हैदराबाद : भारत में हरित क्रांति (ग्रीन रिवॉल्यूशन) के जनक एमएस स्वामीनाथन का जन्म सात अगस्त 1925 को तमिलनाडु के कुम्बाकोनम में हुआ था. शुक्रवार को उन्होंने अपना 95वां जन्मदिन मनाया. प्रसिद्ध जेनेटिक और कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन का हरित क्रांति के जरिए भारतीय कृषि को उन्नत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान है. उनका पूरा नाम मनकोंबू सम्बासिवान स्वामीनाथन है.
स्वीमानाथन के पिता एमके सम्बासिवान एक सर्जन थे. वह महात्मा गांधी के अनुयायी थे. उन्होंने स्वदेशी आंदोलन और तमिलनाडु में मंदिर प्रवेश आंदोलन में भाग लिया. पिता से प्रभावित होकर स्वामीनाथन युवावस्था में ही समाज सेवा के लिए प्रेरित हुए.
अपने गृह नगर के एक स्थानीय स्कूल से हाईस्कूल पास करने के बाद, उन्होंने मेडिकल स्कूल में प्रवेश लिया. लेकिन 1943 के बंगाल के अकाल ने उनका मन बदल दिया, जिसमें लगभग 30 लाख लोगों की भूख से मौत हो गई थी. इस अकाल के कारण स्वामीनाथन ने कृषि अनुसंधान क्षेत्र में मन लगाया. उन्होंने त्रिवेंद्रम के महाराजा कॉलेज से जूलॉजी (जंतु विज्ञान) में स्नातक किया. इसके बाद मद्रास कृषि महाविद्यालय में प्रवेश लिया.
स्वामीनाथन ने मद्रास कृषि महाविद्यालय से कृषि विज्ञान में भी स्नातक की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद, उन्होंने नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) में जाकर पादप प्रजनन और आनुवंशिकी में स्नातकोत्तर उपाधि हासिल की.
स्वामीनाथन के पास दो स्नातक उपाधियां थीं. एक जंतु विज्ञान में और दूसरी कृषि विज्ञान में थी.
स्वामीनाथन ने यूपीएससी परीक्षा में भी सफलता हासिल की थी और उन्हें भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की पेशकश की गई, लेकिन उन्होंने आईपीएस की बजाय वर्ष 1948 में यूनेस्को नीदरलैंड की स्कॉलरशिप को चुना.
- स्वामीनाथन को आलू, चावल, गेहूं, जूट इत्यादि पर शोध का श्रेय दिया जाता है.
- स्वामीनाथन ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (1972-1979) और अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (1982-88) के महानिदेशक के रूप में कार्य किया.
- 1979 में, वह कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव थे.
- 1988 में, स्वामीनाथन प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के अंतरराष्ट्रीय संघ के अध्यक्ष बने थे.
स्वामीनाथन को इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट का 1972 में डायरेक्टर जनरल बना दिया गया. उन्होंने इस दौरान कई रिसर्च इंस्टीट्यूट्स की स्थापना की. 1979 में कृषि मंत्रालय में प्रधान सचिव रहते हुए भी उन्होंने जंगलों के सर्वे का बड़ा काम करवाया.
उन्हें दुनिया का पहला वर्ल्ड फूड प्राइज दिया गया, यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम ने उन्हें फादर ऑफ इकोनॉमिक इकोलॉजी कहा तो भारत सरकार उन्हें भारत के दूसरे सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार पदम विभूषण से सम्मानित कर चुकी है, पीएम मोदी ने भी उनकी दो किताबों का विमोचन किया है.
वह भारतीय दार्शनिक और रहस्यवादी श्री अरबिंदो से बहुत प्रभावित थे. 1997 में ऑरोविले में बोलते हुए, उन्होंने कहा, श्री अरबिंदो आश्रम की मेरी पहली यात्रा 15 अगस्त 1947 को हुई थी. यह भारत के स्वतंत्र होने का दिन था.