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भारत, ताइवान को ‘निरंकुशता का विस्तार’ रोकने के लिए एकजुट होने की जरूरत है : ताइवानी राजदूत

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Published : Oct 2, 2022, 3:53 PM IST

चीन के आक्रामक रुख का हवाला देते हुए ताइवान के अनौपचारिक राजदूत बौशुआन गेर (Baushuan Ger) ने कहा है कि भारत और ताइवान को हाथ मिलाने की जरूरत है. पढ़िए पूरी खबर...

Baushuan Ger
बौशुआन गेर

नई दिल्ली : ताइवान के अनौपचारिक राजदूत बौशुआन गेर (Baushuan Ger) ने क्षेत्र में चीन के आक्रामक रुख का जिक्र करते हुए रविवार को कहा कि भारत और ताइवान को 'निरंकुशता' से खतरा है और अब वक्त आ गया है कि दोनों पक्ष (भारत और ताइवान) 'रणनीतिक सहयोग' करें. गेर ने दिए एक साक्षात्कार में क्षेत्र में तनाव बढ़ने के लिए पूर्वी तथा दक्षिण चीन सागर, हांगकांग और गलवान घाटी में चीन के कदमों का हवाला देते हुए कहा कि ताइवान और भारत को 'निरंकुशता के विस्तार को रोकने' के लिए हाथ मिलाने की आवश्यकता है.

अमेरिकी संसद की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की अगस्त में हाई-प्रोफाइल ताइवान यात्रा के बाद से चीन ने 2.3 करोड़ से अधिक की आबादी वाले इस स्व-शासित द्वीप के खिलाफ सैन्य आक्रामकता तेज कर दी है, जिससे वैश्विक चिंता पैदा हो गई है.दरअसल, चीन, ताइवान को अपना हिस्सा बताता है और उसने पेलोसी की ताइवान यात्रा पर कड़ी नाराजगी जताई थी. गेर ने कहा कि ताइवान पेलोसी की यात्रा के जवाब में चीन की सैन्य आक्रामकता के मद्देनजर ताइवान की खाड़ी में न्याय, शांति और स्थिरता के लिए खड़े रहने के वास्ते भारत की सराहना करता है.

उन्होंने कहा, 'भारत और ताइवान दोनों को निरंकुशता से खतरा है इसलिए दोनों पक्षों के बीच घनिष्ठ सहयोग न केवल वांछनीय, बल्कि आवश्यक है. मुझे लगता है कि अब वक्त आ गया है कि हम रणनीतिक साझेदारी करें. व्यापार और तकनीकी सहयोग बढ़ाने के साथ इसकी शुरुआत की जा सकती है.' राजदूत ने कहा कि चीनी सेना ताइवान और जापान के समुद्री तथा वायु क्षेत्र के आसपास अपनी आक्रामकता बढ़ा रही है जिससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति एवं सुरक्षा को गंभीर 'नुकसान' पहुंच रहा है. उन्होंने कहा कि ये कदम गलत अनुमान की संभावनाओं को बढ़ाते हैं लेकिन ये यथास्थिति में बदलाव की शुरुआत हो सकते हैं.

गेर ने कहा, 'हम इसकी सराहना करते हैं कि भारत, ताइवान जलडमरूमध्य में न्याय, शांति एवं स्थिरता के लिए खड़ा है. अब कुछ लोगों को गुमराह किया गया कि पेलोसी को आमंत्रित करके ताइवान और अमेरिका यथास्थिति बदलने के लिए उकसा रहे थे.' उन्होंने कहा, 'हालांकि, हम बीते वर्षों में जमीनी स्तर पर तथ्यों पर गौर करें तो गलवान घाटी, पूर्वी और दक्षिण चीन सागर तथा हांगकांग- यह स्पष्ट है कि कौन असल में उकसा रहा है. ताइवान जो भी कुछ हो रहा है उसके जवाब में महज अपनी रक्षा कर रहा है.'

गौरतलब है कि भारत के ताइवान के साथ औपचारिक कूटनीतिक संबंध नहीं हैं लेकिन दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध हैं. नई दिल्ली ने 1995 में ताइपे में दोनों पक्षों के बीच संवाद को बढ़ावा देने के लिए भारत-ताइपे संघ (आईटीए) की स्थापना की थी. गेर ने कहा, 'यह देखना दिलचस्प है कि हाल के वर्षों में इसमें मूलभूत बदलाव आए है कि कैसे भारत समेत अन्य लोकतांत्रिक देश लोकतंत्र विरोधी हथकंड़ों से निपटने के लिए न केवल प्रतिक्रिया दे रहे हैं बल्कि सक्रिय कदम भी उठा रहे हैं.'

