हांगकांग: विश्लेषकों का मानना है कि दलाई लामा के स्थाई रूप से भारत में निर्वासन शुरू करने के 60 साल बाद तिब्बत की आजादी का उद्देश्य प्रभावहीन होता हुआ दिखता है. दलाई लामा को तिब्बत के लिए काम करने के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाजा जा चुका है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें प्रसिद्धि मिली.
लंदन में स्कूल ऑफ ओरियंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (एसओएएस) में तिब्बती अध्ययन के संयोजक नाथन हिल ने कहा कि तिब्बत के भीतर चीन ने अपने सख्त शासन के किसी भी संगठित विरोध को प्रभावी तरीके से कमजोर कर दिया है.
वहीं तिब्बत के बाहर भी विश्व के कई नेताओं का समर्थन पिछले कुछ सालों में लगभग मौन हो गया है जबकि एक समय इन सरकारों ने तिब्बत के उद्देश्य को पुरजोर समर्थन दिया है.
हिल ने कहा, ‘तिब्बत का भाग्य चीन के हाथ में है. क्षेत्र के बाहर रहने वाले तिब्बतियों का तिब्बत की किस्मत से ज्यादा कुछ लेनादेना नहीं है और इसमें दलाई लामा भी शामिल हैं.’
बौद्ध नेता दलाई लामा ने 2007 में कहा था कि उनका क्षेत्र 2000 साल में सबसे ज्यादा बुरी स्थिति से गुजर रहा है.