नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कांग्रेस और तमाम राजनीतिक पार्टियों पर 'परिवारवाद' और 'भाई भतीजावाद' को लेकर उठ रहे सवाल क्या अब तर्कसंगत रह गए हैं. ये सवाल सामने आया है क्योंकि अब भाजपा में एक के बाद एक सदस्यता लेने वाले नेताओं की फेहरिस्त देखी जाए तो यह लिस्ट लंबी होती नजर आ रही है. इस लिस्ट में वंशवादी नेताओं या किसी खास परिवार से ताल्लुक रखने वाले नेताओं का आना निरंतर जारी है. यही नहीं, अब तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस और दूसरी पार्टियों से उन तमाम बड़े परिवार के नेताओं को भाजपा ने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है, जिन पर कभी पार्टी के नेता 'डायनेस्टी पॉलिटिक्स' के नाम से उंगली उठाया करते थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को लाल किले की प्राचीर से दिए गए अपने स्वतंत्रता दिवस वाले भाषण में 'परिवारवाद' और 'भाई भतीजावाद' का हवाला देते हुए-वंशवाद की राजनीति और भाई-भतीजावाद के संदर्भ में, इसे भारत के सामने मौजूद दो प्रमुख चुनौतियों में से एक के रूप में बताया था. पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि भाई-भतीजावाद भारत की संस्थाओं को खोखला कर रहा है. वंशवाद की राजनीति केवल वंश के लाभ के लिए है, देश के लिए नहीं.
हालांकि, उनका भाषण समाप्त होने के तुरंत बाद, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगे थे, और कई यूजर्स भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) का सचिव बनने के लिए जय शाह की योग्यता पर सवाल उठा रहे थे. कांग्रेस के नेता तारिक अनवर ने भी पीएम को उनकी इस टिप्पणी के लिए निशाने पर लिया. उन्होंने इस तरफ इशारा किया कि भाजपा में भी वंशवादी नेताओं की भरमार है और यह कहा कि ये आम लोग हैं जो नेताओं को चुनते हैं. प्रधानमंत्री खुद भाई-भतीजेवाद की बात कर रहे हैं, जो सरासर अनुचित है. नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर वादा किया है कि वह भारतीय राजनीति और संस्थानों में भाई-भतीजावाद को खत्म कर देंगे. उम्मीद है कि वह जल्द ही जय शाह, पीयूष गोयल, अनुराग ठाकुर, देव फडणवीस और कई अन्य को हटा देंगे.
वास्तव में, जहां प्रधानमंत्री मोदी ने इस मुद्दे को लेकर लगातार और निरंतर रूप से विपक्षी दलों पर हमला किया है. वहीं, भाजपा भी नियमित रूप से अन्य दलों के ऐसे नेताओं को शामिल करती आ रही है और उन्हें पार्टी और सरकार में अहम पद भी दिए गए हैं. ऐसा ही एक उदाहरण हरियाणा कांग्रेस के पूर्व नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई और उनकी पत्नी और पूर्व विधायक रेणुका बिश्नोई का है, जो इसी महीने की शुरुआत में भाजपा में शामिल हुए थे.
यदि देखा जाए तो चाहे वह आरपीएन सिंह हो, जतिन प्रसाद हों या फिर सुवेंदु अधिकारी, या मुलायम सिंह की बहु अपर्णा यादव या फिर कर्नाटक सीएम बसवराज बोम्मई जो पूर्व मुख्यमंत्री के पुत्र भी है, इन सबके चयन या उन्हें जिम्मेदारी देने के वक्त भी पार्टी के किसी बड़े नेता ने कोई टिप्पणी नहीं की और सबकी सहमति उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई. यही नहीं, पार्टी के साथ जो सहयोगी दलों का गठबंधन भी रहा या वर्तमान में है, उनमें अपना दल की नेता और सोनेलाल पटेल की बेटी अनुप्रिया पटेल, हरियाणा में जनता पार्टी के नेता दुष्यंत चौटाला ओम प्रकाश चौटाला के पुत्र हैं, चिराग पासवान के बाद रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस को शामिल किया जाना, और इससे पहले शिरोमणि अकाली दल, शिवसेना, तेदेपा, वंशवादियों के नेतृत्व वाली ऐसी कई अन्य पार्टियों के साथ भी गठबंधन में भाजपा शामिल हैं, जिन्होंने केंद्र और राज्यों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में कभी न कभी गठबंधन किया है.
भाजपा नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता आर.पी. सिंह का कहना है कि पार्टी में वंशवाद नहीं है. दल में वे लोग शामिल हुए हैं, जो पहले से अपने बल पर मुकाम तक पहुंचे हैं. ऐसा नहीं की सारे प्रमुख पद पर किसी खास परिवार के लोग बैठे हैं. जैसा कांग्रेस, एनसीपी, समाजवादी पार्टी, ठाकरे परिवार, डीएमके, शिरोमणि अकाली दल बादल और तमाम ऐसी पार्टियों में होता रहा है. बहरहाल, भाजपा चाहे कुछ भी कहे, लेकिन हर चुनाव या भाषण में इस मुद्दे को हथियार के तौर और इस्तेमाल करना, अब पार्टी के लिए आने वाले दिनों में मुश्किल हो सकता है. क्योंकि एक लंबी लिस्ट ऐसे नेताओं की पार्टी में अब बनती जा रही जिसपर विपक्ष हंगामा मचाने से पीछे नहीं हटेगी.