उन्होंने कहा, 'इस संबंध में भारत, ताइवान की तरह है जो आक्रामकता तथा निरंकुश शासनों के सामने अग्रिम मोर्चे पर खड़े हैं. हमें निरंकुशता के विस्तार को रोकने के लिए एकजुट होने की जरूरत है.' ताइवान के अनौपचारिक राजदूत ने कहा कि ताइवान और भारत के बीच सहयोग की असीम संभावनाएं हैं. उन्होंने कहा, 'हम साइबर, अंतरिक्ष, समुद्री, हरित ऊर्जा, खाद्य सुरक्षा और यहां तक कि पर्यावरण और पाक कला पर और अधिक सहयोग कर सकते हैं.'

गेर ने कहा कि ताइवान में योग बहुत लोकप्रिय है तथा बॉलीवुड फिल्में भी तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं. उन्होंने कहा, 'हम एक-दूसरे को काफी कुछ दे सकते हैं.' चीन की सेना के कदमों का हवाला देते हुए गेर ने कहा कि ताइवान दशकों से तानाशाही के खिलाफ लड़ाई में अग्रिम मोर्चे पर रहा है. उन्होंने कहा, 'हर दिन हम दुर्भावनापूर्ण हैकिंग तथा गलत सूचना फैलाने की कई कोशिशों को रोकते हैं, हमारे लड़ाकू विमान तथा युद्धपोत अतिक्रमण की कोशिशें रोकते हैं और हमारे तटरक्षक मछली पकड़ने वाली अवैध नौकाओं को खदेड़ते हैं.' गेर ने कहा कि चीन इस तथ्य को कमतर करने की कोशिश कर रहा है कि ताइवान जलडमरूमध्य अंतरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र का हिस्सा है.

उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन, अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (आईसीएओ) तथा इंटरपोल में सार्थक रूप से भागीदारी की ताइवान की कोशिश में भारत का समर्थन मांगा. उन्होंने कहा कि चीन के कारण ताइवान, संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्था में भाग नहीं ले पाया है.

ये भी पढ़ें - वर्ष 1984 आधुनिक भारतीय इतिहास के सबसे काले वर्षों में से एक : अमेरिकी सीनेटर

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : ताइवान के अनौपचारिक राजदूत बौशुआन गेर (Baushuan Ger) ने क्षेत्र में चीन के आक्रामक रुख का जिक्र करते हुए रविवार को कहा कि भारत और ताइवान को 'निरंकुशता' से खतरा है और अब वक्त आ गया है कि दोनों पक्ष (भारत और ताइवान) 'रणनीतिक सहयोग' करें. गेर ने दिए एक साक्षात्कार में क्षेत्र में तनाव बढ़ने के लिए पूर्वी तथा दक्षिण चीन सागर, हांगकांग और गलवान घाटी में चीन के कदमों का हवाला देते हुए कहा कि ताइवान और भारत को 'निरंकुशता के विस्तार को रोकने' के लिए हाथ मिलाने की आवश्यकता है.

अमेरिकी संसद की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की अगस्त में हाई-प्रोफाइल ताइवान यात्रा के बाद से चीन ने 2.3 करोड़ से अधिक की आबादी वाले इस स्व-शासित द्वीप के खिलाफ सैन्य आक्रामकता तेज कर दी है, जिससे वैश्विक चिंता पैदा हो गई है.दरअसल, चीन, ताइवान को अपना हिस्सा बताता है और उसने पेलोसी की ताइवान यात्रा पर कड़ी नाराजगी जताई थी. गेर ने कहा कि ताइवान पेलोसी की यात्रा के जवाब में चीन की सैन्य आक्रामकता के मद्देनजर ताइवान की खाड़ी में न्याय, शांति और स्थिरता के लिए खड़े रहने के वास्ते भारत की सराहना करता है.

