लखनऊ : पारिजात अपार्टमेंट में फ्लैट मिलने में देरी और उसमे मिली समस्याओं को लेकर एमपी-एमएलए कोर्ट के एक न्यायाधीश खुद उपभोक्ता न्यायालय की शरण में पहुंच गए हैं. न्यायाधीश ने गुहार लगाई है कि लखनऊ विकास प्राधिकरण ने उनको जो फ्लैट दिया है, वह रहने योग्य नहीं है. फ्लैट भी उनको निर्धारित समय से कई साल लेट दिया गया. न्यायाधीश ने अपना जमा धन ब्याज सहित वापस मांगा है. मामले में उपभोक्ता अदालत ने लखनऊ विकास प्राधिकरण को 6 अप्रैल को अपना पक्ष रखने का आदेश दिया है.
हाउसिंग सोसायटी के वरिष्ठ पदाधिकारी समर विजय सिंह ने बताया कि विशेष न्यायाधीश एमपी-एमएलए कोर्ट हरबंश नारायण ने पहले लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष को भी पत्र लिखा था. उन्होंने कहा था कि उनके पक्ष में फ्लैट संख्या पीजे / 1904/ए-2 पारिजात अपार्टमेंट गोमती नगर, लखनऊ का आवंटन 25 जून 2015 को किया गया. आवंटन के सापेक्ष उन्होंने विभिन्न तिथियों में कुल रुपये 31,97,700.00 जमा किए थे. निर्धारित समय के अनुसार फ्लैट का निर्माण न होने के कारण अवशेष धनराशि जमा नहीं की गई. अब वह फ्लैट को लेने का इच्छुक नहीं हैं. अनुरोध है कि जमा धनराशि नियमानुसार ब्याज सहित वापस कर दिया जाए.
लखनऊ विकास प्राधिकरण की ओर से इस आवेदन पर गौर नहीं किया गया. बाद में न्यायाधीश हरबंश नारायण को जो फ्लैट आवंटित किया गया, उसकी स्थिति भी ठीक नहीं है. न्यायाधीश ने पूरी रकम काे ब्याज सहित वापस मांगा है. लखनऊ विकास प्राधिकरण का नियम है कि एक बार आवंटित हो जाने की दशा में फ्लैट का जमा धन ब्याज सहित वापस नहीं किया जा सकता. पंजीकरण राशि में भी 20 फीसद कटौती की जाती है. उपभोक्ता अदालत में न्यायाधीश समय पर फ्लैट न मिलने की गुहार लेकर गए हैं. दूसरी और लखनऊ विकास प्राधिकरण इस मामले में अपने पक्ष को मजबूत करने में लगा हुआ है. लखनऊ विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने इस संबंध में अपना पूरा पक्ष उपभोक्ता अदालत में रखने की बात कही है.
गौरतलब है कि गोमती नगर विक्रांत खंड स्थित परिजात अपार्टमेंट को लेकर यहां की हाउसिंग सोसायटी भी लंबे समय से संघर्षरत है. कई मामले अदालत में विचाराधीन हैं. एक करोड़ रुपए मूल्य तक की फ्लैट इस हाउसिंग सोसाइटी में खंडहर जैसी स्थिति में हैं. कई मामलों में आवंटियों के साथ अन्याय हुआ है. यहां की हाउसिंग सोसायटी के वरिष्ठ पदाधिकारी समर विजय सिंह लगातार संघर्ष कर रहे हैं. उनका कहना है कि लंबे संघर्ष के बाद कुछ मामलों में सफलता मिली है. मगर अभी भी कई मामलों में लखनऊ विकास प्राधिकरण के चक्कर काटने पड़ते हैं. लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष डॉक्टर इंद्रमणि त्रिपाठी ने बताया कि पूरे प्रकरण की जानकारी करके संबंधित जवाब कोर्ट में दिया जाएगा.
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