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Bhopal Gaurav Diwas 2023: वो बन रहा था पाकिस्तान का हिस्सा, अगर होता ऐसा तो इन राज्यों से होकर गुजरता कॉरिडोर

भारत को 15 अगस्त 1947 में आजादी मिल गई थी, लेकिन देश के तीन राज्य ऐसे थे, जो पाकिस्तान में मिलना चाहते थे. इनमें गुजरात का जूनागढ़, हैदराबाद, त्रावणकोर, जोधपुर और मप्र का भोपाल.. भोपाल को तो आजादी के 659 दिन बाद जाकर आजादी मिली थी, इतिहासकार बताते हैं कि देश का ह्दयस्थल माने जाने वाले मप्र की राजधानी भोपाल पाकिस्तान का हिस्सा बनाने की पूरी तैयारी थी और यदि ऐसा होता तो मप्र, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब तक एक कारीडोर बनाया जाता. (Bhopal Gaurav Diwas 2023)

story of Merger of Bhopal with India
भोपाल के विलय की कहानी
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Published : May 29, 2023, 1:00 PM IST

Updated : May 29, 2023, 1:37 PM IST

भोपाल के विलय की कहानी

भोपाल। भारत ने भले ही अपना 75वा स्वतंत्रता दिवस मना लिया हो, लेकिन भोपाल के 75 वर्ष होने बाकी है, क्योंकि आजादी के भी करीब 2 साल बाद भोपाल स्टेट का विलय भारत में हुआ था, तब तक वह नवाब शासन का गुलाम था. वरिष्ठ पत्रकार और भोपाल इतिहास पर काम कर रहे रमेश शर्मा ने बताया कि "भाेपाल नवाब की मंशा ही नहीं थी कि भोपाल कभी भारत का हिस्सा बने, वे तो इसे पाकिस्तान का हिस्सा बनाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने कॉरिडोर भी सोच लिया था, यह कारीडोर भोपाल के राजगढ़, गुना से होते हुए राजस्थान के कुछ जिले और फिर हरियाणा व पंजाब तक बनता. भोपाल में हालात ठीक पाकिस्तान जैसे होते. भोपाल नवाब की ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस में इतनी पैठ थी कि उन्हें 2 साल तक झुका नहीं पाए, यहां तक कि जब भोपाल का विलय भारत में हुआ तो नवाब ने शर्त रखी कि उनके महल और गाड़ियों पर नवाब का झंडा ही लगेगा."

story of Merger of Bhopal with India
पूर्व राष्ट्रपति और भोपाल विलीनीकरण आंदोलन के मुखिया डॉ. शंकरदयाल शर्मा के परिजन

औरेंगजेब के सिपाहसलार ने बनाया था भोपाल: भोपाल में भले ही नवाबों का राज रहा हो, लेकिन इनकी सल्तनत अंग्रेजों के इशारे पर ही चलती थी. भोपाल रियासत की स्थापना वर्ष 1723-24 में हुई थी, इसकी स्थापना गौस मोहम्मद खान ने की थी और भोपाल स्टेट का हिस्सा सीहोर, आष्टा, खिलचीपुर और गिन्नौर, रायसेन भी था. मोहम्मद खान असल में औरंगजेब की सेना का एक सिपाहसलार था, वर्ष 1728 में गौस मोहम्मद खान की मौत के बाद उसके बेटे यार मोहम्मद खान ने भोपाल रियासत की कमान संभाल ली और वे घोषित रूप से पहले नवाब बने.

India Nawab wanted to make Bhopal a part of Pakistan
विलीनीकरण के मुख्य प्रणेता रतन कुमार के बेटे डॉ. आलोक कुमार गुप्ता

रमेश शर्मा बताते हैं कि "मार्च 1818 में मोहम्मद खान के समय भोपाल रियासत भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य की प्रिंसली स्टेट हो गई, इसके बाद 1926 में नवाब बने हमीदुल्लाह खान रियासत के नवाब बने. नवाब हमीदुल्लाह 2 बार 1931 और 1944 में चेंबर ऑफ प्रिंसेज के चांसलर बने, हालांकि आजादी की घोषणा होने के साथ उन्होंने चांसलर पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन साथ ही उन्होंने रजवाड़ों की स्वतंत्रता का पक्ष लेना शुरू कर दिया."

