बता दें कि दिल्ली सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को 24 जनवरी को उठाया था. जिसमें दिल्ली सरकार की तरफ से कहा गया था कि प्रशासन में काफी दिक्कत हो रही है. ऐसे में इस मामले पर जल्दी फैसला सुनाया जाए.
बता दें कि एक नवंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार और केंद्र की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. बीते साल 4जुलाई को संविधान पीठ द्वारा दिल्ली बनाम उपराज्यपाल विवाद में सिर्फ संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या की थी. संविधान पीठ ने कहा था कि कानून व्यवस्था, पुलिस और जमीन को छोड़कर उपराज्यपाल स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकते.
फैसले में कहा गया था कि एलजी को दिल्ली सरकार की सलाह पर काम करना होगा. अगर किसी मसले पर सरकार और एलजी के बीच विवाद होता है तो उसे एलजी को राष्ट्रपति के पास भेजना होगा.
सुप्रीम कोर्ट में अबतक क्या-क्या हुआ
बता दें कि एलजी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि एलजी को केंद्र ने अधिकार प्रदान किए है. सिविल सर्विसेज का मामला एलजी के हाथ में है क्योंकि ये अधिकार राष्ट्रपति ने एलजी को दिया है. चीफ सेक्रटरी की नियुक्ति आदि का मामला एलजी ही तय करेंगे. संविधान के तहत गवर्नर को विशेषाधिकार मिला हुआ है.
वहीं, दिल्ली सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील पी. चिदंबरम ने कहा था कि उपराज्यपाल को भी कैबिनेट की सलाह पर काम करना होगा. दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि एंटी करप्शन ब्रांच दिल्ली सरकार के दायरे में होना चाहिए क्योंकि सीआरपीसी में ऐसा प्रावधान है.