उन्होंने कहा, 'भारत और ताइवान दोनों को निरंकुशता से खतरा है इसलिए दोनों पक्षों के बीच घनिष्ठ सहयोग न केवल वांछनीय, बल्कि आवश्यक है. मुझे लगता है कि अब वक्त आ गया है कि हम रणनीतिक साझेदारी करें. व्यापार और तकनीकी सहयोग बढ़ाने के साथ इसकी शुरुआत की जा सकती है.' राजदूत ने कहा कि चीनी सेना ताइवान और जापान के समुद्री तथा वायु क्षेत्र के आसपास अपनी आक्रामकता बढ़ा रही है जिससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति एवं सुरक्षा को गंभीर 'नुकसान' पहुंच रहा है. उन्होंने कहा कि ये कदम गलत अनुमान की संभावनाओं को बढ़ाते हैं लेकिन ये यथास्थिति में बदलाव की शुरुआत हो सकते हैं.

गेर ने कहा, 'हम इसकी सराहना करते हैं कि भारत, ताइवान जलडमरूमध्य में न्याय, शांति एवं स्थिरता के लिए खड़ा है. अब कुछ लोगों को गुमराह किया गया कि पेलोसी को आमंत्रित करके ताइवान और अमेरिका यथास्थिति बदलने के लिए उकसा रहे थे.' उन्होंने कहा, 'हालांकि, हम बीते वर्षों में जमीनी स्तर पर तथ्यों पर गौर करें तो गलवान घाटी, पूर्वी और दक्षिण चीन सागर तथा हांगकांग- यह स्पष्ट है कि कौन असल में उकसा रहा है. ताइवान जो भी कुछ हो रहा है उसके जवाब में महज अपनी रक्षा कर रहा है.'

गौरतलब है कि भारत के ताइवान के साथ औपचारिक कूटनीतिक संबंध नहीं हैं लेकिन दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध हैं. नई दिल्ली ने 1995 में ताइपे में दोनों पक्षों के बीच संवाद को बढ़ावा देने के लिए भारत-ताइपे संघ (आईटीए) की स्थापना की थी. गेर ने कहा, 'यह देखना दिलचस्प है कि हाल के वर्षों में इसमें मूलभूत बदलाव आए है कि कैसे भारत समेत अन्य लोकतांत्रिक देश लोकतंत्र विरोधी हथकंड़ों से निपटने के लिए न केवल प्रतिक्रिया दे रहे हैं बल्कि सक्रिय कदम भी उठा रहे हैं.'

उन्होंने कहा, 'इस संबंध में भारत, ताइवान की तरह है जो आक्रामकता तथा निरंकुश शासनों के सामने अग्रिम मोर्चे पर खड़े हैं. हमें निरंकुशता के विस्तार को रोकने के लिए एकजुट होने की जरूरत है.' ताइवान के अनौपचारिक राजदूत ने कहा कि ताइवान और भारत के बीच सहयोग की असीम संभावनाएं हैं. उन्होंने कहा, 'हम साइबर, अंतरिक्ष, समुद्री, हरित ऊर्जा, खाद्य सुरक्षा और यहां तक कि पर्यावरण और पाक कला पर और अधिक सहयोग कर सकते हैं.'

गेर ने कहा कि ताइवान में योग बहुत लोकप्रिय है तथा बॉलीवुड फिल्में भी तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं. उन्होंने कहा, 'हम एक-दूसरे को काफी कुछ दे सकते हैं.' चीन की सेना के कदमों का हवाला देते हुए गेर ने कहा कि ताइवान दशकों से तानाशाही के खिलाफ लड़ाई में अग्रिम मोर्चे पर रहा है. उन्होंने कहा, 'हर दिन हम दुर्भावनापूर्ण हैकिंग तथा गलत सूचना फैलाने की कई कोशिशों को रोकते हैं, हमारे लड़ाकू विमान तथा युद्धपोत अतिक्रमण की कोशिशें रोकते हैं और हमारे तटरक्षक मछली पकड़ने वाली अवैध नौकाओं को खदेड़ते हैं.' गेर ने कहा कि चीन इस तथ्य को कमतर करने की कोशिश कर रहा है कि ताइवान जलडमरूमध्य अंतरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र का हिस्सा है.

उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन, अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (आईसीएओ) तथा इंटरपोल में सार्थक रूप से भागीदारी की ताइवान की कोशिश में भारत का समर्थन मांगा. उन्होंने कहा कि चीन के कारण ताइवान, संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्था में भाग नहीं ले पाया है.

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(पीटीआई-भाषा)

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