वाशिंगटन : तिब्ब्त पर सख्त नियंत्रण की चीन की योजना की अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडेन ने आलोचना की है.उन्होंने कहा कि अगर वह सत्ता में आए तो उनका प्रशासन सूदूर हिमालयी क्षेत्र में मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाएगा.
बाइडेन ने कहा कि मेरा प्रशासन तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिये जिम्मेदार चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाएगा और तिब्बतवासियों की मदद के लिए कदम उठाएगा. इनमें रेडियो फ्री एशिया और वॉइस ऑफ अमेरिका रेडियो सेवाओं में तिब्बत भाषा सेवा को शामिल करने का कदम भी होगा ताकि दुनिया की जानकारी तिब्बत के लोगों तक पहुंच सके.
बाइडेन ने वादा किया कि वह राष्ट्रपति बनने पर दलाई लामा से मुलाकात करेंगे. तिब्बत मामलों के लिए एक नया विशेष समन्वयक नियुक्त करेंगे. इसके साथ ही इस बात पर जोर देंगे कि चीन की सरकार अमेरिकी राजनयिकों और पत्रकारों समेत अमेरिकी नागरिकों की तिब्बत तक पहुंच को बहाल करें.
बाइडेन ने कहा कि जहां (अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड) ट्रंप ने आंखे मूंद रखी हैं, वहीं बाइडेन-हैरिस प्रशासन तिब्बत के लोगों के समर्थन में खड़ा होगा. बाइडेन ने आरोप लगाया कि ट्रंप की चीन की नीति कमजोर है.
इस सप्ताहांत चीनी सरकार ने तिब्बत पर नियंत्रण को विस्तार देने की अपनी योजनाओं की घोषणा की थी, जिसके तहत तिब्बत के लोगों के साथ मानवाधिकार का उल्लंघन और उनकी धार्मिक स्वंतत्रता व गरिमा का हनन जारी रह सकता है. इसको संज्ञान में लेते हुए बाइडेन ने कहा कि तिब्बत में जातीय अल्पसंख्यकों की विशिष्ट संस्कृति, भाषा और मान्यताओं को कुचलने की यह बीजिंग की हालिया कोशिश है.
इससे एक दिन पहले अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने बीजिंग से कहा था कि वे दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों से बिना पूर्व शर्त के वार्ता में हिस्सा लें और मतभेदों को सुलझाने वाले समझौते पर पहुंचे.
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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पिछले सप्ताह कहा था कि एक नए युग के लिए तिब्बत पर शासन के लिए पार्टी की नीतियों को पूर्ण तरीके से लागू करने के प्रयास अवश्य किए जाने चाहिए. सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव शी ने तिब्बती बौद्ध धर्म का चीनीकरण करने की भी बात कही है.
तिब्बत अब भी बौद्ध धर्म के प्रति समर्पित है. दलाई लामा 1959 से भले ही भारत में रह रहे हैं, लेकिन तिब्बत के लोग अब भी उन्हें अध्यात्मिक प्रमुख मानते हैं. 1950 में चीन ने दूरदाज इलाकों में भी कब्जा कर लिया था और इसके बाद मजबूर होकर दलाई लामा को तिब्बत छोड़ना पड़ा था.
बीजिंग दलाई लामा को अलगाववादी के रूप में देखता है, जो तिब्बत को चीन से अलग करना चाहते हैं. वहीं 1989 में नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले दलाई लामा का कहना है कि वह तिब्बत के लोगों के लिए धार्मिक स्वतंत्रता और स्वायत्ता जैसे बड़े अधिकार चाहते हैं.
तिब्बत में 1959 से ही लगातार हिंसा, अशांति और बीजिंग के खिलाफ विरोध का माहौल है. चीन का कहना है कि तिब्बत 13वीं सदी से ही उसका हिस्सा है और हमेशा उसका हिस्सा ही रहेगा.