जर्नल बीएमजे में प्रकाशित यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना हेल्थ केयर के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन के नतीजों में सामने आया की आहार में बदलाव कर रोगी माइग्रेन और सिरदर्द की समस्या में राहत पा सकते हैं। शोध में प्रथम सह लेखिका तथा यूएनसी स्कूल ऑफ मेडिसिन में यूएनसी डिपार्टमेंट ऑफ साइकियाट्री में सहायक प्रोफेसर व पीएचडी धारक डेज़ी ज़मोरा ने शोध में बताया है की हमारे पूर्वजों के आहार में हमारे आधुनिक आहार की तुलना में बहुत अलग मात्रा और अलग प्रकार के वसा शामिल थे।
डेज़ी बताती हैं की “पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड का उत्पादन हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से नही होता है लेकिन वर्तमान समय में हमारे आहार में मकई, सोयाबीन और बिनौला जैसे तेलों को चिप्स, क्रैकर्स और ग्रेनोला जैसे कई प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में शामिल करने के कारण हमारे आहार में इस प्रकार के फैट काफी बढ़ गए हैं।”
यह जानने के लिए की ,व्यक्ति के आहार में इन फैटी एसिड की मात्रा सिरदर्द तथा माइग्रेन को किस तरह प्रभावित करती है, शोध में 182 रोगियों को शामिल किया गया, जिन्हे माइग्रेन के इलाज की जरूरत थी। इस अध्धयन का नेतृत्व न्यूरोलॉजी और आंतरिक के प्रोफेसर डौग मान ने किया था, जो यूएनसी स्कूल ऑफ मेडिसिन में कार्यरत हैं।
शोध के दौरान रोगियों को उनके वर्तमान उपचारों के अलावा, 16 सप्ताह के लिए तीन प्रकार के आहारों में से एक का पालन करने के लिए कहा गया। जिनमें से पहले प्रकार के आहार में एन-6 और एन -3 फैटी एसिड की औसत मात्रा थी, इस प्रकार के आहार को अमेरिका में रहने वाले लोग ज्यादा उपयोग में लाते हैं। दूसरे प्रकार के आहार में एन की मात्रा ज्यादा थी । इसमें एन -3 और एन-6 फैटी एसिड भी शामिल थे। तथा तीसरे प्रकार के आहार जो एन -3 की मात्रा ज्यादा तथा एन -6 फैटी एसिड कम थे। शोध मे प्रतिभागियों को उनकी दैनिक भोजन तथा उनके सरदर्द की स्तिथि का विवरण रखने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक डायरी भी दी गई थी ।
यूएनसी मेटाबोलिक एंड न्यूट्रिशन रिसर्च कोर के क्लिनिकल न्यूट्रिशन मैनेजर बेथ मैकिन्टोश, एमपीएच, आरडी ने बताया है की शोध के दौरान प्रतिभागियों को इन आहारों का पालन करने के लिए काफी ज्यादा प्रेरित किया गया था ।”
जमोर बताती हैं की शोध के परिणाम काफी आशाजनक रहे। “जिन रोगियों ने निर्देशित आहार का पालन किया, उन्हें नियंत्रण समूह की तुलना में कम दर्द का अनुभव हुआ। प्रतिभागियों ने सिरदर्द में कमी के साथ ही दर्द के लिए दवाई लेने में आव्रतती में कमी के बारे में भी सूचित किया।
अध्ययन के सह-लेखक केतुरा फाउरोट जोकिभौतिक चिकित्सा और पुनर्वास के सहायक प्रोफेसर हैं और एकीकृत चिकित्सा पर कार्यक्रम के सहायक निदेशक हैं बताते हैं की “इस अध्ययन ने विशेष रूप से मछली से एन -3 फैटी एसिड का परीक्षण किया, न कि आहार की खुराक से,”। इस अध्ययन में जिन पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड की जांच की गई, वे हैं ओमेगा-6 (एन-6) और ओमेगा-3 (एन-3)। गौरतलब है की हमारे शरीर में संतुलन बनाए रखने के लिए दोनों ही जरूरी है। क्योंकि एन-3 फैटी एसिड सूजन को कम करने का कार्य करते हैं तथा एन -6 के कुछ प्रकार डेरिवेटिव दर्द को बढ़ावा देते हैं।
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