जयपुर : वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा है कि सत्तारूढ़ व विपक्ष दल के बीच कामकाजी रिश्ता (वर्किंग रिलेशनशिप) जरूरी है. आपके (विपक्ष व सत्तापक्ष के) बीच इतनी आपसी समझ हो कि कोई अच्छा काम हो तो आपको समर्थन मिले. आजाद ने बिना किसी का जिक्र किए इसी क्रम में आगे कहा, 'लेकिन इतनी दूरियां अगर खीचेंगे तो अच्छे काम को भी कोई समर्थन नहीं मिलेगा. यह दोनों तरफ से हो सकता है. एक कामकाजी रिश्ता बनाने की बहुत अधिक आवश्यकता है.'
आजाद राजस्थान विधानसभा में 'संसदीय प्रणाली और जन अपेक्षाएं' विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे. इस संगोष्ठी का आयोजन राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की राजस्थान शाखा ने किया था. सदन के दोनों पक्षों के बीच बेहतर आपसी समझ का जिक्र करते हुए आजाद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ अपने रिश्तों को जिक्र किया. उन्होंने कहा कि जब वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने मदनलाल खुराना को कुछ सीखने के लिए उनके पास भेजा.
आजाद ने कहा, 'अब भी थोड़ा कुछ इस तरह का माहौल हमारे यहां था... लोगों ने उसे अलग समझा कि मैं भाजपा में जा रहा हूं . मैं कहीं नहीं जा रहा था.'
आजाद ने कहा कि सदन के नेता और विपक्ष के नेता अथवा अन्य के बीच रिश्तों का अर्थ अलग अलग या गलत निकाला जा सकता है लेकिन वह आपसी समझ नहीं होगी तो लोकतंत्र नहीं चलेगा.
पूर्व केंद्रीय मंत्री आजाद ने कहा, 'अच्छे आदमी हर जगह हैं, हर पार्टी में हैं ... देश में अच्छे आदमियों की कमी नहीं. उन अच्छे आदमियों की कद्र करनी चाहिए और उन जैसा बनने की कोशिश करनी चाहिए. अच्छे जनप्रतिनिधियों की कमी नहीं. उन जनप्रतिनिधियों जैसा बनने का प्रयास हमें करना होगा.'
उन्होंने कहा कि संसदीय प्रणाली के सुचारू क्रियान्वयन के लिए जरूरी है कि विधायिका पक्ष और विपक्ष की भूमिका से अलग हटकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. उन्होंने कहा कि विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध संसदीय कार्यप्रणाली के आधार स्तम्भ हैं.
उन्होंने कहा कि हमारे देश में विधायिका केवल कानून बनाने की भूमिका तक सीमित नहीं है बल्कि लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए अपने चुने हुए प्रतिनिधि से अपेक्षा रखते हैं. कांग्रेस नेता ने कहा, 'हमारे देश में आम आदमी विधायिका के चुनाव में अपना वोट केवल कानून या नीतियां बनाने के लिए नहीं देता, बल्कि काम और समस्याओं के समाधान के लिए देता है.'
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की खूबसूरती इसी में है कि पक्ष और विपक्ष विकास के मुद्दों पर मिलकर काम करें. उन्होंने कहा कि विकसित देशों और विकासशील देशों में विधायिका से जनता की अपेक्षाओं में जमीन आसमान का अन्तर है.
उन्होंने कहा कि विधायक और सांसदों को सदन की गरिमा बनाए रखनी चाहिये और नियमों की जानकारी भी होनी चाहिये. आजाद ने कहा कि सरकार की योजनाओं को जनता तक पहुंचाने और उन योजनाओं के बारे में आमजन को शिक्षित करने की जिम्मेदारी पूरी कर विधायिका एक अच्छे शिक्षक की भूमिका का निर्वहन भी करती है.
इससे पहले विधानसभा अध्यक्ष डॉ सीपी जोशी ने आजाद का स्वागत किया. उन्होंने संसदीय लोकतंत्र में जनअपेक्षाओं को विश्लेषित करते हुए कहा कि एक सरपंच, एक विधायक और एक सांसद, सभी से लोगों की अलग अलग तरह की अपेक्षाएं हैं. उन्होंने कहा कि कितनी भी अच्छी नीतियां हों, यदि राज्य और पंचायत स्तर पर यदि उनका क्रियान्वयन नहीं हो तो उनकी कोई उपयोगिता नहीं है. जोशी ने कहा कि कोरोना के बाद ग्रामीण इलाकों में और गरीब बच्चों को फिर से शिक्षा से जोड़ना सबसे बड़ी चुनौती है.
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इस मौके पर नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि सत्ता पक्ष का काम विकास कार्यों को जनता तक पहुंचाना और विपक्ष का काम जनता की समस्याओं को सत्ता तक पहुंचाना है. उन्होंने कहा कि पक्ष और विपक्ष मिलकर उस अंतिम व्यक्ति को सशक्त करने का प्रयास करें, जो अब तक भी अभावों में जी रहे हैं.
बता दें कि गुलाम नबी आजाद वैसे चुनिंदा नेताओं में शुमार किए जाते हैं, जिनकी पार्टी लाइन से इतर सभी दलों में इज्जत की जाती है. राज्य सभा से जब गुलाम नबी आजाद रिटायर हुए थे तो खुद पीएम मोदी ने उनकी प्रशंसा में कसीदे पढ़े थे. पीएम मोदी गुलाम नबी आजाद का जिक्र करते हुए भावुक भी हुए थे.
गुलाम नबी आजाद ने भी अपने विदाई भाषण में 41 साल के विधायी कैरियर का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि वे हिंदुस्तानी मुसलमान होने पर गर्व महसूस करते हैं. उन्होंने कहा कि पूरा कैरियर संघर्ष का जमाना रहा है.
(पीटीआई-भाषा)