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वादियों को यह साबित करना होगा कि मुंबई लोकल ट्रेन में यात्रा रोकने की सरकारी नीति गलत : हाईकोर्ट

बंबई हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने वादियों से कहा कि वे यह साबित करें कि बिना टीकाकरण वाले लोगों को लोकल ट्रेनों में यात्रा से प्रतिबंधित करने (ban from travel) की महाराष्ट्र सरकार की नीति अनुचित (Maharashtra government's policy unfair) है.

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बंबई हाईकोर्ट
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Published : Jan 10, 2022, 3:04 PM IST

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने कहा कि जो लोग कोविड-19 का टीका नहीं लगाने वाले लोगों को मुंबई में लोकल ट्रेनों में यात्रा करने से रोकने की (ban from travel) महाराष्ट्र सरकार की नीति का विरोध कर रहे हैं, उन्हें यह साबित करना होगा कि ऐसी नीति पूरी तरह से मनमानी और अनुचित है.

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की पीठ (A bench of Chief Justice Dipankar Dutta and Justice MS Karnik) ने कहा कि अगर कोर्ट को यह विश्वास हो जाता है कि ऐसी नीति बिल्कुल अनुचित है (The policy is totally unfair) और यह अदालत की अंतरात्मा को झकझोरती है तो वह राज्य सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों में हस्तक्षेप करेगी.

अदालत ने यह भी कहा कि COVID-19 से लड़ने के लिए टीकाकरण एक प्रकार का हथियार है और जिन्होंने टीका नहीं लिया है उनके पास यह ढाल नहीं है. हाईकोर्ट की बेंच फिरोज मिथिबोरवाला और योहन तेंगरा द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. जिसमें कोर्ट से पिछले साल अगस्त में जारी महाराष्ट्र सरकार के एसओपी को रद्द करने का आग्रह किया गया था.

इसमें कहा गया है कि केवल वे लोग जिन्होंने कोविड ​​​​के खिलाफ टीके की दोनों खुराक ली है वे महानगर में लोकल ट्रेनों में यात्रा कर सकते हैं. याचिकाकर्ताओं के वकील नीलेश ओझा ने कोर्ट को बताया कि इस तरह का प्रतिबंध उन लोगों के लिए भेदभावपूर्ण है, जिन्हें टीका नहीं लगाया गया है. यह समानता, जीवन और यात्रा की स्वतंत्रता के उनके अधिकारों का उल्लंघन है. हालांकि राज्य सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि प्रतिबंध उचित हैं और यह नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को प्रभावित नहीं करता.

हाईकोर्ट बेंच ने राज्य के हलफनामे का हवाला दिया और ओझा से पूछा कि अदालत को राज्य की नीति में हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए? कहा कि टीकाकरण COVID-19 से लड़ने के लिए एक तरह का हथियार है. एचसी ने महाराष्ट्र सरकार के हलफनामे को पढ़ा कि किसी के कोविड संक्रमित होने की संभावना, या किसी को अस्पताल में भर्ती होने के लिए मजबूर होने की संभावना टीकाकरण के बाद कम हो जाती है.

यह भी पढ़ें- PM security breach : SC के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में होगी जांच

अदालत ने कहा कि वास्तव में कोई भी दवा आपको 100 प्रतिशत सुरक्षा नहीं दे सकती. यदि आप मधुमेह से पीड़ित हैं और दवा लेते हैं तो आप बस किसी गंभीर घटना से खुद को बचा रहे हैं. टीकाकरण भी उसी तरह से है. उच्च न्यायालय ने कहा याचिकाकर्ताओं को यह दिखाना होगा कि यह नीति अनुचित है. 17 जनवरी को इस मामले की आगे सुनवाई होगी.

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने कहा कि जो लोग कोविड-19 का टीका नहीं लगाने वाले लोगों को मुंबई में लोकल ट्रेनों में यात्रा करने से रोकने की (ban from travel) महाराष्ट्र सरकार की नीति का विरोध कर रहे हैं, उन्हें यह साबित करना होगा कि ऐसी नीति पूरी तरह से मनमानी और अनुचित है.

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की पीठ (A bench of Chief Justice Dipankar Dutta and Justice MS Karnik) ने कहा कि अगर कोर्ट को यह विश्वास हो जाता है कि ऐसी नीति बिल्कुल अनुचित है (The policy is totally unfair) और यह अदालत की अंतरात्मा को झकझोरती है तो वह राज्य सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों में हस्तक्षेप करेगी.

अदालत ने यह भी कहा कि COVID-19 से लड़ने के लिए टीकाकरण एक प्रकार का हथियार है और जिन्होंने टीका नहीं लिया है उनके पास यह ढाल नहीं है. हाईकोर्ट की बेंच फिरोज मिथिबोरवाला और योहन तेंगरा द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. जिसमें कोर्ट से पिछले साल अगस्त में जारी महाराष्ट्र सरकार के एसओपी को रद्द करने का आग्रह किया गया था.

इसमें कहा गया है कि केवल वे लोग जिन्होंने कोविड ​​​​के खिलाफ टीके की दोनों खुराक ली है वे महानगर में लोकल ट्रेनों में यात्रा कर सकते हैं. याचिकाकर्ताओं के वकील नीलेश ओझा ने कोर्ट को बताया कि इस तरह का प्रतिबंध उन लोगों के लिए भेदभावपूर्ण है, जिन्हें टीका नहीं लगाया गया है. यह समानता, जीवन और यात्रा की स्वतंत्रता के उनके अधिकारों का उल्लंघन है. हालांकि राज्य सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि प्रतिबंध उचित हैं और यह नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को प्रभावित नहीं करता.

हाईकोर्ट बेंच ने राज्य के हलफनामे का हवाला दिया और ओझा से पूछा कि अदालत को राज्य की नीति में हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए? कहा कि टीकाकरण COVID-19 से लड़ने के लिए एक तरह का हथियार है. एचसी ने महाराष्ट्र सरकार के हलफनामे को पढ़ा कि किसी के कोविड संक्रमित होने की संभावना, या किसी को अस्पताल में भर्ती होने के लिए मजबूर होने की संभावना टीकाकरण के बाद कम हो जाती है.

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अदालत ने कहा कि वास्तव में कोई भी दवा आपको 100 प्रतिशत सुरक्षा नहीं दे सकती. यदि आप मधुमेह से पीड़ित हैं और दवा लेते हैं तो आप बस किसी गंभीर घटना से खुद को बचा रहे हैं. टीकाकरण भी उसी तरह से है. उच्च न्यायालय ने कहा याचिकाकर्ताओं को यह दिखाना होगा कि यह नीति अनुचित है. 17 जनवरी को इस मामले की आगे सुनवाई होगी.

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