नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने अंडमान एवं निकोबार के पूर्व मुख्य सचिव जितेंद्र नारायण को दुष्कर्म के मामले में जमानत दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाएं बृहस्पतिवार को खारिज कर दीं. नारायण को कलकत्ता उच्च न्यायालय की पोर्ट ब्लेयर सर्किट पीठ ने 20 फरवरी को जमानत दी थी.शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय की ओर से जमानत दिए जाने के खिलाफ राज्य और शिकायतकर्ता महिला की याचिकाओं को खारिज करते हुए अपना फैसला सुनाया.
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश विक्रम नाथ एवं न्यायमूर्ति ए अमानुल्ला की पीठ ने कहा, "हमने खाचिकाएं खारिज कर दी हैं." शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने निचली अदालत को सुनवाई में तेजी लाने का भी निर्देश दिया है. जिसमें संबंधित पक्ष पूरा सहयोग देंगे। महिला ने आरोप लगाया है कि उसे सरकारी नौकरी दिलाने का वादा कर तत्कालीन मुख्य सचिव के आवास में बुलाया गया और नारायण तथा अन्य ने उसके साथ दुष्कर्म किया था.
एक अगस्त को शीर्ष अदालत ने नारायण को जमानत दिए जाने के खिलाफ 21 वर्षीय महिला की ओर से दाखिल याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. नारायण को पिछले वर्ष 10 नवंबर को गिरफ्तार किया गया था. उनके खिलाफ एक अक्टूबर 2022 को प्राथमिकी दर्ज की गई थी. तब वह दिल्ली वित्तीय निगम के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक के पद पर थे. सरकार ने उन्हें पिछले साल 17 अक्टूबर को निलंबित कर दिया था.उन्हें 10 नवंबर को गिरफ्तार किया गया था.
उच्चतम न्यायालय ने बलात्कार के मामले में अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के पूर्व मुख्य सचिव जितेंद्र नारायण को प्रदान की गई जमानत को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. अभियोजन पक्ष के वकील ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी थी कि पूर्व मुख्य सचिव को जमानत देने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि रिकॉर्ड में उपलब्ध सामग्री के आधार पर उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है.
उन्होंने मामले में सीसीटीवी फुटेज समेत सबूतों को नष्ट करने का भी आरोप लगाया और कहा था कि पीड़िता का बयान बलात्कार का मामला साबित करने के लिए पर्याप्त है.आरोपी के वकील ने दावा किया था कि उनके मुवक्किल को फंसाया गया है और इस मामले को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है.
एजेंसी