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Fathers Day Special: 73 वर्ष की उम्र में आसूदो निभा रहे हैं सैंकड़ों बच्चों के पालक की भूमिका, 5 साल में 17 को बना दिया डॉक्टर, इंजीनियर और सीए

Fathers Day 2023: एक पिता वो जो आपको जन्म दे और एक पिता वो जो आपका पालक या अभिभावक बनकर काम करें.. आज हम एक ऐसे ही पिता आसूदो लच्छवानी की कहानी बताएंगे, जिन्होंने समाज की मदद से अब तक कई बच्चों का करियर बना दिया और 73 वर्ष की उम्र में भी उनका यह अभियान जारी है.

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आसूदो लच्छवानी की कहानी
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Published : Jun 18, 2023, 1:14 PM IST

73 वर्ष की उम्र में आसूदो बने सैकड़ों बच्चों के पालनहार

भोपाल। संत हिरदाराम नगर की एक झुग्गी बस्ती में रहने वाली ज्योति केलकर बीटेक करना चाहती थी, लेकिन उनके पिता मिस्त्री (कारीगर) का काम करते थे, तो उनके लिए अपनी बेटी का सपना पूरा करना मुश्किल हो रहा था. 5 साल पहले उनकी मुलाकात आसूदो से हुई, आसूदो ने ज्योति के पालक पिता की भूूमिका का निर्वहन करते हुए उसका एडमिशन भोपाल के टॉप प्राइवेट इंस्टीट्यूट में करवाया. इस साल ज्योति का फाइनल है और वह सीएस ब्रांच से बीटेक कम्पलीट करने वाली है, ऐसे ही 17 बच्चों का भविष्य संवार चुके हैं 73 वर्षीय आसूदो लच्छवानी.

आसूदो ने उठाया बच्चों को बेहतर जीवन देने का बीड़ा: रिटायरमेंट के बाद आमतौर पर लोग अपना जीवन आराम करने में गुजारते हैं, लेकिन संत हिरदाराम नगर के रहने वाले आसूदो लच्छवानी ने आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चों को बेहतर जीवन देने का बीड़ा उठा लिया. वे हर दिन नियमित रूप से अपने परमानेंट जॉब की तरह इस मिशन को करते हैं. शनिवार को जब उनकी कहानी जानने के लिए कॉल किया तो वे एक छात्र का प्रवेश कराने के लिए बस सीहोर के वीआईटी इंस्टीट्यूट लेकर गए थे, वह भी बस से. पूरी तरह साधारण जीवन जीकर आसाधरण काम करने वाले आसूदो से संत हिरदाराम जी की कुटिया के पास मुलाकात हुई, यही इनका घर है, जिसमें वे अपने परिवार के साथ रहते हैं.

आसूदो लच्छवानी से बातचीत की शुरूआत हुई तो वे बोले कि "मेरा एकमात्र लक्ष्य है कि धन के अभाव में कोई बच्चा पढ़ाई से वंचित ना हो जाए, इसी सोच के साथ बीते 7 साल से जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद दिला रहा हूं. वे ऐसे बच्चों की तलाश करते हैं, जो 10वीं व 12वीं में 80 फीसदी से अधिक नंबर लाने के बाद भी अपनी आगे की पढ़ाई आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण नहीं कर पाते हैं. आसूदो ऐसे ही बच्चों की खोजबीन करके उन्हें आर्थिक मदद दिला कर न केवल कॉलेज में एडमिशन दिलाते हैं, बल्कि उन्हें डॉक्टर, इंजीनियर और सीए बनवा कर ही दम लेते हैं."

