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यूपी की जेल में 19 साल बिताने वाले पाक नागरिक के खिलाफ फिर शुरू होगा ट्रायल

19 साल यूपी की जेल में काटने वाले पाकिस्तानी नागरिक मोहम्मद वारिश को अब एक और अदालती ट्रायल का सामना करना पड़ेगा. चलिए जानते हैं इसके बारे में.

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पाकिस्तानी नागरिक मोहम्मद वारिश
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Published : Aug 25, 2022, 10:45 PM IST

शामलीः देश विरोधी हरकतों के आरोपी पाकिस्तानी नागरिक वारिस उर्फ राजा व जौला गांव के अशफाक नन्हे की मुश्किलें फिर से बढ़ गई है. इलाहाबाद HC ने उनके मुकदमें के पुनः ट्रायल को अनुमति दी है. पाक नागरिक को 19 साल जेल में बिताने के बाद हाईकोर्ट के आदेश पर उन्मोचित किया गया था, जिसके बाद उसे पुलिस निगरानी में रखा गया था.

दरअसल, पाकिस्तान के गुजरांवाला के वजीराबाद निवासी मोहम्मद वारिस उर्फ रजा को वर्ष 2000 में 48 साल की उम्र में शामली के कांधला थाने की पुलिस द्वारा जोला गांव से गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने वारिस के कब्जे से कुछ हथगोले और बंदूके बरामद होने का दावा किया था. पुलिस द्वारा घर के मालिक अशफाक नन्हे समेत चार स्थानीय नागरिकों की भी गिरफ्तारी की गई थी. पुलिस ने जांच के बाद यह भी दावा किया था कि वारिस और आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के बीच संबंध थे और उस पर आईपीसी की धारा 121 (देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने का प्रयास) के तहत मामला दर्ज किया गया था. सभी आरोपियों पर आईपीसी की धारा 121-ए (अपराध करने की साजिश), 122 (भारस सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के इरादे से हथियार आदि इकट्ठा करना) और 123 (युद्ध की परिकल्पना को सुगम बनाने के आशय से छिपाना) के तहत आरोप लगाया गया था. वारिस पर विदेशी अधिनियम, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और पासपोर्ट अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत अतिरिक्त आरोप लगाए गए थे.

वर्ष 2017 में मुजफ्फरनगर की ट्रायल कोर्ट ने धारा 121 के तहत वारिस और अशफाक नन्हे को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. हालांकि वारिस को पासपोर्ट अधिनियम और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के आरोपों के तहत बरी कर दिया गया था. कोर्ट ने अन्य आरोपितों को सभी आरोपों से बरी कर दिया था. इसके बाद वारिस को बरेली जेल में भेज दिया गया था. वारिस ने बरेली जेल से दोषी न होने का अनुरोध किया था.

वर्ष 2019 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वारिस द्वारा बरेली की जेल से दायर एक अपील पर सुनवाई शुरू की थी. अदालत ने कहा था कि अभियोजन पक्ष की ओर से ‘गंभीर संरचनात्मक विसंगतियां’ पाई गई हैं और राजद्रोह के मामले में केंद्र या राज्य सरकार से मंजूरी भी नही ली गई थी. पांच अगस्त 2019 को न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार की दो न्यायधीशों की पीठ ने आईपीसी की धारा 121, 121-A, 122 और 123 के तहत अपीलकर्ताओं की दोष सिद्धि को रद कर दिया था, जबकि पीठ ने विदेशी अधिनियम के तहत निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें वारिस को तीन साल की कैद होनी थी, लेकिन वारिस पहले ही 19 साल जेल में बिता चुका था, इसके चलते उसे दिसंबर 2021 में जेल से रिहा कर दिया गया था.

दिसंबर 2021 में वारिस जेल से तो रिहा हो गया था लेकिन उसे पाकिस्तान इसलिए नही भेजा जा सका, क्योंकि पाकिस्तान सरकार ने उसे अपना नागरिक मानने से ही इंकार कर दिया था. इसके चलते रिहाई के बाद भी उसे सार्वजनिक रूप से नही रखते हुए शामली के एक थाने में रखा गया था.


जानकारी के मुताबिक अपनी गलती को सुधारने के लिए अभियोजन पक्ष ने जून 2021 में मामले को आगे बढ़ाने के लिए उपयुक्त अधिकारियों से अनुमति प्राप्त की थी. इसके बाद अभियोजन पक्ष ने फिर से आरोपी के खिलाफ मुकदमा दायर करने के लिए एक याचिका दायर की थी. इस मामले में गुरुवार को शामली जनपद न्यायलय से सहायक अभियोजन अधिकारी तबस्सुम ने बताया कि पुलिस द्वारा उक्त मामले में शासन की अनुमति प्राप्त कर आरोप पत्र न्यायालय में प्रेषित किया, जिस पर न्यायिक मजिस्ट्रेट अरूण सिंह ने अभियुक्तों को समन जारी किए थे. बचाव पक्ष की ओर से एक ही मुकदमे में दो बार विचारण नहीं करने का हवाला देते हुए स्थानीय न्यायालय के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. सहायक अभियोजन अधिकारी ने बताया कि उच्च न्यायालय ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को सही ठहराया है और अब इस मामले को सत्र न्यायालय में भेजा जाएगा, जहां दोबारा ट्रायल शुरू होगा.

