अहमदाबाद : गुजरात सरकार (gujarat govt) ने शुक्रवार को छह सरकारी मेडिकल कॉलेजों के 2,000 रेजिडेंट डॉक्टरों द्वारा आहूत हड़ताल को अवैध करार दिया और ड्यूटी पर नहीं लौटने पर महामारी रोग अधिनियम लागू करने की चेतावनी दी.
आंदोलनकारी रेजिडेंट डॉक्टर अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत, राजकोट, भावनगर और जामनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेजों के हैं. इनमें से ज्यादातर ने हाल में अपना स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम पूरा किया है. इन अस्पतालों के कम से कम 2,000 रेजिडेंट डॉक्टर बुधवार शाम से मुख्य रूप से बांड सेवा अवधि और सातवें वेतन आयोग के मुद्दे पर हड़ताल पर हैं.
40 लाख रुपये देकर बांड तोड़ सकते हैं
गुजरात में, सरकारी मेडिकल कॉलेजों के छात्रों को एक बांड पर हस्ताक्षर करने होते हैं, जिसके तहत यह अनिवार्य होता है कि वे अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में एक वर्ष तक सेवा करें. डॉक्टर 40 लाख रुपये देकर बांड तोड़ सकते हैं.
इस साल अप्रैल में, जब कोविड-19 मामले बढ़ रहे थे तब राज्य सरकार ने घोषणा की थी कि कोविड-19 ड्यूटी के एक दिन को दो दिनों की बॉन्ड ड्यूटी के बराबर माना जाएगा. इस प्रकार, कोविड-19 वार्डों में छह महीने की अवधि को एक वर्ष की बांड अवधि के रूप में माना जाएगा.
हालांकि, जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन ने एक बयान में कहा कि जुलाई में जब कोविड -19 मामलों में काफी गिरावट आई, तो एक नयी अधिसूचना जारी की गई जिसमें कहा गया कि पिछले 1:2 के बजाय 1: 1 दिन का फॉर्मूला बहाल कर दिया गया है.
अब रेजिडेंट डॉक्टरों ने मांग की है कि पुराने 1:2 दिन के फॉर्मूले को बहाल किया जाए, और सातवें वेतन आयोग के अनुसार वेतन प्रदान किया जाए. आंदोलनकारी डॉक्टर यह भी चाहते हैं कि सरकार बांड अवधि के दौरान उन्हें दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों के बजाय उनके 'मातृ संस्थानों' में उन्हें तैनात करे. हालांकि, गुजरात के उपमुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल ने रेजिडेंट डॉक्टरों की मांगों को खारिज कर उन्हें काम पर लौटने के लिये कहा.
महामारी रोग अधिनियम के तहत हो सकती है कार्रवाई
पटेल ने एक बयान में कहा, 'इन दिनों बहुत कम कोविड -19 मामले सामने आ रहे हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में डॉक्टरों की आवश्यकता है. हमने एक आदेश जारी किया है जिसमें बांड पर हस्ताक्षर करने वाले डॉक्टरों को ग्रामीण क्षेत्रों में अपने-अपने काम पर जाने के लिए कहा गया है. उनके लिए बांड की शर्तों के अनुसार गांवों में सेवाएं देना अनिवार्य है. अगर वे गांवों में सेवाएं नहीं देना चाहते तो उन्हें 40 लाख रुपये जमा करने होंगे.'
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उपमुख्यमंत्री ने कहा, 'यह हड़ताल अवैध है और इसका मकसद सरकार पर अनुचित दबाव डालना है. यदि डॉक्टर हड़ताल खत्म कर काम पर नहीं लौटते हैं तो हम उनके खिलाफ महामारी रोग अधिनियम के तहत कार्रवाई करेंगे.'
(पीटीआई-भाषा)