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गूगल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट, अन्य प्रौद्योगिकी कंपनियों ने नए छात्र वीजा नियम के खिलाफ ठोका मुकदमा

टेक कंपनियों और राज्यों ने डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ऑफ मैसाचुसेट्स में मुकदमा दर्ज कराया है. यह मुकदमा डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (डीएचएस) और अमेरिकी इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट (आईसीआई) के खिलाफ दर्ज कराया है. टेक कंपनियों का कहना है कि यह नई वीजा नीति क्रूर, आकस्मिक और गैर-कानूनी है.

गूगल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट, अन्य प्रौद्योगिकी कंपनियों ने नए छात्र वीजा नियम के खिलाफ ठोका मुकदमा
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Published : Jul 14, 2020, 12:31 PM IST

वाशिंगटन: गूगल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट समेत 10 से ज्यादा टेक कंपनियों और 17 राज्यों ने इस वीजा नीति को लेकर ट्रंप प्रशासन के खिलाफ मुकदमा दाखिल किया है. टेक कंपनियों और राज्यों ने डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ऑफ मैसाचुसेट्स में मुकदमा दर्ज कराया है.

इस नियम के मुताबिक विदेशी छात्रों को कम से कम एक पाठ्यक्रम ऐसा लेना होगा, जिसमें वह व्यक्तिगत रूप से कक्षा में उपस्थित रह सकें अन्यथा उन्हें निर्वासित होने के जोखिम का सामना करना होगा.

अस्थायी निरोधक आदेश और प्रारंभिक निषेधाज्ञा का अनुरोध कर रही इन कंपनियों, अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स और अन्य आईटी पैरोकारी समूहों का कहना है कि छह जुलाई का आईसीई का निर्देश नियुक्ति की उनकी योजनाओं को प्रभावित करेगा और उनके लिए अंतरराष्ट्रीय छात्रों को अपने कारोबार में शामिल करना मुश्किल हो जाएगा.

ये भी पढ़ें-प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था का जायजा लिया, प्रोत्साहन पैकेज के अमल की समीक्षा की

उनका कहना है कि छह जुलाई के निर्देश से बड़ी संख्या में अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों के लिए सीपीटी और ओपीटी कार्यक्रमों में हिस्सा लेना असंभव हो जाएगा.

उन्होंने कहा कि अमेरिका, "यहां उनकी शिक्षा पर हुए निवेश का लाभ उठाने के बजाय निरर्थक रूप से इन स्नातकों को हमारे वैश्विक प्रतिद्ंवद्वियों के लिए काम करने और हमसे प्रतियोगिता करने के लिए दूर भेज रहा है."

सर्कुलर प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (सीपीटी) कार्यक्रम ‘‘किसी छात्र के संस्थान के साथ हुए सहकारी समझौतों के तहत प्रायोजक नियोक्ताओं द्वारा दिए गए वैकल्पिक कार्य/ अध्ययन, इंटर्नशिप, सहकारी शिक्षा या अन्य प्रकार की इंटर्नशिप’’ की अनुमति देता है.

वहीं, ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (ओपीटी) कार्यक्रम एक साल तक का अस्थायी रोजगार देता है जो अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी द्वारा पढ़े गए मुख्य विषय से सीधे तौर पर जुड़ा होता है और यह स्नातक होने से पहले या विद्यार्थी की पढ़ाई पूरी होने के बाद कभी भी उसे दिया जा सकता है.

कंपनियों का कहना है कि अमेरिकी कंपनियों की नियुक्ति प्रक्रिया में आधे से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों को शामिल नहीं होने देने से कंपनी और पूरी अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा तथा विद्यार्थियों का भरोसा भी कम होगा.

वाद में कहा गया कि अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों के देश में रहने से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को काफी लाभ होता है और इन विद्यार्थियों का प्रस्थान अमेरिकी शैक्षणिक संस्थानों की महत्त्वपूर्ण लोगों को यहां रोक पाने की क्षमता को जोखिम में डालता है.

कंपनियों ने कहा, "अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी अमेरिकी कारोबारों के लिए कर्मचारियों का महत्त्वपूर्ण स्रोत होते हैं. वे अमेरिकी कारोबारों के लिए बहुमूल्य कर्मचारी एवं ग्राहक बनते हैं, फिर चाहे वे अमेरिका में रहें या स्वदेश लौट जाएं."

इन कंपनियों के अलावा 17 राज्यों एवं कोलंबिया जिला ने भी नयी अस्थायी वीजा नीति के खिलाफ सोमवार को वाद दायर किया.

