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पाकिस्तान या टेररिस्तान...क्या बदलेगा कभी रवैया ?

वित्तीय कार्रवाई कार्यदल ने हाल ही में पाकिस्तान को फिर से चेताया है. लेकिन आंतक की भाषा बोलने वाला हमारा पड़ोसी देश बाज नहीं आता. यह बात किसी से नहीं छुपी है कि वह आतंकियों का स्वर्ग है लेकिन यह उसके लिए कर्क रोग की तरह है.

फाइल फोटो
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Published : Oct 25, 2019, 4:19 PM IST

Updated : Oct 25, 2019, 6:51 PM IST

पाकिस्तान में चाहे जो भी शासक हो या किसी भी सत्तारूढ़ पार्टी की हुकूमत रहे, वह भारत के खिलाफ सिर्फ और सिर्फ शैतान की आतंकी भाषा का ही प्रयोग करता है. यह हमारे पड़ोसी देश का एकमात्र उद्देश्य है, हालांकि वह खुद आतंकी क्लेश से बहुत पीड़ित है.

अपने बुरे पंथ के इतने प्रतिकूल प्रभावों का सामना करने के बाद भी उनकी सोच में कोई बदलाव नहीं आया है. यह पूरे उप महाद्वीप के लिए एक गंभीर अभिशाप बन गया है.

वित्तीय कार्रवाई कार्यदल ने पिछले साल पाकिस्तान के लिए 27 मानक कार्य-योजना का समर्थन किया, जिसमें आतंकवाद को सीधे समर्थन देने के खिलाफ 27 गंभीर मुद्दों को लेकर उसपर सीधा निशाना साधा था.

पाकिस्तान ने उस कार्य योजना पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया. इसके परिणामस्वरूप, वित्तीय कार्रवाई कार्यदल के क्षेत्रीय सहयोगी, एशिया प्रशांत समूह, ने अगस्त 2019 की शुरुआत में, पाकिस्तान को काली सूची में डालने की जोरदार सिफारिश की.
वित्तीय कार्रवाई कार्यदल ने पाकिस्तान को ग्रे सूची की उच्च प्राथमिकता में सूचीबद्ध किया था और उस सूची के कम से कम 22 मुद्दों को तुरंत लागू करने के लिए सख्ती से कहा था.

पाकिस्तान ऐसा करने में दोबारा नाकामियाब रहा. ईरान और उत्तरी कोरिया की तरह पाकिस्तान को तुरंत काली सूची में डालने के बजाय वित्तीय कार्रवाई कार्यदल ने उसे और 4 महीनों का अवसर दिया है. वित्तीय कार्रवाई कार्यदल के अध्यक्ष क्सिंग्मिन लिऊ ने पाकिस्तान को चेताया कि यदि उसने कार्यसूची पर समर्पित प्रतिबद्धता से ठोस क़दम फरवरी 2020 था नहीं उठाये तो उसे काली सूची में सूचीबद्ध के दिया जायेगा.

वित्तीय कार्रवाई कार्यदल, जो 37 सदस्यों और दो क्षेत्रीय निगमों का एक संयुक्त उद्यम है, पिछले साल जून में इसकी अध्यक्षता चीन को सौंपी गई थी. कार्य दल के फैसले को किसी भी तीन देशों के समर्थन न मिलने पर अमान्य करार किया जा सकता है.

इस्लामाबाद को इसी का फायदा मिला जब चीन, तुर्की और मलेशिया ने अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगने से बचा लिया. दुनिया को यह देखने का इंतजार करना होगा कि आने वाले चार महीनों में पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम कसने के लिए कार्य योजना को लागू करता है भी या नहीं.

तीन दशक पहले जी -7 शिखर सम्मेलन, ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि अनधिकृत निधि प्रवाह बैंकिंग प्रणाली और देशों की वित्तीय स्थिरता को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है. इसने मनी लॉड्रिंग को प्रतिबंधित करने के लिए एक दृढ़ लक्ष्य के साथ वित्तीय कार्रवाई कार्यदल का गठन किया था.

कार्यदल ने सफर पूरी कर्म्बद्धता से शुरू किया और लगातार स्वयं संचालित कार्य योजना को धार देता जा रहा है. वह सारे वित्तीय संसाधनों को सख्ती से रोककर आतंकवाद को खत्म करने के उद्देश्य पर अग्रसर है, जिस कार्य को अंजाम देने के लिए 2001 वित्तीय कार्रवाई कार्यदल का गठन किया गया था.

