ETV Bharat / bharat

धर्मनगरी गया में इस बार भी नहीं होगा पिंडदान, पितृपक्ष मेला शुरू करने की मांग कर रहा पंडा समाज - पितृपक्ष मेला शुरू करने की

पितृपक्ष में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए पिंडदान (Pind Daan) करने के लिए बिहार के गया में बड़ी संख्या में लोग दूर-दूर से आते हैं. लेकिन कोरोना के कारण इस बार भी लोग अब पिंडदान नहीं कर सकेंगे. पढ़ें पूरी खबर..

धर्मनगरी गया
धर्मनगरी गया
author img

By

Published : Aug 4, 2021, 10:44 PM IST

गया: हिंदू धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है और जब तक पुनर्जन्म या मोक्ष नहीं होता, आत्माएं भटकती हैं. इनकी शांति और शुद्धि के लिए गया में पिंडदान (Pind Daan Gaya) किया जाता है, ताकि वे जन्म-मरण के फंदे से छूट जाएं. लेकिन इस बार भी कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के कारण पिंडदान पर रोक लगा दिया गया है.

पितृपक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है पितरों का पखवाड़ा, यानि कि पूर्वजों के लिए 15 दिन. हर साल अनंत चतुर्दर्शी के बाद भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पितृपक्ष के रूप में मनाया जाता है.

हर साल अगस्त और सितंबर में लाखों लोग यहां आते हैं

यहां हर साल अगस्त और सितंबर में लाखों लोग देश-विदेश के विभिन्न कोने से आते हैं और अपने घर के वैसे सदस्यों जिनकी मृत्यु हो चुकी है उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं. उनकी फोटो प्रेतशिला पर्वत पर छोड़कर जाते हैं और सत्तू भी उड़ाते हैं.

देखें रिपोर्ट

माना जाता है विभिन्न पिंडवेदी पर पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. गया नगर में स्थित मुख्य पिंडदान में प्रेतशिला वेदी है जहां अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों के मोक्ष प्राप्ति के लिए धर्मशीला पर्वत पर सत्तू उड़ाया जाता है. पिछले दो सालों से कोरोना महामारी की वजह से यहां सन्नाटा पसरा है.

ये भी पढ़ें - शिव मंदिर से लिपटे रहे 'नागराज', श्रद्धालु मान रहे शुभ संयोग

मनुष्य के लिए वेदों में चार पुरुषार्थों का नाम लिया गया है, ये चार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं. ऐसे में अंतिम पुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति का स्थान गयाजी को माना गया है. जब तीन पुरुषार्थ सार्थक हैं, तब ही मोक्ष सुलभ हो सकता है.

पितृपक्ष यानी पितरों का पक्ष, इस पक्ष में पूर्वज अपने लोक से पृथ्वी लोक के गयाजी में आते हैं. कहा जाता है कि गयाजी में पीतर अपने वंशजों को देखकर काफी प्रसन्न होते हैं. यहां आटा, फल, फूल, भोजन और कुछ नहीं मिले, तो बालू का पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिल जाता है. उन्हें बैकुंठ की प्राप्ति होती है.

पितृपक्ष में पिंडदान करने की शुरुआत ब्रह्मा जी के पुत्र ने शुरू की थी

पितृपक्ष में पिंडदान करने की शुरुआत ब्रह्मा जी के पुत्र ने शुरू की थी. वायु पुराण की कथा के अनुसार, 'प्राचीन काल में गयासुर ने दैत्यों के गुरु शंकराचार्य की सेवा कर वेद, वेदांत, धर्म तथा युद्ध कला में महारत हासिल की. इसके बाद उसने भगवान विष्णु की तपस्या कर उन्हें भी प्रसन्न कर लिया. भगवान विष्णु ने गयासुर को मनचाहा वरदान मांगने की बात कह दी. इसपर गयासुर ने वरदान मांगते हुए कहा कि भगवान जो भी मेरे दर्शन करे, वह सीधे बैकुंठ जाए. भगवान विष्णु तथास्तु कह कर चले गए.'

ज्योतिषों के अनुसार जिस तिथि को माता-पिता, दादा-दादी आदि परिजनों की मृत्यु होती है, उस तिथि पर इन सोलह दिनों में उनका श्राद्ध करना उत्तम रहता है. जब पितरों के पुत्र या पौत्र द्वारा श्राद्ध किया जाता है तो पितृ लोक में भ्रमण करने से मुक्ति मिलकर पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हो जाता है.

गया को विष्णु का नगर माना जाता है

गया को विष्णु का नगर माना जाता है, जिसे लोग विष्णु पद के नाम से भी जानते हैं. यह मोक्ष की भूमि कहलाती है. विष्णु पुराण के अनुसार यहां पूर्ण श्रद्धा से पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष मिलता है. मान्यता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में उपस्थित रहते हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहते हैं.

पिंडवेदियों में प्रेतशिला, रामशिला, अक्षयवट, देवघाट, सीताकुंड, देवघाट, ब्राह्मणी घाट, पितामहेश्वर घाट काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. कई दशकों से यहां पितृपक्ष मेला लगता रहा है. लेकिन इस बार भी कोरोना महामारी के चलते मेले को रद्द कर दिया गया है.

दो साल से यहां कोई भी तीर्थयात्री नहीं आ रहा : पंडा सत्येंद्र

इस बारे में पंडा सत्येंद्र पांडेय का कहना है कि दो साल से यहां कोई भी तीर्थयात्री नहीं आ रहे हैं. यहां पूरा सन्नाटा पसरा हुआ है. जिला प्रशासन से हमारी मांग है कि जल्द से जल्द पितृपक्ष मेला चालू किया जाए. सावन मास से ही श्रद्धालु यहां आना शुरू हो जाते थे लेकिन इस बार बिल्कुल सन्नाटा है.

वहीं पंडा जय पांडेय का कहना है कि कोई आ नहीं रहा है. मेला लगेगा की नहीं संशय बना हुआ है. हम सभी के सामने कमाने खाने की समस्या पैदा हो गई है. पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए पिंडदान जरूरी है.

ये भी पढ़ें - प्रयागराज: दुनिया में कहीं नहीं है संकटमोचन हनुमान का ये दिव्य स्वरूप, मां गंगा हर साल करती हैं दर्शन

इसी तरह पालकी उठाने वाले फागु मांझी का कहना है कि सावन माह से लेकर कार्तिक माह तक सैकड़ों की संख्या में पालकी वाले रहते थे. सभी पालकी वाले हर दिन हजार के करीब कमा लेते थे पिछले 2 सालों से 1 सप्ताह में मुश्किल से दो सौ से तीन सौ रुपया कमाई होती है. 2 सालों से मुश्किल से 10 पालकी वाले रहते हैं और सभी की स्थिति भुखमरी के कगार पर पहुंच गई है.

ABOUT THE AUTHOR

author-img

...view details

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.