इंदौर। क्या आप यकीन करेंगे कि ध्यान योग के जरिए कोई भी व्यक्ति कई घंटे तक बिना सांस लिए भी जीवित रह सकता है, जी हां इंदौर में राजारमन्ना प्रगत औद्योगिकी केंद्र के रिटायर्ड वैज्ञानिक डॉ. वेद प्रकाश गुप्ता ने ध्यान योग को विज्ञान से जोड़ते हुए कई वर्षों के अभ्यास के बाद बिना ऑक्सीजन के करीब 2 घंटे तक जीवित रहने का करिश्मा कर दिखाया है. यह पहला मौका है जब साधु संतों के अलावा किसी गृहस्थ व्यक्ति ने ध्यान योग के जरिए बिना ऑक्सीजन के इतनी देर तक रहने का सफल प्रयोग किया हो.
सांस लेने की प्रक्रिया शून्य: योग से बीमारियों के उपचार के लिए अन्य लोगों की तरह ही 71 साल के रिटायर्ड वैज्ञानिक वेदप्रकाश गुप्ता ने डिप्रेशन ब्लड प्रेशर और ह्रदय रोग से मुक्ति पाने के लिए पतंजलि योग सूत्र पुस्तक के अनुसार ध्यान योग करना शुरु किया. इस दौरान उन्होंने अनुभव किया कि मन एकाग्र करने के बाद ध्यान योग से उनकी सांस की गति बहुत कम हो जाती थी. इसके बाद उन्होंने अपने ध्यान करने का समय लगातार बढ़ाया तो उनकी साथ लेने की गति लगातार कम होती चली गई. करीब 20 साल के अभ्यास के बाद अब स्थिति है है कि ध्यान योग के दौरान उनकी सांस लेने की प्रक्रिया लगभग शून्य हो चुकी है.
ऑक्सीजन के बॉक्स में ध्यान योग: जब उन्होंने यह बात अपने समकक्ष वैज्ञानिकों को बधाई तो किसी ने यकीन नहीं किया लिहाजा उन्होंने अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए कुछ यंत्र बनाए जिनके जरिए वे ऑक्सीजन के बिना ध्यान योग कर पाएं, लिहाजा उनके सहयोगी वैज्ञानिकों ने भी इस काम में सहयोग किया और करीब 20 लाख रुपए की लागत से उन्होंने नाइट्रोजन गैस के जरिए एक ऐसा वैक्यूम बॉक्स बनाया जिसमें लेटने के दौरान नाइट्रोजन गैस प्रवाहित करने पर बॉक्स में ऑक्सीजन का स्तर जीरो हो जाता है. इसके बाद उन्होंने पल्स ऑक्सीमीटर को ब्लूटूथ के जरिए मोबाइल से कनेक्ट करके नाइट्रोजन बॉक्स में ऑक्सीजन का स्तर जीरो रहते हुए उनकी हार्ट बीट को सतत मॉनिटर करने का प्रयास किया. जिसके फलस्वरुप अब वह हर बार में करीब आधे घंटे तक बिना ऑक्सीजन के बॉक्स में ध्यान योग करते हैं. जिसके बाद उन्हें ना तो कोई तकलीफ होती है ना परेशानी होती है हालांकि अब वेद प्रकाश गुप्ता अपने इस सफल प्रयोग को पूर्व दुनिया के सामने लाकर प्राचीन भारतीय ध्यान योग को एक बार फिर विज्ञान से जोड़कर तरह तरह की भी बीमारियों के उपचार में ध्यान योग के दुर्लभ महत्व को उनके प्रयोग की बदौलत नए सिरे से साबित करना चाहते हैं.
वेद प्रकाश गुप्ता के प्रयोग परवरिश वैज्ञानिक बद्री प्रसाद दुबे बताते हैं कि मस्तिष्क के आसपास नर्व में मौजूद पानी के अवयव ऑक्सीजन को ध्यान योग के जरिए शरीर को जीवित रख पाना संभव है इस प्रक्रिया में शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड तो निकलती है लेकिन जरुरी ऑक्सीजन मस्तिष्क से ले ली जाती है जो शव आसन में शरीर और मन को शांत रखने से संभव हो जाता है.
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होम्योपैथी अनुसंधान परिषद की मंजूरी: वरिष्ठ वैज्ञानिक वेदप्रकाश गुप्ता के इस प्रयोग पर चर्चा करते हुए केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद आयुष मंत्रालय के डॉक्टर एके द्विवेदी का मानना है कि मन को एकाग्र कर स्वसन तंत्र को नियंत्रित किया जा सकता है प्राचीन दौर में स्थान का प्रयोग साधु संतों के जल समाधि एवं भूमिगत समाधि में प्रयोग होते थे लेकिन आज के समय में लगातार प्रयास से यह संभव है. उन्होंने कहा ध्यान योग, योग में भी उच्च स्तर का योग है जिसमें सांस को नियंत्रित करने की प्रक्रिया संभव है. डॉ. द्विवेदी के मुताबिक ध्यान योग में व्यक्ति अपने रक्त में मौजूद rbc से हीमोग्लोबिन के जरिए ऑक्सीजन का अवशोषण कर सकता है जो शरीर में फेफड़े और रक्त के माध्यम से ऑक्सीजन को प्रवाहित करता रहता है.
प्रयोग पर लिखी पुस्तक: वैज्ञानिक वेदप्रकाश गुप्ता ने अपने इस प्रयोग को पूरी एक पुस्तक में सजोते हुए ध्यान योग की प्रक्रिया और उसका महत्व बताया है योग साइंस थ्योरी ऑफ माइंड एंड आत्मा नामक इस पुस्तक का प्रकाशन भी जल्द होने वाला है जिसमें प्राचीन भारतीय योग में ध्यान योग का महत्व विज्ञान आधारित तथ्यों के साथ प्रकाशित कराया जाएगा.