विशेष रूप से नौ सिफारिशों जो मनी लॉड्रिंग से जुड़े आतंकवाद को धन की आपूर्ति पर प्रतिबंध के संबंध में विशेष रूप से गठित सिफारिशें हैं वे सभी देशों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ सख्त दिशानिर्देशों के रूप में दी गई हैं जिन्हें सभी देशों द्वारा पालन और अपनाया जाना है.

इसके परिणामस्वरुप 2012 - 2015 के बीच पहली बार पाकिस्तान वित्तीय कार्रवाई कार्यदल की ग्रे सूची में लगातार सबसे ऊपर पर रहा है. इस वर्ष जून महीने के अंतिम सप्ताह में इसे फिर से उसी सूची में दर्ज किया गया है. सुधारात्मक उपाय करने के बावजूद पाकिस्तान ने चालाकियों और हरकतों से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान हटाने की बहुत कोशिश की मगर इस कार्य में भी वह विफल रहा है.

पाक ने आतंकवादी समूह जमात उद दावा पर प्रतिबंध लगा दिया है और यह दिखावा किया है कि इसने पूरे आतंकवादी समूहों को धन की आमद को पूरी तरह से रोक दिया है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उस पर भव्य प्रचार भी किया. कुछ ही महीनों में उस महान नाटक के पीछे की वास्तविक तस्वीर और पाकिस्तान के वास्तविक इरादों की असलियत का दुनिया के सामने खुलासा हो गया.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पिछले जुलाई घोषणा की थी कि उनकी सरकार सबसे पहली सरकार है जिसने पाकिस्तान की भूमि पर आतंकवादी समूहों को नियंत्रित और निरस्त्र किया है. कुछ ही समय के भीतर उन्होंने खुद एक विरोधाभासी बयान दिया और घोषणा की थी कि उनकी जमीन पर आज भी लगभग 30 से 40 हजार आतंकवादी हैं.

इमरान की सरकार ने विश्व कुख्यात आतंकवादी मसूद अजहर की पेंशन योजना के आवेदन को स्वीकार करने और उसका पालन करने का श्रेय भी लिया है.

हाल ही में वित्तीय कार्रवाई कार्यदल के शिखर सम्मेलन में श्रीलंका, ट्यूनीशिया और इथियोपिया को ग्रे सूची से हटा दिया है और अपने स्वयं के निर्देशों के पालन के आधार पर आइस्लैण्ड, मैगनोलिया और जिम्बाब्वे को जोड़ा है. भारत को भौगोलिक और आर्थिक रूप से परास्त करने के लिए पाकिस्तान तीन दशकों से अधिक समय तक शीत युद्ध में शामिल रहा. इस लक्ष्य को हासिल करने लिए उसने आतंकवादी समूहों को प्रोत्साहित किया है.

इसका नतीजा यह है कि यह अपने ही अभिशाप का सबसे बड़ा स्वयं भोगी बनकर रह गया है और आज उच्चतम दिवालियापन के स्तर पर पहुंच गया है. पाकिस्तान ने आतंकवाद को विदेश नीति के लिए श्रद्धांजलि के रूप में अपनाया है, जिसके परिणामस्वरूप उस देश की एक चौथाई आबादी आज गंभीर गरीबी से ग्रस्त है.

4 करोड़ का ऋण, 3 लाख और 40 हज़ार करोड़ रुपये का वित्तीय घाटा, सकल जीडीपी को एक वर्ष के समय में 3.3 करोड़ तक घटा दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति जीडीपी में 8 प्रतिशत की गिरावट आई है, कृषि में आज भी एक प्रतिशत विकास नहीं है, मुद्रास्फीति की दर 13 से 15 प्रतिशत के बीच है, ये सभी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की ढहती स्थिति के वास्तविक आंकड़े हैं.

पढ़ें-पाक को अंतिम मोहलत, FATF की चेतावनी- 'सुधर जाओ, वरना ब्लैक लिस्ट होना तय'

अब पाकिस्तान इस उलझन में है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा अंतरिम राहत के रूप में दिए गए 6600 करोड़ का ऋण वास्तव में उस देश के लिए वरदान है या अभिशाप. यदि यह वित्तीय कार्रवाई कार्यदल की दिशा निर्देशों को लागू नहीं करता है तो जिन गंभीर समस्याओं का सामना करने वाला है जिसे शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता है.

अगर पाकिस्तान वास्तव में उधारदाताओं की गैर-सहायक होने के कारन हुए आर्थिक पतन की दयनीय स्थिति से खुद को बचाना चाहता है, तो उसे देश में आतंकवादी समूहों को धन देना तुरंत बंद करना होगा और अपनी अखंडता साबित करनी होगी.

