नई दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत हो चुकी है. सोमवार को वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने 'चिट फंड (संशोधन) विधेयक' संसद में पेश किया. जिसके बाद इसपर चर्चा की गई. चर्चा के बाद इस विधेयक को बुधवार को इसे पास कर दिया गया.
सदन में विधेयक पेश करते हुए ठाकुर ने कहा कि चिट फंड सालों से छोटे कारोबारों और गरीब वर्ग के लोगों के लिए निवेश का स्रोत रहा है लेकिन कुछ पक्षकारों ने इसमें अनियमितताओं को लेकर चिंता जताई थी जिसके बाद सरकार ने एक परामर्श समूह बनाया. उन्होंने कहा कि 1982 के मूल कानून को चिट फंड के विनियमन का उपबंध करने के लिए लाया गया था. संसदीय समिति की सिफारिश पर इसमें अब संशोधन के लिए विधेयक लाया गया था.
बता दें कि सरकार ने संसद के मानसूत्र सत्र में पांच अगस्त को यह विधेयक पेश लोकसभा में पेश किया था.
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जुलाई में ही मिल गई थी केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी
संसद में इस विधेयक को पेश करने की मंजूरी केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जुलाई में ही दी थी. इस विधेयक से चिटफंड के क्षेत्र में विनियामक व अनुपालन संबंधी बोझ होगा. विधेयक में अधिनियम की धारा-2 के अनुबंध (बी) में 'बंधुत्व फंड' और 'आवर्ती बचत व क्रेडिट संस्थान' जोड़ा गया है जो चिट को परिभाषित करता है.
निवेश सीमा एक लाख से बढ़ाकर तीन लाख हुआ
विधेयक में एक व्यक्ति के लिए निर्धारित कुल चिट राशि यानि निवेश सीमा एक लाख रुपये से बढ़ाकर तीन लाख रुपये और कंपनी के लिए छह लाख रुपये से बढ़ाकर 18 लाख रुपये किया गया है. इसमें 2001 के बाद संशोधन नहीं किया गया है.
चिटफंड अधिनियम 1982 में लागू किया गया था
देश की घरेलू कारोबार चिटफंड के विनियमन के लिए चिटफंड अधिनियम 1982 लागू किया गया था. चिटफंड परंपरागत रूप से कम आय वाले लोगों की वित्तीय जरूरतों की पूर्ति करता है.
चिटफंड घोटालों के बाद एडवायजरी ग्रुप ने संस्थागत फ्रेमवर्क बनाने का दिया सुझाव
पिछले दिनों चिटफंड कारोबार में गड़बड़ी को लेकर अनके हितधारकों ने चिंता जाहिर की थी जिसके बाद केंद्र सरकार ने चिटफंड पर एक एडवायजरी ग्रुप बनाया था जिसे चिटफंड के मौजूदा कानूनी, विनियामक और संस्थागत फ्रेमवर्क की समीक्षा कर इसे सुचारु करने के लिए सुझाव देने को कहा गया था.
इस एडवायजरी ग्रुप ने चिटफंड कारोबार के विकास के लिए इसके विनियामक संबंधी बोझ को कम करने और ग्राहकों के हितों की रक्षा करने के लिए संस्थागत और कानूनी संरचना में सुधार को लेकर अपनी सिफारिशें दी हैं.
क्यों लाया गया ये विधेयक
यह बिल इसलिए लाया गया कि क्योंकि पिछले दिनों कई सारे चिट फंड घोटाले निकल कर आए. जिसके बाद सरकार ने 1982 के चिटफंड एक्ट में संशोधन करने बिल लायी.
ये होगा फायदा:-
- चिटफंड सेक्टर के सुचारु विकास को सुगम बनाएगा ये बिल
- उद्योग जिन बाधाओं से जूझ रहा है उसे दूर करने मिलेगी मदद
- चिटफंड योजनाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित होगी
- ग्राहकों के पैसे को सुरक्षा मिलेगी
- चिटफंड कंपनियों के बेहतर परिचालन करने में मिलेगी मदद
- चिटफंड के नाम पर धोखाधड़ी रुकेगी
जानिए किसने क्या कहा:-
अधीर रंजन चौधरी, कांग्रेस
विधेयक पर चर्चा की शुरूआत करते हुए कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह विधेयक असंगठित क्षेत्र के लिए पर्याप्त नहीं लगता. उन्होंने कहा कि केवल नाम बदलने से समाधान नहीं निकलेगा, बल्कि इसका पूरी तरह से नियनम जरूरी है.
