नई दिल्ली : मानसून सत्र की कार्यवाही का नौवां दिन भी हंगामे की भेट चढ़ गया. हालांकि लोकसभा में सदन को स्थगित करने से पहले सामान्य बीमा कानून में संशोधन के लिए एक विधेयक लोकसभा में पेश किया गया था. सरकार राज्य के स्वामित्व वाली बीमा कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी कम करना चाहती है, लेकिन सदन की कार्यवाही में विपक्षी सांसदों की सहभागिता शून्य के बराबर रही.
कांग्रेसी सांसद ने सुबह ही पेगासस जासूसी कांड के मुद्दे पर चर्चा के लिए लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया था. विपक्षी पार्टियां सबसे पहले पेगासस पर चर्चा कराना चाह रही थीं. उसके बाद ही किसी अन्य विषय पर. वहीं अकाली दल किसानों के बिल की चर्चा की मांग जोर शोर से कर रहा है. इस बीच सरकार ने संसद में आज कोविड-19 पर चर्चा रखी थी मगर संसद में विपक्षी पार्टियों के हंगामे की वजह से यह चर्चा नहीं हो पाई. सत्तापक्ष ने इसके लिए विपक्षी पार्टियों को जिम्मेदार ठहराया.
जनसंख्या नियंत्रण पर भी होनी थी चर्चा
राज्यसभा में शुक्रवार को प्राइवेट मेंबर बिल के तहत सांसद राकेश सिन्हा की तरफ से रखे गए प्रस्ताव जनसंख्या नियंत्रण पर चर्चा होनी थी लेकिन लगातार हंगामे की वजह से इस पर भी चर्चा नहीं हो पाई.
पेगासस पर ही चर्चा चाहता है विपक्ष
विपक्षी दलों के सांसदों की बैठक इस मुद्दे पर हुई जिसमें लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदन के सांसद शामिल हुए. सांसदों ने इस बैठक के बाद अपना एजेंडा साफ कर दिया कि विपक्षी पार्टियां पेगासस मुद्दे को ही राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे के रूप में देख रही हैं इसलिए वह संसद में सबसे पहले इस पर चर्चा चाहती हैं. सरकार पेगासस के मुद्दे पर चर्चा कराने को तैयार नहीं हो रही क्योंकि आईटी मंत्री इस पर जवाब दे चुके हैं. वहीं, विपक्षी दलों का मानना है कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री जवाब दें. ऐसे में अब इस मामले में विपक्षी पार्टियों को प्लेटफार्म पर लाने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को जिम्मेदारी दी गई है.
नेताओं के साथ चर्चा कर सकते हैं राजनाथ
संसद में चल रहे हंगामे और डेडलॉक को खत्म करने को लेकर राजनाथ सिंह रविवार को विपक्षी पार्टियों के नेताओं के साथ चर्चा कर सकते हैं. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के ज्यादातर विपक्षी पार्टियों के साथ सहज संबंध हैं और इसलिए यह जिम्मेदारी सरकार ने उन्हें दी है. देखा जाए तो इससे पहले यदि किसी एक मुद्दे पर पूरा का पूरा विपक्ष लामबंद होता था तो सरकार चर्चा कराने को तैयार हो जाती थी लेकिन पेगासस के मुद्दे पर सरकार किसी हालत में चर्चा को तैयार नहीं हो रही.
सूत्रों की मानें तो वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि यदि पेगासस पर चर्चा हुई तो सरकार पर काफी कीचड़ उछाला जा सकता है. इसके अलावा राष्ट्र की सुरक्षा से संबंधित सवाल भी पूछे जा सकते हैं जिसका सार्वजनिक तौर पर जवाब देना या सरवर का खुलासा करना सरकार के लिए संभव नहीं है. ऑक्सीजन की कमी से मौत नहीं वाले बयान पर भी विपक्ष जवाब मांग रहा है.
इस मुद्दे का कोई आधार नहीं : राजनीतिक विश्लेषक
इस मुद्दे पर राजनीतिक विश्लेषक देश रतन निगम से 'ईटीवी भारत' ने बातचीत की. उनका कहना है कि विपक्षी पार्टियों को मालूम है कि बाकी मुद्दों का जनता पर असर नहीं होगा तो पेगासस का शिगूफा छोड़ा गया है मगर इस मुद्दे का कोई आधार नहीं है. न ही अभी तक पेगासस के मुद्दे पर कोई भी लिखित शिकायत दर्ज की गई है. पेगासस भी इनकार कर चुका है कि उसके सर्वर का इस्तेमाल हुआ. ऐसे में विपक्षी पार्टियां इस तरह के मुद्दे को लेकर लगातार संसद में हंगामा कर केवल माहौल खराब कर रही हैं. ये देश हित में कतई नहीं है.
उन्होंने कहा कि यदि कोई भी सरकार अपने इंटेलिजेंस या आतंकवादी गतिविधियों के लिए फोन की टैपिंग भी करती है तो वह उसके लिए जरूरी नहीं होता कि वह बताएं कि वह किस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रही है. यदि कोई सरकार खुलेआम यह बात बताती है कि वह किस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करती है तो कहीं ना कहीं राष्ट्र विरोधी ताकतों के लिए गड़बड़ी फैलाने में आसान हो जाता है. यह राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़ा मामला है ऐसे में विपक्षी पार्टियां बार-बार यह मांग कर रही है कि सॉफ्टवेयर का नाम बताया जाए जो सरासर देश हित में नहीं है.
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उन्होंने कहा कि इसी तरह की बात राफेल में भी उठाई गई थी. अब पेगासस का मुद्दा है. देश का आईटी मंत्रालय पहले ही कह चुका है कि दिक्कत है तो शिकायत दर्ज करा सकते हैं. जासूसी हुई इसके लिए भी संभावित शब्द का इस्तेमाल हुआ है. विपक्ष बार-बार यह दावा कर रहा है कि उनके पास 50 हज़ार लोगों की लिस्ट है लेकिन लिस्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है ना ही किसी ने अभी तक कोई पुलिस कम्प्लेन की है.
'कौन से मुद्दे अधिकार क्षेत्र में ये जानना जरूरी'
इस मुद्दे पर कि क्या राजनाथ सिंह विपक्ष के साथ बातचीत कर उन्हें प्लेटफार्म पर ला सकते हैं उनका कहना है कि आम जनता को इस मुद्दे से कोई लेना देना नहीं है.
इस सवाल पर कि ममता बनर्जी ने इंक्वायरी के लिए जो कमीशन बनाया है, उनका कहना है कि नियमतः वह ऐसा नहीं कर सकतीं. यह सरासर गलत है क्योंकि हमारे संविधान में राज्य सरकार के लिए जो राज्य सूची है राज्य उसी पर कमीशन बना सकती, लेकिन जो केंद्र की सूची है उस पर राज्य कमीशन नहीं बना सकती. यह जो मुद्दे हैं टेलीकम्युनिकेशन, वायरलेस यह तमाम चीजें एंट्री 31 में आती हैं जो यूनियन लिस्ट में हैं, जिस पर राज्य सरकार कोई इंक्वायरी कमीशन नहीं बना सकती. यह गलत है इस वजह से उन्होंने इस पर कोर्ट के हस्तक्षेप मांगे हैं यह उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है. यह संसद के ही अधिकार क्षेत्र में है यह तमाम विपक्षी पार्टियां राजनीति करते करते यह भी भूल जाती है कि कौन से मुद्दे उनके अधिकार क्षेत्र में है और कौन से नहीं इसलिए कहीं ना कहीं इन बातों से अराजकता फैलती है.