यदि हमेशा की तरह एक बार फिर उसने दुनिया को अपने ढोंग से छलने की कोशिश की तो टेरररिस्तन को गंभीर अप्रत्याशित समस्याओं का सामना करना पड़ेगा जो सीधे उस देश को भयानक आर्थिक गिरावट और घोर विपदा की ओर ले जाएगा.

पाकिस्तान में चाहे जो भी शासक हो या किसी भी सत्तारूढ़ पार्टी की हुकूमत रहे, वह भारत के खिलाफ सिर्फ और सिर्फ शैतान की आतंकी भाषा का ही प्रयोग करता है. यह हमारे पड़ोसी देश का एकमात्र उद्देश्य है, हालांकि वह खुद आतंकी क्लेश से बहुत पीड़ित है.

अपने बुरे पंथ के इतने प्रतिकूल प्रभावों का सामना करने के बाद भी उनकी सोच में कोई बदलाव नहीं आया है. यह पूरे उप महाद्वीप के लिए एक गंभीर अभिशाप बन गया है.

वित्तीय कार्रवाई कार्यदल ने पिछले साल पाकिस्तान के लिए 27 मानक कार्य-योजना का समर्थन किया, जिसमें आतंकवाद को सीधे समर्थन देने के खिलाफ 27 गंभीर मुद्दों को लेकर उसपर सीधा निशाना साधा था.

पाकिस्तान ने उस कार्य योजना पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया. इसके परिणामस्वरूप, वित्तीय कार्रवाई कार्यदल के क्षेत्रीय सहयोगी, एशिया प्रशांत समूह, ने अगस्त 2019 की शुरुआत में, पाकिस्तान को काली सूची में डालने की जोरदार सिफारिश की.
वित्तीय कार्रवाई कार्यदल ने पाकिस्तान को ग्रे सूची की उच्च प्राथमिकता में सूचीबद्ध किया था और उस सूची के कम से कम 22 मुद्दों को तुरंत लागू करने के लिए सख्ती से कहा था.

पाकिस्तान ऐसा करने में दोबारा नाकामियाब रहा. ईरान और उत्तरी कोरिया की तरह पाकिस्तान को तुरंत काली सूची में डालने के बजाय वित्तीय कार्रवाई कार्यदल ने उसे और 4 महीनों का अवसर दिया है. वित्तीय कार्रवाई कार्यदल के अध्यक्ष क्सिंग्मिन लिऊ ने पाकिस्तान को चेताया कि यदि उसने कार्यसूची पर समर्पित प्रतिबद्धता से ठोस क़दम फरवरी 2020 था नहीं उठाये तो उसे काली सूची में सूचीबद्ध के दिया जायेगा.

वित्तीय कार्रवाई कार्यदल, जो 37 सदस्यों और दो क्षेत्रीय निगमों का एक संयुक्त उद्यम है, पिछले साल जून में इसकी अध्यक्षता चीन को सौंपी गई थी. कार्य दल के फैसले को किसी भी तीन देशों के समर्थन न मिलने पर अमान्य करार किया जा सकता है.

इस्लामाबाद को इसी का फायदा मिला जब चीन, तुर्की और मलेशिया ने अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगने से बचा लिया. दुनिया को यह देखने का इंतजार करना होगा कि आने वाले चार महीनों में पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम कसने के लिए कार्य योजना को लागू करता है भी या नहीं.

तीन दशक पहले जी -7 शिखर सम्मेलन, ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि अनधिकृत निधि प्रवाह बैंकिंग प्रणाली और देशों की वित्तीय स्थिरता को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है. इसने मनी लॉड्रिंग को प्रतिबंधित करने के लिए एक दृढ़ लक्ष्य के साथ वित्तीय कार्रवाई कार्यदल का गठन किया था.

कार्यदल ने सफर पूरी कर्म्बद्धता से शुरू किया और लगातार स्वयं संचालित कार्य योजना को धार देता जा रहा है. वह सारे वित्तीय संसाधनों को सख्ती से रोककर आतंकवाद को खत्म करने के उद्देश्य पर अग्रसर है, जिस कार्य को अंजाम देने के लिए 2001 वित्तीय कार्रवाई कार्यदल का गठन किया गया था.

विशेष रूप से नौ सिफारिशों जो मनी लॉड्रिंग से जुड़े आतंकवाद को धन की आपूर्ति पर प्रतिबंध के संबंध में विशेष रूप से गठित सिफारिशें हैं वे सभी देशों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ सख्त दिशानिर्देशों के रूप में दी गई हैं जिन्हें सभी देशों द्वारा पालन और अपनाया जाना है.

