लंदन : यूरोप में निर्मित एस्ट्राजेनेका टीके को जहां यूरोप में मान्यता दी गई है वहीं भारत में निर्मित इसी टीके को हरी झंडी नहीं दी गई है. ईयू के नियामकों का कहना है कि एस्ट्रोजेनेका ने भारत की इकाई में गुणवत्ता नियंत्रण मानकों समेत अन्य आवश्यक कागजी कार्यवाही पूरी नहीं की है.
हालांकि, कुछ विशेषज्ञ ईयू के इस कदम को भेदभावपूर्ण एवं अवैज्ञानिक करार देते हैं. उनका तर्क है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एस्ट्राजेनेका की भारत स्थित इकाई का निरीक्षण करने के बाद उसे मंजूरी दी है. संयुक्त राष्ट्र के टीकाकरण कार्यक्रम के जरिए टीके की दोनों खुराक लेने वाले लाखों लोगों को यूरोपीय संघ के कई देशों के अलावा अन्य देश भी अपने यहां यात्रा की अनुमति नहीं दे रहे हैं क्योंकि ये देश भारत में निर्मित टीके को यात्रा के लिए मान्यता नहीं दे रहे हैं.
डॉ. इफेन्यी सोफोर ने कहा कि भारत में निर्मित जो टीका उन्हें लगाया गया, उसे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मंजूरी दी गई है और इसे संयुक्त राष्ट्र के कोवैक्स टीकाकरण अभियान के जरिए उपलब्ध कराया गया है.
सोफोर ने कहा कि कोवैक्स को आर्थिक सहायता देने के लिए हम ईयू के आभारी हैं. हालांकि, अब वे एक ऐसे टीके को लेकर भेदभाव कर रहे हैं जिसे उन्होंने बढ़ावा दिया. ब्रिटेन के वारविक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ईवो व्लायेव ने कहा कि पश्चिमी देशों द्वारा गरीब देशों में दी गई टीकों की खुराक को मान्यता नहीं देना संदेह को बढ़ावा देगा.
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उन्होंने कहा कि लोग टीके को लेकर पहले ही शक जता रहे हैं, ऐसे कदम से यह शंका और बढ़ेगी. अंतरराष्ट्रीय राहत समिति में स्वास्थ्य निदेशक डॉ. मेस्फिन टेकलू टेस्सेमा ने कहा कि जिन देशों ने डब्ल्यूएचओ द्वारा स्वीकृत टीकों को मान्यता देने से इंकार कर दिया है, वे वैज्ञानिक साक्ष्य को नकार रहे हैं.
(पीटीआई-भाषा)