मुंबई: रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था की धीमी पड़ती चाल को गति देने के लिये बुधवार को उम्मीद के अनुरूप कदम उठाते हुये प्रमुख नीतिगत दर रेपो में 0.35 प्रतिशत की कटौती कर दी. यह लगातार चौथा मौका है जब रेपो दर में कमी की गयी है. इस कटौती के बाद रेपो दर 5.40 प्रतिशत रह गयी.
लगातार चौथी बार नीतिगत दर में कटौती से बैंक कर्ज सस्ता होने तथा आवास, वाहन कर्ज की मासिक किस्तें (ईएमआई) कम होने के साथ साथ कंपनियों के लिये कर्ज सस्ता होने की उम्मीद है. इसी सप्ताह वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बैठक में बैंकों ने आरबीआई द्वारा नीतिगत दर में कटौती का लाभ ग्राहकों तक पहुंचाने का आश्वासन दिया.
- रिजर्व बैंक ने रेपो दर को 0.35 प्रतिशत घटाकर 5.40 प्रतिशत किया
- रिवर्स रेपो दर को संशोधित कर 5.15 प्रतिशत किया गया
- दिसबंर 2019 से एनईएफटी 24×7 उपलब्ध कराया जाएगा
- मौद्रिक नीति रुख को नरम बनाये रखा गया
- जीडीपी वृद्धि दर का पूर्वानुमान जून बैठक के सात प्रतिशत से घटाकर 6.90 प्रतिशत किया गया
- वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी छमाही के लिये खुदरा मुद्रास्फीति 3.5 से 3.7 प्रतिशत के तय लक्ष्य के दायरे में रहने का अनुमान
- मौद्रिक नीति समिति के चार सदस्यों ने रेपो दर में 0.35 प्रतिशत कटौती का पक्ष लिया, दो सदस्यों ने 0.25 प्रतिशत कटौती की वकालत की
- अगली मौद्रिक नीति की घोषणा एक अक्टूबर को होगी
रेपो दर में इस कटौती के बाद रिजर्व बैंक की रिवर्स रेपो दर भी कम होकर 5.15 प्रतिशत, सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर घटकर 5.65 प्रतिशत रह गई.
रेपो दर में यह कटौती सामान्य तौर पर होने वाली कटौती से हटकर है. आम तौर पर आरबीआई रेपो दर में 0.25 प्रतिशत या 0.50 प्रतिशत की कटौती करता रहा है, लेकिन इस बार उसने 0.35 प्रतिशत की कटौती की है. रेपो दर में चार बार में अब तक कुल 1.10 प्रतिशत की कटौती की जा चुकी है.
यह पूछे जाने पर कि आरबीआई ने आखिर रेपो दर में 0.35 प्रतिशत की कटौती क्यों की, आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि यह कोई अप्रत्याशित नहीं है, यह कटौती संतुलित है. उन्होंने कहा कि 0.25 प्रतिशत की कटौती अपर्याप्त मानी जा रही थी जबकि 0.50 प्रतिशत की कटौती अधिक होती. इसीलिए एमपीसी ने संतुलित रुख अपनाते हुये 0.35 प्रतिशत कटौती की है. केंद्रीय बैंक ने 2019-20 के लिये सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के जून के अनुमान को भी 7.0 प्रतिशत से घटाकर 6.9 प्रतिशत कर दिया.
आरबीआई गवर्नर की अध्यक्षता वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने मौद्रिक नीति का नरम रुख बरकरार रखने का निर्णय किया. इससे यह संकेत मिलता है कि मौद्रिक नीति में आने वाले समय में जरूरत पड़ने पर और कटौती हो सकती है. हालांकि, यह मुद्रास्फीति जैसे कारकों पर निर्भर करेगी.
केंद्रीय बैंक ने एक बयान में कहा, "मौजूदा और उभरती वृहत आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर एमपीसी ने आज (बुधवार) की बैठक में तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत नीतिगत दर रेपो में तत्काल प्रभाव से 0.35 प्रतिशत कटौती कर 5.40 प्रतिशत करने का निर्णय किया."