भोपाल के इतिहास से जुड़ी अन्य खबरें:

भारत के बाद भोपाल की आजादी की लड़ाई लड़नी पड़ी: जब यह साफ हो गया कि नवाब हमीदुल्लाह ने भोपाल को पाकिस्तान में मिलाने का निर्णय ले लिया तो फिर भोपाल की आजादी की लड़ाई शुरू हुई, भारत में विलय से बचने के लिए नेहरू और जिन्ना दोनों से मित्रता काम आई. भोपाल नवाब को जिन्ना ने पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल का पद देकर वहां आने को कहा, नवाब ने 13 अगस्त को उन्होंने अपनी बेटी आबिदा को भोपाल रियासत का शासक बन जाने को कहा, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. नवाब हमीदुल्लाह ने भोपाल को सेपरेट बनाए रखने के लिए मई 1948 में भोपाल सरकार बनाकर एक मंत्रिमंडल बना दिया, लेकिन तब भोपाल रियासत में विलीनीकरण के लिए विद्रोह शुरू हो गया था. इसको लीड कर रहे थे मास्टर लाल सिंह ठाकुर, उद्दवदास मेहता, भाई रतन कुमार, शंकरदयाल शर्मा आदि.

Bhopal Priday day
उद्दवदास मेहता के बेटे, वह पत्र दिखाते हुए, जिसमें उन्होंने सरकार से भोपाल को आजाद करने की मांग रखी थी.

डॉ. शंकर दयाल शर्मा समेत कई सेनानियों को आठ माह के लिए जेल भेज दिया गया, तब सरदार पटेल बीच में आए और उन्होंने सख्त रवैया दिखाया. साफ संदेश दिया कि भोपाल को मध्य भारत का हिस्सा बनना ही होगा, तीन महीने जमकर आंदोलन हुए. आखिरकार नवाब हमीदुल्ला ने 30 अप्रैल 1949 को घुटने टेक दिए और विलीनीकरण के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए और 1 जून 1949 को भोपाल रियासत, भारत का हिस्सा बन गया. (Bhopal Gaurav Diwas 2023)

भोपाल के विलय की कहानी

भोपाल। भारत ने भले ही अपना 75वा स्वतंत्रता दिवस मना लिया हो, लेकिन भोपाल के 75 वर्ष होने बाकी है, क्योंकि आजादी के भी करीब 2 साल बाद भोपाल स्टेट का विलय भारत में हुआ था, तब तक वह नवाब शासन का गुलाम था. वरिष्ठ पत्रकार और भोपाल इतिहास पर काम कर रहे रमेश शर्मा ने बताया कि "भाेपाल नवाब की मंशा ही नहीं थी कि भोपाल कभी भारत का हिस्सा बने, वे तो इसे पाकिस्तान का हिस्सा बनाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने कॉरिडोर भी सोच लिया था, यह कारीडोर भोपाल के राजगढ़, गुना से होते हुए राजस्थान के कुछ जिले और फिर हरियाणा व पंजाब तक बनता. भोपाल में हालात ठीक पाकिस्तान जैसे होते. भोपाल नवाब की ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस में इतनी पैठ थी कि उन्हें 2 साल तक झुका नहीं पाए, यहां तक कि जब भोपाल का विलय भारत में हुआ तो नवाब ने शर्त रखी कि उनके महल और गाड़ियों पर नवाब का झंडा ही लगेगा."

story of Merger of Bhopal with India
पूर्व राष्ट्रपति और भोपाल विलीनीकरण आंदोलन के मुखिया डॉ. शंकरदयाल शर्मा के परिजन