गृह सुरक्षा मंत्रालय और आईसीई के खिलाफ मैसाचुसेट्स जिला अदालत में दायर वाद में 18 महाधिवक्ताओं ने संघीय सरकार की "वैश्विक महामारी के बीच अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों को बाहर निकालने की क्रूर, असंगत एवं गैरकानूनी कार्रवाई" को चुनौती दी है.

(पीटीआई-भाषा)

वाशिंगटन: गूगल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट समेत 10 से ज्यादा टेक कंपनियों और 17 राज्यों ने इस वीजा नीति को लेकर ट्रंप प्रशासन के खिलाफ मुकदमा दाखिल किया है. टेक कंपनियों और राज्यों ने डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ऑफ मैसाचुसेट्स में मुकदमा दर्ज कराया है.

इस नियम के मुताबिक विदेशी छात्रों को कम से कम एक पाठ्यक्रम ऐसा लेना होगा, जिसमें वह व्यक्तिगत रूप से कक्षा में उपस्थित रह सकें अन्यथा उन्हें निर्वासित होने के जोखिम का सामना करना होगा.

अस्थायी निरोधक आदेश और प्रारंभिक निषेधाज्ञा का अनुरोध कर रही इन कंपनियों, अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स और अन्य आईटी पैरोकारी समूहों का कहना है कि छह जुलाई का आईसीई का निर्देश नियुक्ति की उनकी योजनाओं को प्रभावित करेगा और उनके लिए अंतरराष्ट्रीय छात्रों को अपने कारोबार में शामिल करना मुश्किल हो जाएगा.

ये भी पढ़ें-प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था का जायजा लिया, प्रोत्साहन पैकेज के अमल की समीक्षा की

उनका कहना है कि छह जुलाई के निर्देश से बड़ी संख्या में अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों के लिए सीपीटी और ओपीटी कार्यक्रमों में हिस्सा लेना असंभव हो जाएगा.

उन्होंने कहा कि अमेरिका, "यहां उनकी शिक्षा पर हुए निवेश का लाभ उठाने के बजाय निरर्थक रूप से इन स्नातकों को हमारे वैश्विक प्रतिद्ंवद्वियों के लिए काम करने और हमसे प्रतियोगिता करने के लिए दूर भेज रहा है."

सर्कुलर प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (सीपीटी) कार्यक्रम ‘‘किसी छात्र के संस्थान के साथ हुए सहकारी समझौतों के तहत प्रायोजक नियोक्ताओं द्वारा दिए गए वैकल्पिक कार्य/ अध्ययन, इंटर्नशिप, सहकारी शिक्षा या अन्य प्रकार की इंटर्नशिप’’ की अनुमति देता है.

वहीं, ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (ओपीटी) कार्यक्रम एक साल तक का अस्थायी रोजगार देता है जो अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी द्वारा पढ़े गए मुख्य विषय से सीधे तौर पर जुड़ा होता है और यह स्नातक होने से पहले या विद्यार्थी की पढ़ाई पूरी होने के बाद कभी भी उसे दिया जा सकता है.

कंपनियों का कहना है कि अमेरिकी कंपनियों की नियुक्ति प्रक्रिया में आधे से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों को शामिल नहीं होने देने से कंपनी और पूरी अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा तथा विद्यार्थियों का भरोसा भी कम होगा.

वाद में कहा गया कि अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों के देश में रहने से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को काफी लाभ होता है और इन विद्यार्थियों का प्रस्थान अमेरिकी शैक्षणिक संस्थानों की महत्त्वपूर्ण लोगों को यहां रोक पाने की क्षमता को जोखिम में डालता है.

कंपनियों ने कहा, "अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी अमेरिकी कारोबारों के लिए कर्मचारियों का महत्त्वपूर्ण स्रोत होते हैं. वे अमेरिकी कारोबारों के लिए बहुमूल्य कर्मचारी एवं ग्राहक बनते हैं, फिर चाहे वे अमेरिका में रहें या स्वदेश लौट जाएं."

इन कंपनियों के अलावा 17 राज्यों एवं कोलंबिया जिला ने भी नयी अस्थायी वीजा नीति के खिलाफ सोमवार को वाद दायर किया.

गृह सुरक्षा मंत्रालय और आईसीई के खिलाफ मैसाचुसेट्स जिला अदालत में दायर वाद में 18 महाधिवक्ताओं ने संघीय सरकार की "वैश्विक महामारी के बीच अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों को बाहर निकालने की क्रूर, असंगत एवं गैरकानूनी कार्रवाई" को चुनौती दी है.

(पीटीआई-भाषा)

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