7 साल में 17 का बन गया करियर: आसूदो के प्रयासों की वजह से मदद पाकर सालाना 1.20 से 3.60 लाख रुपए तक का पैकेज स्टूडेंटस पाने लगे हैं, अब वे स्टूडेंट्स अपने आप दूसरों की भी मदद कर रहे हैं. आसूदो ने बताया कि अब तक वह 5 बच्चों को सीए(CA), 7 को इंजीनियर, एक को एमबीबीएस(MBBS) की पढ़ाई पूरी करवा चुके हैं. इन बच्चों में से कई की माताएं घरों में काम करके जैसे तैसे परिवार चलाती हैं, किसी के पिता नहीं है तो जिनके पिता हैं, वे बैरागढ़ में ही दुकानों पर काम करके गुजर बसर कर रहे हैं. अभी उनकी सूची में 65 से अधिक बच्चे शामिल है, जिन्हें हर साल 7 लाख रुपए तक की सहायता राशि पहुंचाई जा रही है.

फादर्स डे स्पेशल में ये कहानियां भी जरूर पढ़ें:

2016 से हुआ सफर शुरू: आसूदो बताते हैं कि वे कई साल पहले से ही बैरागढ़ के शैक्षणिक संस्थान (जो गरीब बच्चों की पढ़ाई करवाता हैं) से जुड़े हैं, उच्च शिक्षा के बच्चों से उनका जुड़ाव वर्ष 2016 में हुआ. उन्होंने बताया कि "मैंने पाया कि गरीब बच्चों को निशुल्क कोचिंग देने वाली नव युवक परिषद के बच्चे बारहवीं तक के बाद कॉलेज नहीं पढ़ पा रहे हैं, उन्हें हमने कुछ समाजसेवियों सामाजिक संस्थाओं और शासन की योजनाओं से सहायता दिलानी शुरू की.

इसी के तहत वर्तमान में 65 से अधिक बच्चों को सालाना 7 लाख रुपए की मदद मिल रही है, जिससे वे सीएस, सीए, बीटेक, एमबीए, बीएड, यूपीएससी और एमपीपीएससी की तैयारी कर रहे हैं." उन्होंने ETV Bharat को अपना नंबर शेयर करने के लिए कहा और बोले कि "कोई भी इन बच्चों की मदद करना चाहता है तो वह मेरे मोबाइल नंबर 9893809097 पर संपर्क करके मेधावी बच्चों को सीधे हेल्प पहुंचा सकता है."

ऐसे दिलाते हैं मदद: जिन बच्चों की 12वीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेज फीस भरने की स्थिति नहीं रहती है, ऐसे बच्चों को वे अलग अलग ढंग से मदद दिलाते हैं. इसमें सबसे पहले नवयुवक परिषद से सालाना 12 हजार रुपए, सेंट्रल सेक्टर स्कॉलरशिप से 10 हजार रुपए, समाजसेवियों की मदद से सालाना 10 हजा रुपए, सिंधु सिंधी स्टूडेंट को इंदू सिंह फाउंडेशन से 12 हजार रुपए तक की स्कॉलरशिप दिलाने में सहायता करते हैं. इसी तरह प्रत्येक बच्चों को हर साल 32 हजार रुपए से 44 हजार रुपए तक की मदद मिल जाती है.

उनकी कहानी, जिन्होंने मदद पाई और अब खुद मदद कर रहे हैं: आसूदो के प्रयासों से अब तक 17 बच्चों का करियर सवर गया है, इनमें योगेश नामक स्टूडेंट जिनके पिता बैरागढ़ की एक दुकान पर काम करते थे, अब सीए बन गए हैं. योगेश की मां घरों में प्रेस करने का काम करती है. दूसरा नाम सृष्टि का है, जो अब एमबीबीएस की ईंटर्नशिप पूरी करने वाली है, इनके पिता भी कपड़े की दुकान पर काम करते हैं. तीसरा नाम लाजवंती का है, जिसने जेएनसीटी से बीटेक किया और अब करीब 4.50 लाख रुपए साल का पैकेज ले रही हैं.

