के कई बैक्टीरिया और प्रदूषण फैलाने वाले कारण अपने आप समाप्त हो जाते हैं। यही नहीं होलिका के आसपास फेरे लेने की भी प्रथा मनाई जाती है, इस प्रथा के फल स्वरूप जब लोग जलती हुई होलिका के आसपास चक्कर काटते हैं, तो उनके शरीर में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया भी समाप्त होते हैं।

प्राकृतिक तथा ऑर्गेनिक रंग

परंपरागत तरीकों की बात करें तो होली को हमेशा से टेसू तथा गुड़हल के फूलों, मेहंदी की पत्तियों, केसर, चंदन के पाउडर तथा हल्दी जैसी चीजों से बनाए गए रंगों से खेली जाती थी। जो की ना सिर्फ हमारी त्वचा बल्कि हमारे बालों और आंखों के स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते थे। आयुर्वेद में आज भी शरीर को तरोताजा करने के लिए इन्हीं सभी सामग्रियों से बने उत्पादों का इस्तेमाल किया जाता है। कलर थेरेपिस्ट भी मानते हैं कि इन चीजों से बने रंग हमारे शरीर के अलग-अलग अंगों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर डालते हैं। साथ ही हमारे मन में उत्पन्न अवसाद को शांत करते हैं।

पढ़े : आयुर्वेद से संभव है पतली कमर और सपाट पेट पाना

व्यंजनों की बहार

होली का त्यौहार सिर्फ रंगों का ही नहीं खाने पीने का भी माना जाता है। इस दिन घरों में गुजिया, चाट, ठंडाई, जलजीरा, कांजी का पानी सहित बहुत से ऐसे व्यंजन बनाए जाते हैं, जो स्वाद में तो उत्तम होते ही हैं, साथ ही हमारे पाचन तंत्र सहित सम्पूर्ण स्वास्थ्य को फायदा पहुंचाते हैं।

हमारे देश में होली का त्योहार हर उम्र और वर्ग के लोग आनंद और उत्साह के साथ मनाते हैं। रंगीन चटक गुलाल, पानी से भरी पिचकारी और नाना प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन इस उत्सव के उत्साह को दोगुना कर देते हैं। फाग या जिसे रंग वाली होली कहते हैं, से पहले दिन छोटी होली मनाई जाती है। एक और जहां फाग का दिन रंगों से सरोबार रहता है, वहीं छोटी होली के दिन पूजा पाठ का आयोजन किया जाता है। होली और फाग या जिसे दुल्हेंडी भी कहा जाता है, दोनों को मनाए जाने के पीछे अलग-अलग कहानियां हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि होली का त्योहार ना सिर्फ हमारे मानसिक स्वास्थ्य बल्कि हमारे आसपास के वातावरण को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। ETV भारत सुखीभवा अपने पाठकों के साथ सांझा कर रहा है होली से जुड़ी कहानियां, और साथ ही साथ होली का त्योहार किस तरह से हमें प्रभावित करता है, इससे जुड़ी जानकारी।

क्यों मनाते हैं होली?

छोटी होली की कहानी आमतौर पर सभी लोग जानते हैं। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद को मारने के लिए उसकी बुआ होलिका ने नन्हे प्रहलाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया था। होलिका के पास एक चुनरी थी, कहा जाता है होलिका को वरदान प्राप्त था कि यदि वह उस चुनरी को पहनकर अग्नि में प्रवेश करेगी, तो अग्नि उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। छोटी होली के दिन भी होलिका उसी चुनरी को पहनकर प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश करती है, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वह चुनरी उड़ कर प्रहलाद के ऊपर गिर जाती है, जिससे प्रहलाद का जीवन बच जाता है, लेकिन होलिका का दहन हो जाता है। इसीलिए बुराई पर अच्छाई की जीत बनाने के लिए हर साल छोटी होली के दिन लोग होलिका दहन करते हैं।

वहीं माना जाता है कि एक बार भगवान कृष्ण ने अपनी माता यशोदा से शिकायत की कि राधा हमेशा उन्हें उनके सांवले रंग के लिए चिढ़ाती है। बच्चों की इस लड़ाई को हंसी ठिठोली में निपटाते हुए मां यशोदा ने कृष्ण को उपाय सुझाया की क्यों ना वह राधा को रंगों से सरोबार कर दें। मां की बात सुनकर कृष्ण ने राधा को अलग-अलग रंग के रंगों से रंग दिया। बस इसी के बाद से फाग मनाएं जाने की शुरुआत हो गई। होली के त्योहार को श्रीकृष्ण से जोड़कर देखा जाता है, इसलिए आज भी मथुरा, वृंदावन और उनके आसपास के इलाकों में होली की एक अलग ही धूम होती है।

