हैदराबाद: संयुक्त अरब अमीरात (UAE), मिडल ईस्ट एशिया यानि मध्य पूर्व एशिया के सबसे अमीर देशों में शुमार है. एक मुस्लिम राष्ट्र होने के बावजूद यूएई ने गैर मुस्लिमों के हित को ध्यान में रखते हुए एक नया कानून बनाया है.
क्या है ये नया कानून ?
संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबूधाबी में गैर मुस्लिमों के लिए नया कानून बनाया गया है. जिसके मुताबिक उन्हें शादी करने, तलाक देने और बच्चे की कस्टडी हासिल करने जैसे अधिकार मिलेंगे. यूएई के शासकों की ओर से जारी नए आदेश में इसकी अनुमति दी गई है.
गैर-मुस्लिम परिवारों के विवादों को सुलझाने के लिए एक नई अदालत का गठन अबूधावी में किया जाएगा. इस अदालत का कामकाज अंग्रेजी और अरबी में होगा. अबू धाबी के शेख खलीफा जायद अल नहयान की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि यह आदेश सिविल मैरिज, तलाक, गुजारा भत्ता, बच्चों की संयुक्त कस्टडी, पितृत्व के सबूत और उत्तराधिकार सभी को समाहित करता है. शेख खलीफा बिन जायेद अल-नाहयान सात अमीरातों के संघ के प्रमुख और राष्ट्रपति भी हैं.
अबू धाबी न्यायिक विभाग में अवर सचिव यूसुफ सईद अल अब्री ने कहा कि नया कानून दुनिया में अपनी तरह का पहला कानून है क्योंकि यह गैर-मुस्लिमों के पारिवारिक जीवन की छोटी से छोटी बारीकियों से संबंधित है. कुल मिलाकर इस कानून के तहत गैर मुस्लिम अपने रीति रिवाज से शादी और इस कानून के तहत तलाक ले पाएंगे. यूएई को लेकर ये नया बदलाव बड़ा इसलिये भी है क्योंकि यहां अन्य खाड़ी देशों की तरह शादी और तलाक से संबंधित कानून शरिया पर आधारित हैं. अभी तक देश में इस्लामी शरिया नियमों के तहत ही शादी और तलाक होते थे. मुस्लिमों के लिए शरिया नियम अभी भी लागू हैं लेकिन गैर मुस्लिमों के लिए नया कानून बना है.
भारतीय समुदाय ने की कानून की तारीफ
संयुक्त अरब अमीरात दुबई, शारजाह, अबूधाबी जैसे सात अमीरातों से मिलकर बनता है. अबू धाबी देश का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला शहर है. यूएई में रह रहे भारतीय समुदाय ने अबू धाबी में गैर मुस्लिमों के लिए ऐतिहासिक नए दीवानी कानून की सराहना की है. जो मानते हैं कि गैर-मुस्लिमों के लिए एक नया कानूनी ढांचा पेश करके, यूएई के नेतृत्व ने अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं के साथ एक लचीला और बेहतर न्यायिक तंत्र सुनिश्चित किया है.
यूएई में रह रहे भारतीय इस फैसले को मील का पत्थर मानते हैं, क्योंकि इसमें दो भाषाओं में अदालत की कार्यवाही, शादी, तलाक का हक, बच्चों की देखभाल व निगरानी पर समान अधिकार, गैर मुस्लिमों के परिवार से जुड़े मामलों के लिए समर्पित अदालतें आदि सुधारों की कुछ विशेषताएं है.
‘खलीज टाइम्स' की एक खबर के मुताबिक, कानून गैर-मुसलमानों के अधिकारों की गारंटी देता है कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत कानून के अधीन हों जो संस्कृति, रीति-रिवाजों और भाषा में उनसे वाकिफ हो.
UAE ने पिछले साल भी बदले थे कानून
शरिया कानून को मान्यता देने वाले देश संयुक्त अरब अमीरात ने बीते साल नंवबर में भी इस्लामिक पर्सनल लॉ में बड़े बदलाव किए थे.
शराब पीने और रखने की छूट- पिछले साल के बदलावों के तहत शराब को लेकर सख्त नियमों में ढिलाई दी गई थी. नए बदलाव के तहत 21 साल की उम्र से अधिक के लोगों को शराब पीने, बेचने या रखने की छूट होगी. पहले शराब खरीदने या घर में रखने के लिए लाइसेंस लेना पड़ता था. मुस्लिमों के शराब पीने की भी छूट दी गई.
ऑनर किलिंग के कानून बदले- झूठी शान के लिए हत्या यानि ऑनर किलिंग के कानूनों में भी संयुक्त अरब अमीरात ने बदलाव करते हुए इसे अपराध की श्रेणी में लेकर आए. इससे पहले कोई शख्स अगर किसी महिला रिश्तेदार का कत्ल करता था तो वो इसे घर के सम्मान के साथ जुड़ा हुआ साबित करके बच जाता था.
लिव-इन में रहने की आजादी- यूएई में इस तरह की छूट की कल्पना बहुत मुश्किल थी लेकिन पिछले साल यूएई ने बिना शादी के प्रेमी जोड़ों को साथ रहने यानि लिव-इन में रहने की इजाजत दी थी. पहले इस मुस्लिम राष्ट्र में ये गंभीर श्रेणी का अपराध था.
क्यों नरम दिल हो रहा है UAE ?
