जूनागढ़: गुजरात जूनागढ़ का जोशी परिवार डेढ़ साल पहले घर में मां के होने से बेहद खुशी के दिन बिता रहा था. अचानक एक दिन घर की नींव और तीन बेटियों की मां हीराबेन का निधन हो गया. मां की मौत तीनों बेटियों के लिए काफी दर्दनाक रही थी, लेकिन मां की मौत के बाद तीनों बेटियों शीतल, जाह्नवी और कल्पना ने अपनी मां हीराबेन की मूर्ति को घर में स्थापित किया, ताकि उनकी उपस्थिति लगातार बनी रहे. उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी आंखों के सामने उनकी उपस्थिति आज एक अद्वितीय प्रेरक शक्ति प्रदान करती है. गृह, समाज और संस्कृति इन तीनों में नारी के रूप में माता का स्थान कितना महत्वपूर्ण है. यह एक उदाहरण प्रदान कर रहा है.
मां का एहसास कराती मूर्ति: हीराबेन की मौत के बाद तीनों बच्चों ने घर में मां की मूर्ति स्थापित करने का फैसला किया, ताकि घर में उनकी उपस्थिति लगातार देखी जा सके और उनकी भावना उन्हें जीवन जीने की प्रेरणा देती रहे. भले ही आज हीराबेन जीवित नहीं हैं, लेकिन वे जोशी परिवार से एक आध्यात्मिक बंधन वाली मूर्ति के रूप में जुड़ी हुई पाई जाती हैं. आज भी घर के सभी दैनिक क्रियाकलापों में एक भाव रूपी मूर्ति के रूप में मां की निरंतर उपस्थिति तीनों बेटियों को एक नया प्रेरक बल प्रदान करती है, मानो दो साल पहले की सभी यादें फिर से ताजा हो रही हों. नाश्ते से लेकर रात के खाने तक की सभी दैनिक गतिविधियां अभी भी वैसी ही चल रही हैं, जैसी दो साल पहले थीं. घर में आज भी उनका यही अंदाज देखने को मिलता है.
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मुसीबत के समय रास्ता दिखाती है मां: तीनों बेटियां बच्चों के रूप में आज भी किसी भी मुश्किल परिस्थिति के समय में घर में मां की छवि के साथ समस्या को बयां करती हैं. यह भी देखा जाता है कि समस्या हल हो गई है. घर में कोई भी काम करने के लिए भी आज माता की अनुमति ली जा रही है. एक महिला के रूप में इससे बड़ा कोई सम्मान नहीं हो सकता है. घर में मां को मूर्ति के रूप में स्थापित करना और फिर सभी कामों के लिए मां की पूर्व स्वीकृति लेना ही हमारे समाज में एक महिला के रूप में मां का स्थान है. महिला दिवस के अवसर पर तीनों बहनों ने प्रत्येक बच्चे से अपने माता-पिता की बहुत देखभाल करने और ध्यान देने का अनुरोध किया है.