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ईयू की संसद ने सू ची को साखरोव पुरस्कार समूह से हटाया

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Published : Sep 10, 2020, 10:08 PM IST

यूरोपीय संसद ने म्यामांर की नेता आंग सान सू ची को अपने शीर्ष मानवाधिकार पुरस्कार के पूर्व विजेताओं के समूह से हटा दिया है. बता दें कि सू ची 1991 का नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया था. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर..

आंग सान सू ची
आंग सान सू ची

ब्रुसेल्स : यूरोपीय संसद ने गुरुवार को म्यामांर की नेता आंग सान सू ची को अपने शीर्ष मानवाधिकार पुरस्कार के पूर्व विजेताओं के समूह से हटा दिया है और इसके लिए रोहिंग्या मुस्लिम जातीय समूह के दमन पर उनके कार्रवाई नहीं करने की वजह बताई गई है.

सत्ता में आने से पहले लंबे समय तक राजनीतिक बंदी रहीं सू ची की एक समय म्यामांर के सैन्य शासन के खिलाफ अहिंसक संघर्ष के लिए प्रशंसा हुई थी और उन्हें 1991 का नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया था.

लेकिन पिछले कुछ सालों में म्यामां में रोहिंग्या समुदाय के दमन के लिए उनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई है. 2017 में सेना की नृशंस उग्रवाद विरोधी कार्रवाई से बचने के लिए सात लाख से अधिक रोहिंग्या पड़ोसी बांग्लादेश चले गये थे.

ईयू की संसद ने एक बयान में कहा कि साखरोव पुरस्कार विजेताओं के समुदाय की सभी गतिविधियों से औपचारिक रूप से आंग सान सू ची को अलग करने का फैसला म्यामां में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ जारी अपराधों को स्वीकार नहीं करने और उन पर कार्रवाई नहीं करने के ऐवज में लिया गया है.

सू ची ने 1990 में साखरोव पुरस्कार जीता था लेकिन वह 23 साल बाद ही यह पुरस्कार प्राप्त कर सकीं.

इस समय वह म्यामां की स्टेट काउंसलर या वस्तुत: राष्ट्र प्रमुख हैं.

यह भी पढ़ें सीएए विरोधी प्रस्ताव पर यूरोपीय संसद में होगी बहस

स्टेट काउंसलर के रूप में सू ची सेना के काम पर नजर नहीं रखतीं, लेकिन उन्होंने रोहिंग्या समुदाय के लोगों के खिलाफ सेना द्वारा नरसंहार की कार्रवाई किए जाने के आरोपों को बार-बार खारिज किया है.

ब्रुसेल्स : यूरोपीय संसद ने गुरुवार को म्यामांर की नेता आंग सान सू ची को अपने शीर्ष मानवाधिकार पुरस्कार के पूर्व विजेताओं के समूह से हटा दिया है और इसके लिए रोहिंग्या मुस्लिम जातीय समूह के दमन पर उनके कार्रवाई नहीं करने की वजह बताई गई है.

सत्ता में आने से पहले लंबे समय तक राजनीतिक बंदी रहीं सू ची की एक समय म्यामांर के सैन्य शासन के खिलाफ अहिंसक संघर्ष के लिए प्रशंसा हुई थी और उन्हें 1991 का नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया था.

लेकिन पिछले कुछ सालों में म्यामां में रोहिंग्या समुदाय के दमन के लिए उनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई है. 2017 में सेना की नृशंस उग्रवाद विरोधी कार्रवाई से बचने के लिए सात लाख से अधिक रोहिंग्या पड़ोसी बांग्लादेश चले गये थे.

ईयू की संसद ने एक बयान में कहा कि साखरोव पुरस्कार विजेताओं के समुदाय की सभी गतिविधियों से औपचारिक रूप से आंग सान सू ची को अलग करने का फैसला म्यामां में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ जारी अपराधों को स्वीकार नहीं करने और उन पर कार्रवाई नहीं करने के ऐवज में लिया गया है.

सू ची ने 1990 में साखरोव पुरस्कार जीता था लेकिन वह 23 साल बाद ही यह पुरस्कार प्राप्त कर सकीं.

इस समय वह म्यामां की स्टेट काउंसलर या वस्तुत: राष्ट्र प्रमुख हैं.

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स्टेट काउंसलर के रूप में सू ची सेना के काम पर नजर नहीं रखतीं, लेकिन उन्होंने रोहिंग्या समुदाय के लोगों के खिलाफ सेना द्वारा नरसंहार की कार्रवाई किए जाने के आरोपों को बार-बार खारिज किया है.

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