औरेंगजेब के सिपाहसलार ने बनाया था भोपाल: भोपाल में भले ही नवाबों का राज रहा हो, लेकिन इनकी सल्तनत अंग्रेजों के इशारे पर ही चलती थी. भोपाल रियासत की स्थापना वर्ष 1723-24 में हुई थी, इसकी स्थापना गौस मोहम्मद खान ने की थी और भोपाल स्टेट का हिस्सा सीहोर, आष्टा, खिलचीपुर और गिन्नौर, रायसेन भी था. मोहम्मद खान असल में औरंगजेब की सेना का एक सिपाहसलार था, वर्ष 1728 में गौस मोहम्मद खान की मौत के बाद उसके बेटे यार मोहम्मद खान ने भोपाल रियासत की कमान संभाल ली और वे घोषित रूप से पहले नवाब बने.

India Nawab wanted to make Bhopal a part of Pakistan
विलीनीकरण के मुख्य प्रणेता रतन कुमार के बेटे डॉ. आलोक कुमार गुप्ता

रमेश शर्मा बताते हैं कि "मार्च 1818 में मोहम्मद खान के समय भोपाल रियासत भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य की प्रिंसली स्टेट हो गई, इसके बाद 1926 में नवाब बने हमीदुल्लाह खान रियासत के नवाब बने. नवाब हमीदुल्लाह 2 बार 1931 और 1944 में चेंबर ऑफ प्रिंसेज के चांसलर बने, हालांकि आजादी की घोषणा होने के साथ उन्होंने चांसलर पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन साथ ही उन्होंने रजवाड़ों की स्वतंत्रता का पक्ष लेना शुरू कर दिया."

भोपाल के इतिहास से जुड़ी अन्य खबरें:

भारत के बाद भोपाल की आजादी की लड़ाई लड़नी पड़ी: जब यह साफ हो गया कि नवाब हमीदुल्लाह ने भोपाल को पाकिस्तान में मिलाने का निर्णय ले लिया तो फिर भोपाल की आजादी की लड़ाई शुरू हुई, भारत में विलय से बचने के लिए नेहरू और जिन्ना दोनों से मित्रता काम आई. भोपाल नवाब को जिन्ना ने पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल का पद देकर वहां आने को कहा, नवाब ने 13 अगस्त को उन्होंने अपनी बेटी आबिदा को भोपाल रियासत का शासक बन जाने को कहा, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. नवाब हमीदुल्लाह ने भोपाल को सेपरेट बनाए रखने के लिए मई 1948 में भोपाल सरकार बनाकर एक मंत्रिमंडल बना दिया, लेकिन तब भोपाल रियासत में विलीनीकरण के लिए विद्रोह शुरू हो गया था. इसको लीड कर रहे थे मास्टर लाल सिंह ठाकुर, उद्दवदास मेहता, भाई रतन कुमार, शंकरदयाल शर्मा आदि.

Bhopal Priday day
उद्दवदास मेहता के बेटे, वह पत्र दिखाते हुए, जिसमें उन्होंने सरकार से भोपाल को आजाद करने की मांग रखी थी.

डॉ. शंकर दयाल शर्मा समेत कई सेनानियों को आठ माह के लिए जेल भेज दिया गया, तब सरदार पटेल बीच में आए और उन्होंने सख्त रवैया दिखाया. साफ संदेश दिया कि भोपाल को मध्य भारत का हिस्सा बनना ही होगा, तीन महीने जमकर आंदोलन हुए. आखिरकार नवाब हमीदुल्ला ने 30 अप्रैल 1949 को घुटने टेक दिए और विलीनीकरण के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए और 1 जून 1949 को भोपाल रियासत, भारत का हिस्सा बन गया. (Bhopal Gaurav Diwas 2023)

Last Updated : May 29, 2023, 1:37 PM IST
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