इसके परिणामस्वरुप 2012 - 2015 के बीच पहली बार पाकिस्तान वित्तीय कार्रवाई कार्यदल की ग्रे सूची में लगातार सबसे ऊपर पर रहा है. इस वर्ष जून महीने के अंतिम सप्ताह में इसे फिर से उसी सूची में दर्ज किया गया है. सुधारात्मक उपाय करने के बावजूद पाकिस्तान ने चालाकियों और हरकतों से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान हटाने की बहुत कोशिश की मगर इस कार्य में भी वह विफल रहा है.

पाक ने आतंकवादी समूह जमात उद दावा पर प्रतिबंध लगा दिया है और यह दिखावा किया है कि इसने पूरे आतंकवादी समूहों को धन की आमद को पूरी तरह से रोक दिया है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उस पर भव्य प्रचार भी किया. कुछ ही महीनों में उस महान नाटक के पीछे की वास्तविक तस्वीर और पाकिस्तान के वास्तविक इरादों की असलियत का दुनिया के सामने खुलासा हो गया.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पिछले जुलाई घोषणा की थी कि उनकी सरकार सबसे पहली सरकार है जिसने पाकिस्तान की भूमि पर आतंकवादी समूहों को नियंत्रित और निरस्त्र किया है. कुछ ही समय के भीतर उन्होंने खुद एक विरोधाभासी बयान दिया और घोषणा की थी कि उनकी जमीन पर आज भी लगभग 30 से 40 हजार आतंकवादी हैं.

इमरान की सरकार ने विश्व कुख्यात आतंकवादी मसूद अजहर की पेंशन योजना के आवेदन को स्वीकार करने और उसका पालन करने का श्रेय भी लिया है.

हाल ही में वित्तीय कार्रवाई कार्यदल के शिखर सम्मेलन में श्रीलंका, ट्यूनीशिया और इथियोपिया को ग्रे सूची से हटा दिया है और अपने स्वयं के निर्देशों के पालन के आधार पर आइस्लैण्ड, मैगनोलिया और जिम्बाब्वे को जोड़ा है. भारत को भौगोलिक और आर्थिक रूप से परास्त करने के लिए पाकिस्तान तीन दशकों से अधिक समय तक शीत युद्ध में शामिल रहा. इस लक्ष्य को हासिल करने लिए उसने आतंकवादी समूहों को प्रोत्साहित किया है.

इसका नतीजा यह है कि यह अपने ही अभिशाप का सबसे बड़ा स्वयं भोगी बनकर रह गया है और आज उच्चतम दिवालियापन के स्तर पर पहुंच गया है. पाकिस्तान ने आतंकवाद को विदेश नीति के लिए श्रद्धांजलि के रूप में अपनाया है, जिसके परिणामस्वरूप उस देश की एक चौथाई आबादी आज गंभीर गरीबी से ग्रस्त है.

4 करोड़ का ऋण, 3 लाख और 40 हज़ार करोड़ रुपये का वित्तीय घाटा, सकल जीडीपी को एक वर्ष के समय में 3.3 करोड़ तक घटा दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति जीडीपी में 8 प्रतिशत की गिरावट आई है, कृषि में आज भी एक प्रतिशत विकास नहीं है, मुद्रास्फीति की दर 13 से 15 प्रतिशत के बीच है, ये सभी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की ढहती स्थिति के वास्तविक आंकड़े हैं.

पढ़ें-पाक को अंतिम मोहलत, FATF की चेतावनी- 'सुधर जाओ, वरना ब्लैक लिस्ट होना तय'

अब पाकिस्तान इस उलझन में है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा अंतरिम राहत के रूप में दिए गए 6600 करोड़ का ऋण वास्तव में उस देश के लिए वरदान है या अभिशाप. यदि यह वित्तीय कार्रवाई कार्यदल की दिशा निर्देशों को लागू नहीं करता है तो जिन गंभीर समस्याओं का सामना करने वाला है जिसे शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता है.

अगर पाकिस्तान वास्तव में उधारदाताओं की गैर-सहायक होने के कारन हुए आर्थिक पतन की दयनीय स्थिति से खुद को बचाना चाहता है, तो उसे देश में आतंकवादी समूहों को धन देना तुरंत बंद करना होगा और अपनी अखंडता साबित करनी होगी.

यदि हमेशा की तरह एक बार फिर उसने दुनिया को अपने ढोंग से छलने की कोशिश की तो टेरररिस्तन को गंभीर अप्रत्याशित समस्याओं का सामना करना पड़ेगा जो सीधे उस देश को भयानक आर्थिक गिरावट और घोर विपदा की ओर ले जाएगा.

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Last Updated : Oct 25, 2019, 6:51 PM IST
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