नई दिल्ली: साकेत कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को रियल स्टेट कंपनी सुपरटेक पर एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए हैं. कोर्ट ने यह निर्देश एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है, जिसे सुपरटेक के नोएडा सेक्टर 118 स्थित द रोमानो प्रोजेक्ट में वर्ष 2017 में फ्लैट का पजेशन दिया जाना था. सुपरटेक द्वारा अभी तक नहीं दिया गया है. मामले में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट गौरव दहिया ने पुलिस से 21 मार्च तक की गई कानूनी कार्रवाई की स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है. कोर्ट ने यह निर्देश कालकाजी थाने के एसएचओ को संबंधित धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज करने और कानून के अनुसार मामले की जांच करने के लिए दिया है.
कोर्ट में वकील रुद्र विक्रम सिंह के माध्यम से दी गई शिकायत के अनुसार शिकायतकर्ता ने 13 अक्टूबर 2015 में सुपरटेक के एक प्रोजेक्ट में अपने फ्लैट की बुकिंग कराई थी. बुकिंग के समय शिकायतकर्ता ने 895541 रुपये सुपरटेक को दिए थे. उस समय सुपरटेक के निदेशक और प्रतिनिधियों ने शिकायतकर्ता को फ्लैट की बाकी की राशि देने के लिए आईएचएफएल से होम लोन लेने के लिए कहा था. साथ ही यह भी कहा कि जब तक आपको फ्लैट का पजेशन नहीं मिलेगा तब तक हम आपको लोन का ब्याज देंगे. वर्ष 2017 में पजेशन मिलना था लेकिन अभी तक आरोपित कंपनी द्वारा न तो उन्हें फ्लैट का पजेशन दिया गया है और ना हीं लोन का ब्याज दिया गया है. जबकि बुकिंग के समय एग्रीमेंट साइन करने के दौरान उन्हें लोन का ब्याज देने का वायदा किया गया था.
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शिकायतकर्ता के वकील सिंह ने कहा कि उस प्रॉजेक्ट का रेरा पंजीकरण किसी दूसरी कंपनी के नाम पर है. इसके अलावा, 2015 में पूरा भुगतान करने के बावजूद 2016 तक कोई काम शुरू नहीं किया गया था और कंपनी की तरफ से कोई वार्तालाप भी नहीं हुआ था. यहां तक कि जिस कंपनी से होम लोन लिया गया है उसको ब्याज का भुगतान भी शिकायतकर्ता द्वारा ही किया जा रहा है. कंपनी के निदेशक द्वारा नहीं दिया जा रहा है.
कोर्ट ने इस तथ्य को दर्ज किया. कोर्ट ने कहा कि मामले की फाइल के अवलोकन से पता चलता है कि जांच अधिकारी द्वारा बार-बार एटीआर दायर किए गए थे, जिसमें कहा गया था कि नोटिस का जवाब कथित कंपनी के निदेशक द्वारा नहीं दिया जा रहा है. इसके अलावा, जब अंतिम एटीआर में जवाब दाखिल किया गया तो कथित कंपनी ने यह तर्क दिया कि एनसीएलटी द्वारा कंपनी के खिलाफ शुरू की गई सीआईआरपी कार्यवाही के कारण निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका है. हालांकि, उक्त आदेश 2021 में पारित किया गया था, लेकिन कथित कंपनी को 2017 में कब्जा सौंपना था. इसमें देरी का कारण असंतोषजनक लगता है.
कोर्ट ने आगे कहा कि मामले के रिकॉर्ड और शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए बयानों के अवलोकन से प्रथम दृष्टया एक संज्ञेय अपराध का पता चलता है, जिसकी पुलिस द्वारा जांच की आवश्यकता है. इसमें प्रतीत होता है कि आरोपितों ने एक निर्दोष खरीदार को धोखा दिया है, जिसने अपनी सारी बचत और कमाई उक्त संपत्ति में निवेश की हो सकती है. कोर्ट ने आगे कहा कि आरोपी व्यक्तियों की पहचान शिकायतकर्ता को पता है, हालांकि, उसके पास अपने दावे को साबित करने के लिए और उनके खिलाफ सबूत इकट्ठा करने का कोई साधन नहीं है.