मिनाक्षी लेखी, भाजपा
चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के मिनाक्षी लेखी ने कहा कि चिटफंड से जुड़े सभी लोग गलत नहीं हैं और छोटे स्तर पर व्यापार करने वालों और निवेशकों को मदद मिलनी चाहिए. यह विधेयक इसमें सहायक सिद्ध होगा.
के के. वीरस्वामी, द्रमुक
द्रमुक के के. वीरस्वामी ने कहा कि बैंकिंग व्यवस्था से गरीबों को वो लाभ नहीं मिला जो मिलना चाहिए था, ऐसे में लोगों ने चिटफंड कंपनियों का रुख किया. उन्होंने दावा किया कि कारपोरेट समूहों को बैंकों से ज्यादा कर्ज मिले और ज्यादातर मामलों में ये कर्ज एनपीए हो गए. इस समस्या पर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए.
कल्याण बनर्जी, तृणमूल कांग्रेस
तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी ने सारदा चिटफंड मामले का उल्लेख करते हुए सवाल किया कि इसमें सीबीआई की ओर से अब तक आरोप पत्र दाखिल क्यों नहीं किया गया? उन्होंने कहा कि इस मामले में कुछ है तो जिम्मेदार लोगों के खिलाफ जल्द कार्रवाई करिए. इस मुद्दे को चुनाव के लिए खींचते रहने की कोई जरूरत नहीं है.
रघुराम कृष्ण राजू, वाईएसआर कांग्रेस
वाईएसआर कांग्रेस के रघुराम कृष्ण राजू ने कहा कि इस प्रस्तावित कानून को लेकर राज्यों को ज्यादा ताकत देने की जरूरत नहीं है क्योंकि ऐसा करने से कानून के प्रभावी क्रियान्वयन में दिक्कत आ सकती है.
के बी महताब, बीजू जनता दल
बीजू जनता दल के बी महताब ने कहा कि सबसे पहले इस पर विचार करने की जरूरत है कि चिटफंड कंपनिया इतना क्यों फल-फूल रही हैं. उन्होंने कहा कि यह भी तय करना होगा कि चिटफंड कंपनियों की निगरानी की जिम्मेदारी किसकी है.
रीतेश पांडे, बसपा
बसपा के रीतेश पांडे ने विधयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि इस विधेयक में वित्तीय साक्षरता को नजरअंदाज किया गया है. साथ ही, चिट फंड पर नियम बनाने के लिये राज्य सरकार को भी अधिकार मिलना चाहिए.
के. पी. रेड्डी, टीआरएस
टीआरएस के के. पी. रेड्डी ने कहा कि लोग अधिक निवेश पाने के लिये चिटफंड में निवेश करते हैं. इसमें होने वाली धोखाधड़ी को रोकने के लिये सख्त कानून की जरूरत है. पंजीकृत चिटफंड द्वारा खुद को दिवालिया घोषित किये जाने की स्थिति में ना तो भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और ना ही सरकार निवेशकों की कोई मदद कर सकती है. अभी देश में करीब 3,000 चिटफंड कंपनियां संचालित हो रही हैं.
सुप्रिया सुले, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की सुप्रिया सुले ने कहा, "यदि सदन में देश की आर्थिक हालत और मंदी पर चर्चा की जाती तो मुझे कहीं अधिक खुशी होती." उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में उपभोक्ता खर्च पिछले 40 साल में सबसे निचले स्तर पर है. देश में सबसे बड़ी समस्या का सामना ग्रामीण भारत कर रहा है. उन्होंने कहा कि उन्हें सरकार के इरादे पर संदेह नहीं है लेकिन सवाल यह है कि नये अधिनियम को किस तरह से क्रियान्वित किया जाता है क्योंकि यह गरीबों से जुड़ा मुद्दा है.
जयदेव गल्ला, तेलगु देशम पार्टी
तेदपा के जयदेव गल्ला ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि चिटफंड कंपनियों को एनबीएफसी (गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां) के समान सुविधाएं नहीं देना भेदभावपूर्ण है.आरएसपी के एन.के. प्रेमचंद्रन ने भी विधेयक का समर्थन किया लेकिन इस पर कुछ आपत्तियां भी जताईं. उन्होंने पूछा कि जो कुछ स्थायी समिति ने या सलाहकार समिति ने सुझाव दिये थे, उन्हें क्या विधेयक में शामिल किया गया है. इस विधेयक के मूर्त रूप लेने पर ग्रामीण भारत में लोगों की बचत प्रभावित होगी. खास तौर पर वे महिलाएं, जो छोटे-छोटे समूह बना कर बचत करती हैं.