दरअसल 7 साल पहले प्रारंभ हुआ यह सिलसिला नवयुवक परिषद में पढ़ने वाले बच्चों के सहयोग से ही शुरू हुआ था. आसूदो बताते हैं "हीरानंद, हीरानंद हरचंदानी, देवीदास, राजेंद्र छाबड़िया जैसे कई स्टूडेंट्स ऐसे हैं जो कि नवयुवक परिषद से पढ़ाई करके अपने मुकाम तक पहुंचे थे, नौकरी में लगने के बाद इन्होंने अन्य जरूरतमंदों की भी मदद करना शुरू की."

73 वर्ष की उम्र में आसूदो बने सैकड़ों बच्चों के पालनहार

भोपाल। संत हिरदाराम नगर की एक झुग्गी बस्ती में रहने वाली ज्योति केलकर बीटेक करना चाहती थी, लेकिन उनके पिता मिस्त्री (कारीगर) का काम करते थे, तो उनके लिए अपनी बेटी का सपना पूरा करना मुश्किल हो रहा था. 5 साल पहले उनकी मुलाकात आसूदो से हुई, आसूदो ने ज्योति के पालक पिता की भूूमिका का निर्वहन करते हुए उसका एडमिशन भोपाल के टॉप प्राइवेट इंस्टीट्यूट में करवाया. इस साल ज्योति का फाइनल है और वह सीएस ब्रांच से बीटेक कम्पलीट करने वाली है, ऐसे ही 17 बच्चों का भविष्य संवार चुके हैं 73 वर्षीय आसूदो लच्छवानी.

आसूदो ने उठाया बच्चों को बेहतर जीवन देने का बीड़ा: रिटायरमेंट के बाद आमतौर पर लोग अपना जीवन आराम करने में गुजारते हैं, लेकिन संत हिरदाराम नगर के रहने वाले आसूदो लच्छवानी ने आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चों को बेहतर जीवन देने का बीड़ा उठा लिया. वे हर दिन नियमित रूप से अपने परमानेंट जॉब की तरह इस मिशन को करते हैं. शनिवार को जब उनकी कहानी जानने के लिए कॉल किया तो वे एक छात्र का प्रवेश कराने के लिए बस सीहोर के वीआईटी इंस्टीट्यूट लेकर गए थे, वह भी बस से. पूरी तरह साधारण जीवन जीकर आसाधरण काम करने वाले आसूदो से संत हिरदाराम जी की कुटिया के पास मुलाकात हुई, यही इनका घर है, जिसमें वे अपने परिवार के साथ रहते हैं.

आसूदो लच्छवानी से बातचीत की शुरूआत हुई तो वे बोले कि "मेरा एकमात्र लक्ष्य है कि धन के अभाव में कोई बच्चा पढ़ाई से वंचित ना हो जाए, इसी सोच के साथ बीते 7 साल से जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद दिला रहा हूं. वे ऐसे बच्चों की तलाश करते हैं, जो 10वीं व 12वीं में 80 फीसदी से अधिक नंबर लाने के बाद भी अपनी आगे की पढ़ाई आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण नहीं कर पाते हैं. आसूदो ऐसे ही बच्चों की खोजबीन करके उन्हें आर्थिक मदद दिला कर न केवल कॉलेज में एडमिशन दिलाते हैं, बल्कि उन्हें डॉक्टर, इंजीनियर और सीए बनवा कर ही दम लेते हैं."

7 साल में 17 का बन गया करियर: आसूदो के प्रयासों की वजह से मदद पाकर सालाना 1.20 से 3.60 लाख रुपए तक का पैकेज स्टूडेंटस पाने लगे हैं, अब वे स्टूडेंट्स अपने आप दूसरों की भी मदद कर रहे हैं. आसूदो ने बताया कि अब तक वह 5 बच्चों को सीए(CA), 7 को इंजीनियर, एक को एमबीबीएस(MBBS) की पढ़ाई पूरी करवा चुके हैं. इन बच्चों में से कई की माताएं घरों में काम करके जैसे तैसे परिवार चलाती हैं, किसी के पिता नहीं है तो जिनके पिता हैं, वे बैरागढ़ में ही दुकानों पर काम करके गुजर बसर कर रहे हैं. अभी उनकी सूची में 65 से अधिक बच्चे शामिल है, जिन्हें हर साल 7 लाख रुपए तक की सहायता राशि पहुंचाई जा रही है.