समिति ने कहा कि मुद्रास्फीति फिलहाल अगले 12 महीनों तक लक्ष्य के दायरे में रहने का अनुमान है. ऐसे में जून में द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद भी घरेलू आर्थिक गतिविधियां नरम बनी हुई है. वहीं वैश्विक स्तर पर नरमी तथा दुनिया की दो अर्थव्यवस्थाओं के बीच बढ़ते व्यापार तनाव से इसके नीचे जाने का जोखिम बरकरार है.
केंद्रीय बैंक को मुद्रास्फीति 2 प्रतिशत घट-बढ़ के साथ 4 प्रतिशत के दायरे में रहने का लक्ष्य मिला हुआ है. समिति ने कहा कि पिछली बार की रेपो दर में कटौती का लाभ धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था में पहुंच रहा है, नरम मुद्रास्फीति परिदृश्य नीतिगत कदम उठाने की गुंजाइश देता है ताकि उत्पादन में नकारात्मक अंतर की भरपाई की जा सके.
आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष की तीसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा, "मुद्रास्फीति लक्ष्य की मिली जिम्मेदारी को निभाते हुए सकल मांग, खासकर निजी निवेश को गति देकर वृद्धि संबंधी चिंता को दूर करना इस समय उच्च प्राथमिकता में है."
यह लगातार चौथी बार है जब रेपो दर में कटौती की गयी है. इससे पहले सात फरवरी 2019 को पेश मौद्रिक समीक्षा में 0.25 प्रतिशत कटौती की गई. उसके बाद चार अप्रैल, फिर तीन जून को हुई समीक्षा में भी इतनी ही कटौती की गई. कुल मिलाकर अब रेपो दर में 1.10 प्रतिशत की कटौती की जा चुकी है.
वृद्धि दर के बारे में आरबीआई ने कहा, "वित्त वर्ष 2019-20 के लिये जीडीपी वृद्धि दर के जून के 7 प्रतिशत अनुमान को संशोधित कर 6.9 प्रतिशत कर दिया गया है. इसमें चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में 5.8 से 6.6 प्रतिशत और दूसरी छमाही में 7.3 से 7.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है. इसमें नीचे जाने का जोखिम बना हुआ है. वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है."
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 3.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है जबकि दूसरी छमाही में इसके 3.5 से 3.7 प्रतिशत के दायरे में रहने का अनुमान है. इसमें घट-बढ़ का जोखिम बरकरार है.
मौद्रिक नीति समिति के चार सदस्य रवीन्द्र एच ढोलकिया, माइकल देबव्रत पात्रा, बिभू प्रसाद कानूनगो और शक्तिकांत दास ने रेपो दर में 0.35 प्रतिशत की कटौती के पक्ष में मत दिया जबकि दो सदस्यों चेतन घाटे ओर पामी दुआ ने नीतिगत दर में 0.25 प्रतिशत कटौती के पक्ष में मतदान किया. मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक एक, तीन और चार अक्टूबर 2019 को होगी.
रेपो रेट घटने से क्या होगा आप पर असर
रेपो रेट कम होने से बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना सस्ता हो जाता है और इसलिए बैंक ब्याज दरों में कमी करते हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा रकम कर्ज के तौर पर दी जा सके. रेपो रेट में कमी का सीधा मतलब यह होता है कि बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से रात भर के लिए कर्ज लेना सस्ता हो जाएगा. साफ है कि बैंक दूसरों को कर्ज देने के लिए जो ब्याज दर तय करते हैं, वह भी उन्हें घटाना होगा.
क्या है रेपो रेट?
रेपो रेट वह दर होती है जिसपर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है. बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को लोन मुहैया कराते हैं. रेपो रेट कम होने का अर्थ है कि बैंक से मिलने वाले तमाम तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे.
क्या है रिवर्स रेपो रेट?
यह रेपो रेट से उलट होता है. यह वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है. रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है.
क्या है सीआरआर?
देश में लागू बैंकिंग नियमों के तहत प्रत्येक बैंक को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है. इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) या नकद आरक्षित अनुपात कहा जाता है.