धनबादः पर्यावरण को नुकसान से बचाने के लिए सरकार के द्वारा प्लास्टिक पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है. व्यवसायिक और घरेलू तौर पर अब लोग जूट बैग या उससे बने थैले का इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन प्लास्टिक के थैले की अपेक्षा जूट के थैले में खाद्य सामाग्री बारिश के दिनों खराब होने की संभावना बनी रहती है. आईआईटी आईएसएम के होनहार छात्रों ने इस समस्या का समाधान निकाल लिया है.
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आइआइटी आईएसएम के प्रोफेसर और छात्रों की टीम ने एक केमिकल कोटिंग का आविष्कार किया है. जिसके इस्तेमाल से किसी भी जूट के थैले या बोरे में रखे सामान को खराब होने से बचाया जा सकता है. यही नहीं जूट और बोरे की लाइफ भी कई गुना बढ़ जाती है. इस केमिकल कोटिंग का इस्तेमाल घर के जूट से बने सजावट के सामान को भी पूरी तरह से सुरक्षित रखा जा सकता है. सबसे बड़ी बात कि इसके इस्तेमाल से पर्यावरण को किसी भी तरह का नुकसान नहीं है. यही नहीं किसानों के लिए यह कोटिंग काफी फायदेमंद साबित होगा. खेतों में उपजे अनाज को बोरे में रखते हैं तो बारिश में बोरे में अनाज खराब होने की संभावना बनी रहती है. इन बोरों के ऊपर कोटिंग का स्प्रे कर देने के बाद अनाज खराब नहीं होंगे. किसान और आम लोगों की जेब के हिसाब से ही कोटिंग लागत भी है. महज 70 रुपये प्रति लीटर कोटिंग से 40 स्क्वायर मीटर बोरे या जूट के ऊपर कोटिंग की जा सकेगी.
जानिए क्या है इसकी खासियतः आईआईटी आईएसएम के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्राध्यापक प्रो. आदित्य कुमार ने छात्रों की टीम के साथ शोध के बाद के एक केमिकल कोटिंग का आविष्कार किया है. इसका नाम साइलेन कोटिंग है. इसे एक केमिकल को एक स्प्रे के रुप में तैयार किया गया है. जू के बोरे के ऊपर कोटिंग के स्प्रे कर देने मात्र से ही वाटर रेसिटेंट बन जाता है. यही नहीं कोटिंग के बाद पूरी तरह से सेल्फ क्लीनिंग प्रोपर्टी बन जाता है. इसका मतलब है कि इसपर किसी तरह की गंदगी या दाग खुद ही खत्म हो जाते है. करीब ढाई साल की रिसर्च के बाद इस केमिकल कोटिंग का आविष्कार किया जा सका है.
कोटिंग से बढ़ जाएगी जूट की उम्रः प्रो. आदित्य कुमार ने बताया कि जूट का कपड़ा, थैले या बोरे में खाद्य सामाग्री रखने पर पानी या मॉइस्चर पकड़ने पर पूरी तरह से खराब हो जाती है. लेकिन जूट के थैले के ऊपर कोटिंग करने के बाद ये समस्या खत्म हो जाएंगीं. उन्होंने कहा कि किसानों के लिए यह काफी फायदेमंद है. किसानो को अनाज बोरियों में रखना पड़ता है, उनके ऊपर कोटिंग का इस्तेमाल कर देने के बाद उनमें रखे अनाज खराब नही होंगे. होम डेकोरेशन में जूट से बने सामानों का इस्तेमाल लोग करते हैं. उन सामानों के ऊपर कोटिंग कर देने के बाद एक तो सफाई में कोई दिक्कत नहीं होगी. दूसरी उस सामान की लाइफ भी बढ़ जाएगी. जूट से बने हैंड बैग की भी लाइफ इसके जरिये बढ़ाई जा सकती है. जूट की लाइफ अमूनन छह महीने ही होती है जबकि कोटिंग के बाद उसकी लाइफ पांच साल तक बढ़ जाती है.
प्रोफेसर ने बताया कि रेलवे या रोड साइड पर जूट के थैले फेंक देने के बाद ये सड़ने लगते हैं और इनमें कीड़े लग जाते हैं. जिनकी बहुत जल्द साफ सफाई की आवश्यकता पड़ती है. लेकिन साइलेन कोटिंग किए हुए जूट में यह बात नहीं है. ये कोटिंग पूरी तरह से इको फ्रेंडली है. मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी इसका कोई असर नहीं पड़ता है. उन्होंने कहा कि साइलेन कोटिंग को पेटेंट कराने के बाद व्यवसायिक स्तर पर इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा.
इस टीम में शामिल छात्रा पूनम चौहान ने कहा कि कोटिंग केमिकल बनाने की लागत बहुत ही कम है. महज 70 रुपये प्रति लीटर में इसे तैयार किया जा सकता है. कोई भी इसे तैयार कर सकता है, 30 से 40 मिनट में इस कोटिंग को तैयार किया जा सकता है. इसके लिए किसी मशीन की जरूरत नहीं है. इसे काफी साधारण तरीके से इसे बनाया जा सकता है. इसकी प्रोडक्शन अगर बड़े पैमाने करने पर इसकी लागत और भी कम हो जाएगी.
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