शरिया कानून की राह पर चलने वाला संयुक्त राष्ट्र अमीरात लगातार कानून बदल रहा है. मिडिल ईस्ट समेत दुनिया के मुस्लिम देशों को कड़े कानूनों के लिए जाना जाता है, ऐसा ही यूएई के साथ भी है. लेकिन सवाल है कि बीते कुछ वक्त से आए इस नरमी की वजह क्या है ? जानकार मानते हैं कि दुनियाभर के देशों में प्रतिस्पर्धा और भविष्य को देखते हुए बिजनेस हब बनने की होड़ के चलते यूएई ने ये कदम उठाया है.
छवि बदलने की कोशिश- एक मुस्लिम राष्ट्र के रूप में यूएई की कट्टर छवि रही है. जिसके कारण ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में भी दुनिया के कई देशों का यूएई से कोई वास्ता नहीं रहा है. लेकिन मौजूदा वक्त में दुनिया के साथ व्यापारिक रिश्तों को बढ़ाने के लिए अपनी छवि बदलना बेहद जरूरी है. खासकर गैर मुस्लिम राष्ट्रों की नज़र में.
निवेश बढ़ाने पर ज़ोर- कच्चे तेल के मामले में संयुक्त अरब अमीरात दुनिया का 7वां सबसे बड़ा उत्पादक है. दुनियाभर में भले तेल की खपत बढ़ रही हो लेकिन ये भी सच है कि तेल का भंडार सीमित है और इसे देखते हुए ही कई देश कच्चे तेल का विकल्प तलाश रहे हैं. इथेनॉल से लेकर इलेक्ट्रिक वाहन तक तेल की निर्भरता को कम कर रहे हैं जबकि सौर ऊर्जा जैसे विकल्प दुनियाभर में लोकप्रिय हैं. ऐसे में संयुक्त अरब अमीरात भी जानता है कि सिर्फ तेल को लेकर भविष्य सुरक्षित नहीं किया जा सकता. इसलिये दूसरे देशों में निवेश करने और दुनियाभर से यूएई में निवेश को तरजीह दी जा रही है और इसी कड़ी में कानूनों में नरमी बरती जा रही है.
पर्यटन को बढ़ाना- तेल भंडार से अलग पर्यटन यूएई की कमाई के सबसे बड़े जरियों में शुमार है. खासकर बीते कुछ सालों में दुबई दुनियाभर में पर्यटन के सबसे बड़े केंद्र के रूप में उभरा है. आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 में कोरोना के बावजूद 55 लाख से ज्यादा विदेशी पर्यटक दुबई पहुंचे थे, जबकि साल 2019 में ये संख्या 1.6 करोड़ से अधिक थी. इसके अलावा अबू धाबी से लेकर शारजाह जैसे शहर भी पर्यटकों की सूची में होते हैं. शराब से लेकर लिव-इन और अब गैर मुस्लिमों के विवाह आदि को लेकर कानूनों में बदलाव देश को पर्यटन का सबसे बड़ा हब बनाने की कोशिशों के रूप में देखा जा रहा है.
पेशेवर युवाओं को आकर्षित- कई विशेषज्ञ मानते हैं कि शराब, लिव-इन, शादी, तलाक जैसे कानूनों में बदलाव करके यूएई दुनियाभर के युवाओं खासकर पेशेवर और प्रतिभाशाली युवाओं को आकर्षित करना चाहता है. निर्माण से लेकर आईटी और पर्यटन जैसे सेक्टर में पेशेवर युवाओं की खासी डिमांड है और देश के कड़े कानून इस राह में रोड़ा बन रहे थे.
दूसरे देशों से संबंध सुधारना- जानकारों का मानना है कि इस तरह के बदलाव से यूएई को कई देशों के साथ रिश्ते बनाने और बेहतर करने में भी मदद मिलेगी. बीते साल कानूनों में किए बदलावों के साथ अमेरिका की मध्यस्थता में एक अन्य महत्वपूर्ण घोषणा की गई थी. जिसके तहत यूएई और इजरायल के बीच संबंधों में सुधार के प्रयास किए जाएंगे. जानकार मानते हैं कि इससे यूएई में इजरायली टूरिस्ट का आना बढ़ेगा और देश में निवेश के मौके बढ़ेंगे.
बदलते वक्त की मांग- कुछ जानकार मानते हैं कि इन कड़े कानूनों में नरमी के पीछे यूएई के प्रशासकों की नरमी बड़ी वजह है और वो भी इसे बदलते वक्त की मांग बता रहे हैं. लेकिन इस नरमी और बदलते वक्त की मांग के पीछे भविष्य की चिंताएं छिपी हैं, जिनसे पार पाने के लिए अभी से दुनिया के सात कदम मिलाकर चलने की कोशिश हो रही है.
UAE में भारतीयों की आबादी
अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा भारतीय मूल के लोग संयुक्त अरब अमीरात में ही रहते हैं. यूएई में भारतीयों की तादाद सबसे ज्यादा है. यूएई में 34 लाख से अधिक भारतीय रहते हैं, जो संयुक्त अरब अमीरात की कुल आबादी का 27.49 प्रतिशत है. यहां की दस फीसद आबादी हिंदू है और इनकी तादाद करीब 9 लाख है. इसके अलावा सिखों की जनसंख्या भी 50 हजार अनुमानित है. वहीं अबू धाबी में भी करीब 6 लाख भारतीय रहते हैं. जबकि दुबई की आधी से अधिक आबादी भारतीयों की है. जहां भारतीयों की आबादी 15 लाख है, जिनमें करीब 3 लाख हिंदू हैं.
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