कोरोना काल में ऐसे मनाएं होली

वर्तमान समय में कोरोना की गंभीरता को देखते हुए बहुत जरूरी है कि सुरक्षा नियमों का पालन किया जाए। जहां तक संभव हो होली खेलने से बचें, और यदि होली मनाते भी है, तो बहुत छोटे समूहों में एकत्रित हो। होली के दिन इन खास बातों को ध्यान में रखकर संक्रमण से बचने का प्रयास किया जा सकता है।

⦁ कोशिश करें दूर से रंग गुलाल उड़ाए किसी से भी गले मिलने या हाथ मिलाने से बचें।

⦁ ऐसे लोगों से दूरी बनाकर रखें, जो बीमार हो या जिनमें खांसी या जुखाम जैसी समस्या नजर आ रही हो।

⦁ रंग खेलते समय आंख या मुंह पर हाथ लगाने से बचें।

⦁ कोशिश करें कि हाथों को लगातार धोते रहें।

मनः स्थिति को प्रभावित करते रंग

कलर थेरेपिस्ट मानते हैं कि रंग हमारे स्वास्थ के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। होली के दिन इस्तेमाल में आने वाले चटक और चमकीले रंग ना सिर्फ हमारे मस्तिष्क, बल्कि हमारे शरीर को भी असंख्य फायदे पहुंचाते हैं। कलर थेरेपी के जानकार बताते हैं कि लाल रंग हमारे दिल की धड़कन की गति को नियमित रखने और सांस लेने की प्रक्रिया को सुचारू रखने में काफी मदद करता है। वहीं पीला और नीला रंग हमारे मस्तिष्क को शांत करने में मदद करता है, साथ ही मन को आनंद और प्रफुल्लता से भरता है।

होलिका दहन के फायदे

होली का त्योहार सर्दियों और गर्मियों के संधिकाल में मनाया जाता है। यह एक ऐसा समय होता है, जब हमारे वातावरण में बहुत से बैक्टीरिया तथा प्रदूषण बढ़ाने वाले तत्वों को पनपने का मौका मिलता है। जिनका हमारे शरीर पर भी खासा प्रभाव पड़ता है। होलिका दहन के दिन होली का जलाया जाना बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होता है, लेकिन होलिका दहन से पहले होने वाली पूजा के चलते बहुत से लोग होलिका में गोबर के उपले तथा घी डालते हैं। जिससे जब होलिका को जलाया जाता है, तो आसपास के वातावरण के कई बैक्टीरिया और प्रदूषण फैलाने वाले कारण अपने आप समाप्त हो जाते हैं। यही नहीं होलिका के आसपास फेरे लेने की भी प्रथा मनाई जाती है, इस प्रथा के फल स्वरूप जब लोग जलती हुई होलिका के आसपास चक्कर काटते हैं, तो उनके शरीर में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया भी समाप्त होते हैं।

प्राकृतिक तथा ऑर्गेनिक रंग

परंपरागत तरीकों की बात करें तो होली को हमेशा से टेसू तथा गुड़हल के फूलों, मेहंदी की पत्तियों, केसर, चंदन के पाउडर तथा हल्दी जैसी चीजों से बनाए गए रंगों से खेली जाती थी। जो की ना सिर्फ हमारी त्वचा बल्कि हमारे बालों और आंखों के स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते थे। आयुर्वेद में आज भी शरीर को तरोताजा करने के लिए इन्हीं सभी सामग्रियों से बने उत्पादों का इस्तेमाल किया जाता है। कलर थेरेपिस्ट भी मानते हैं कि इन चीजों से बने रंग हमारे शरीर के अलग-अलग अंगों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर डालते हैं। साथ ही हमारे मन में उत्पन्न अवसाद को शांत करते हैं।

पढ़े : आयुर्वेद से संभव है पतली कमर और सपाट पेट पाना

व्यंजनों की बहार

होली का त्यौहार सिर्फ रंगों का ही नहीं खाने पीने का भी माना जाता है। इस दिन घरों में गुजिया, चाट, ठंडाई, जलजीरा, कांजी का पानी सहित बहुत से ऐसे व्यंजन बनाए जाते हैं, जो स्वाद में तो उत्तम होते ही हैं, साथ ही हमारे पाचन तंत्र सहित सम्पूर्ण स्वास्थ्य को फायदा पहुंचाते हैं।

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