ये भी पढ़ेंः लखनऊ और कानपुर को इलेक्ट्रिक बसों का तोहफा, सीएम योगी ने दिखाई हरी झंडी

शामलीः देश विरोधी हरकतों के आरोपी पाकिस्तानी नागरिक वारिस उर्फ राजा व जौला गांव के अशफाक नन्हे की मुश्किलें फिर से बढ़ गई है. इलाहाबाद HC ने उनके मुकदमें के पुनः ट्रायल को अनुमति दी है. पाक नागरिक को 19 साल जेल में बिताने के बाद हाईकोर्ट के आदेश पर उन्मोचित किया गया था, जिसके बाद उसे पुलिस निगरानी में रखा गया था.

दरअसल, पाकिस्तान के गुजरांवाला के वजीराबाद निवासी मोहम्मद वारिस उर्फ रजा को वर्ष 2000 में 48 साल की उम्र में शामली के कांधला थाने की पुलिस द्वारा जोला गांव से गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने वारिस के कब्जे से कुछ हथगोले और बंदूके बरामद होने का दावा किया था. पुलिस द्वारा घर के मालिक अशफाक नन्हे समेत चार स्थानीय नागरिकों की भी गिरफ्तारी की गई थी. पुलिस ने जांच के बाद यह भी दावा किया था कि वारिस और आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के बीच संबंध थे और उस पर आईपीसी की धारा 121 (देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने का प्रयास) के तहत मामला दर्ज किया गया था. सभी आरोपियों पर आईपीसी की धारा 121-ए (अपराध करने की साजिश), 122 (भारस सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के इरादे से हथियार आदि इकट्ठा करना) और 123 (युद्ध की परिकल्पना को सुगम बनाने के आशय से छिपाना) के तहत आरोप लगाया गया था. वारिस पर विदेशी अधिनियम, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और पासपोर्ट अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत अतिरिक्त आरोप लगाए गए थे.

वर्ष 2017 में मुजफ्फरनगर की ट्रायल कोर्ट ने धारा 121 के तहत वारिस और अशफाक नन्हे को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. हालांकि वारिस को पासपोर्ट अधिनियम और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के आरोपों के तहत बरी कर दिया गया था. कोर्ट ने अन्य आरोपितों को सभी आरोपों से बरी कर दिया था. इसके बाद वारिस को बरेली जेल में भेज दिया गया था. वारिस ने बरेली जेल से दोषी न होने का अनुरोध किया था.

वर्ष 2019 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वारिस द्वारा बरेली की जेल से दायर एक अपील पर सुनवाई शुरू की थी. अदालत ने कहा था कि अभियोजन पक्ष की ओर से ‘गंभीर संरचनात्मक विसंगतियां’ पाई गई हैं और राजद्रोह के मामले में केंद्र या राज्य सरकार से मंजूरी भी नही ली गई थी. पांच अगस्त 2019 को न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार की दो न्यायधीशों की पीठ ने आईपीसी की धारा 121, 121-A, 122 और 123 के तहत अपीलकर्ताओं की दोष सिद्धि को रद कर दिया था, जबकि पीठ ने विदेशी अधिनियम के तहत निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें वारिस को तीन साल की कैद होनी थी, लेकिन वारिस पहले ही 19 साल जेल में बिता चुका था, इसके चलते उसे दिसंबर 2021 में जेल से रिहा कर दिया गया था.

दिसंबर 2021 में वारिस जेल से तो रिहा हो गया था लेकिन उसे पाकिस्तान इसलिए नही भेजा जा सका, क्योंकि पाकिस्तान सरकार ने उसे अपना नागरिक मानने से ही इंकार कर दिया था. इसके चलते रिहाई के बाद भी उसे सार्वजनिक रूप से नही रखते हुए शामली के एक थाने में रखा गया था.


जानकारी के मुताबिक अपनी गलती को सुधारने के लिए अभियोजन पक्ष ने जून 2021 में मामले को आगे बढ़ाने के लिए उपयुक्त अधिकारियों से अनुमति प्राप्त की थी. इसके बाद अभियोजन पक्ष ने फिर से आरोपी के खिलाफ मुकदमा दायर करने के लिए एक याचिका दायर की थी. इस मामले में गुरुवार को शामली जनपद न्यायलय से सहायक अभियोजन अधिकारी तबस्सुम ने बताया कि पुलिस द्वारा उक्त मामले में शासन की अनुमति प्राप्त कर आरोप पत्र न्यायालय में प्रेषित किया, जिस पर न्यायिक मजिस्ट्रेट अरूण सिंह ने अभियुक्तों को समन जारी किए थे. बचाव पक्ष की ओर से एक ही मुकदमे में दो बार विचारण नहीं करने का हवाला देते हुए स्थानीय न्यायालय के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. सहायक अभियोजन अधिकारी ने बताया कि उच्च न्यायालय ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को सही ठहराया है और अब इस मामले को सत्र न्यायालय में भेजा जाएगा, जहां दोबारा ट्रायल शुरू होगा.

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