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देश के सभी उच्च न्यायालयों में समान न्यायिक संहिता की मांग वाली याचिका खारिज - use common judicial terms

सुप्रीम कोर्ट ने सभी उच्च न्यायालयों में समान न्यायिक संहिता SC on uniform judicial code) की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया. वकील अश्विनी कुमार ने यह याचिका दाखिल की थी.

uniform judicial code
समान न्यायिक संहिता
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Published : Sep 1, 2022, 3:09 PM IST

Updated : Sep 1, 2022, 10:59 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें सभी उच्च न्यायालयों में समान न्यायिक संहिता (SC on uniform judicial code) की मांग की गई थी. याचिकाकर्ता ने समान न्यायिक शब्दावली, वाक्यांशों एवं संक्षिप्त शब्दों का उपयोग करने के लिए समान संहिता अपनाने की दिशा में उचित कदम की अपील की थी. वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने याचिका दाखिल की थी. प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि वह याचिका पर विचार करने के लायक नहीं है.

अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने यह कहते हुए याचिका दायर की थी कि इस तरह के कदम से नागरिकों को न्याय दिलाने में मदद मिलेगी. याचिका में कहा गया है कि अलग-अलग हाई कोर्ट में अलग-अलग शब्दावलियों का प्रयोग होता है. उसमें एकरूपता नहीं है. इससे आम आदमी को सबसे ज्यादा परेशानी होती है. यहां तक कि उनके वकीलों को भी इसे समझने में समय लगता है.

याचिकाकर्ता की दलील थी कि एक ही मामलों में अलग-अलग कोर्ट में अलग-अलग शब्दों का प्रयोग होता है, यहां तक कि उनके संक्षिप्त रूप भी अलग-अलग होते हैं. याचिकाकर्ता ने कोर्ट में कहा कि जब हमारे देश में एक कानून है, और उसी से सब निर्देशित होते हैं, तो इनके लिए अलग-अलग शब्दों का प्रयोग क्यों हो रहा है. उनके अनुसार अदालत के शुल्क तक में अंतर है.

अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में सुप्रीम कोर्ट से भारत के विधि आयोग को न्यायिक शर्तों, वाक्यांशों, संक्षिप्ताक्षरों, केस पंजीकरण और अदालत शुल्क वर्दी बनाने के लिए उच्च न्यायालयों के परामर्श से एक रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश देने की मांग की थी.

यह भी पढ़ें- SC ने कहा, पत्रकार आतंकवादी नहीं, आधी रात को बेडरूम से गिरफ्तारी अनुचित

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें सभी उच्च न्यायालयों में समान न्यायिक संहिता (SC on uniform judicial code) की मांग की गई थी. याचिकाकर्ता ने समान न्यायिक शब्दावली, वाक्यांशों एवं संक्षिप्त शब्दों का उपयोग करने के लिए समान संहिता अपनाने की दिशा में उचित कदम की अपील की थी. वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने याचिका दाखिल की थी. प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि वह याचिका पर विचार करने के लायक नहीं है.

अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने यह कहते हुए याचिका दायर की थी कि इस तरह के कदम से नागरिकों को न्याय दिलाने में मदद मिलेगी. याचिका में कहा गया है कि अलग-अलग हाई कोर्ट में अलग-अलग शब्दावलियों का प्रयोग होता है. उसमें एकरूपता नहीं है. इससे आम आदमी को सबसे ज्यादा परेशानी होती है. यहां तक कि उनके वकीलों को भी इसे समझने में समय लगता है.

याचिकाकर्ता की दलील थी कि एक ही मामलों में अलग-अलग कोर्ट में अलग-अलग शब्दों का प्रयोग होता है, यहां तक कि उनके संक्षिप्त रूप भी अलग-अलग होते हैं. याचिकाकर्ता ने कोर्ट में कहा कि जब हमारे देश में एक कानून है, और उसी से सब निर्देशित होते हैं, तो इनके लिए अलग-अलग शब्दों का प्रयोग क्यों हो रहा है. उनके अनुसार अदालत के शुल्क तक में अंतर है.

अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में सुप्रीम कोर्ट से भारत के विधि आयोग को न्यायिक शर्तों, वाक्यांशों, संक्षिप्ताक्षरों, केस पंजीकरण और अदालत शुल्क वर्दी बनाने के लिए उच्च न्यायालयों के परामर्श से एक रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश देने की मांग की थी.

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Last Updated : Sep 1, 2022, 10:59 PM IST
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