फादर्स डे स्पेशल में ये कहानियां भी जरूर पढ़ें:

2016 से हुआ सफर शुरू: आसूदो बताते हैं कि वे कई साल पहले से ही बैरागढ़ के शैक्षणिक संस्थान (जो गरीब बच्चों की पढ़ाई करवाता हैं) से जुड़े हैं, उच्च शिक्षा के बच्चों से उनका जुड़ाव वर्ष 2016 में हुआ. उन्होंने बताया कि "मैंने पाया कि गरीब बच्चों को निशुल्क कोचिंग देने वाली नव युवक परिषद के बच्चे बारहवीं तक के बाद कॉलेज नहीं पढ़ पा रहे हैं, उन्हें हमने कुछ समाजसेवियों सामाजिक संस्थाओं और शासन की योजनाओं से सहायता दिलानी शुरू की.

इसी के तहत वर्तमान में 65 से अधिक बच्चों को सालाना 7 लाख रुपए की मदद मिल रही है, जिससे वे सीएस, सीए, बीटेक, एमबीए, बीएड, यूपीएससी और एमपीपीएससी की तैयारी कर रहे हैं." उन्होंने ETV Bharat को अपना नंबर शेयर करने के लिए कहा और बोले कि "कोई भी इन बच्चों की मदद करना चाहता है तो वह मेरे मोबाइल नंबर 9893809097 पर संपर्क करके मेधावी बच्चों को सीधे हेल्प पहुंचा सकता है."

ऐसे दिलाते हैं मदद: जिन बच्चों की 12वीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेज फीस भरने की स्थिति नहीं रहती है, ऐसे बच्चों को वे अलग अलग ढंग से मदद दिलाते हैं. इसमें सबसे पहले नवयुवक परिषद से सालाना 12 हजार रुपए, सेंट्रल सेक्टर स्कॉलरशिप से 10 हजार रुपए, समाजसेवियों की मदद से सालाना 10 हजा रुपए, सिंधु सिंधी स्टूडेंट को इंदू सिंह फाउंडेशन से 12 हजार रुपए तक की स्कॉलरशिप दिलाने में सहायता करते हैं. इसी तरह प्रत्येक बच्चों को हर साल 32 हजार रुपए से 44 हजार रुपए तक की मदद मिल जाती है.

उनकी कहानी, जिन्होंने मदद पाई और अब खुद मदद कर रहे हैं: आसूदो के प्रयासों से अब तक 17 बच्चों का करियर सवर गया है, इनमें योगेश नामक स्टूडेंट जिनके पिता बैरागढ़ की एक दुकान पर काम करते थे, अब सीए बन गए हैं. योगेश की मां घरों में प्रेस करने का काम करती है. दूसरा नाम सृष्टि का है, जो अब एमबीबीएस की ईंटर्नशिप पूरी करने वाली है, इनके पिता भी कपड़े की दुकान पर काम करते हैं. तीसरा नाम लाजवंती का है, जिसने जेएनसीटी से बीटेक किया और अब करीब 4.50 लाख रुपए साल का पैकेज ले रही हैं.

दरअसल 7 साल पहले प्रारंभ हुआ यह सिलसिला नवयुवक परिषद में पढ़ने वाले बच्चों के सहयोग से ही शुरू हुआ था. आसूदो बताते हैं "हीरानंद, हीरानंद हरचंदानी, देवीदास, राजेंद्र छाबड़िया जैसे कई स्टूडेंट्स ऐसे हैं जो कि नवयुवक परिषद से पढ़ाई करके अपने मुकाम तक पहुंचे थे, नौकरी में लगने के बाद इन्होंने अन्य जरूरतमंदों की भी मदद करना शुरू की."

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