नई दिल्ली : एलएसी पर 1,00,000 से अधिक भारतीय और चीनी सैनिक निकटवर्ती सर्दियों के क्रूर हमले का इंतजार कर रहे हैं. भारतीय सैनिक तो पर्वतीय युद्ध में काफी अनुभवी हैं और सियाचिन पर तैनाती के अभ्यस्त हैं, मगर पीएलए (चीनी सेना) को अभी भी ऐसी कठिन परिस्थितियों का अनुभव नहीं है. बेहद ठंडे और ऊंचाई वाले क्षेत्र में इंसानी दुश्मन से ज्यादा खतरनाक प्रकृति होती है. कुछ ऐसी ही गलती मुहम्मद बिन तुगलक ने करीब 683 साल पहले की थी.
तिब्बत और चीन के बीच कराचिल में भेजी थी एक लाख की सेना
इतिहास को जानना इसी लिए जरूरी होता है. वह हमें सबक सिखाता है. इतिहास में हुई भूलों को अगर जान लिया जाए और उसपर काम किया जाए, तो सफलता मिलने में देर नहीं लगती. आज से करीब 683 साल पहले लगभग 1337 में भारत और तिब्बत के बीच कराचिल में दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने कराचिल अभियान चलाया. ज्यादातर इतिहासकारों का मानना है कि इस अभियान का मकसद तिब्बत पर हमला करना था और उसके बाद चीन पर हमला करना था. माना जाता है कि भारत और तिब्बत के बीच कराचिल एक स्वतंत्र राज्य (वर्तमान हिमाचल प्रदेश या तिब्बत) था. यहीं से होकर चीन के लिए मार्ग था. सुल्तान ने अपर्याप्त तैयारी और पर्वतीय लड़ाई के अनुभव के बगैर हिमालय में लगभग एक लाख सैनिकों की सेना को कराचिल पर कब्जे के लिए भेज दिया. उस समय के सभी इतिहासकार इस बात पर सहमत हैं कि कराचिल में सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने एक विशाल सेना भेजी थी. जिया-उद्दीन बरनी ने सेना की कोई सटीक संख्या नहीं दी. बुदौनी और हजजी-उद-दबीर ने इसे 80,000 पर रखा, जबकि इस्माई और इब्न बतूता ने इसे 1,00,000 तक बढ़ाया.
सल्तनत सेना को पहाड़ों पर लड़ने का नहीं था अनुभव
उस समय मुहम्मद बिन तुगलक बहुत ही ताकतवर और महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को शुरू करने के कारण एक विशाल साम्राज्य पर शासन करता था. खुसरव मलिक के नेतृत्व वाली सल्तनत सेना (कुछ इतिहासकारों के अनुसार इसका नेतृत्व मलिक यूसुफ बुघरा ने किया था) मैदानी इलाकों में सैन्य सफलता पाते हुए पहाड़ की तरफ बढ़ रहे थे. मध्ययुगीन भारत के विशेषज्ञ प्रख्यात इतिहासकार आगा महदी हुसैन ने लिखा है कि सम्राट के सैनिकों ने शुरुआती सफलता से प्रोत्साहित होकर तुगलक को अपनी जीत की लिखित सूचना दी. तुगलक ने उन्हें कुछ देर रुकने और पहाड़ों के लिए नई योजना बनाने को कहा, लेकिन खुशव मलिक ने जीत के दंभ में सम्राट के आदेशों को दरकिनार कर दिया. वह पूरी सेना को पहाड़ों में ले गया. पहाड़ों में उस वक्त प्लेग फैला हुआ था. इससे सेना में भगदड़ मच गई. रही-सही कसर बारिश और बर्फबारी ने पूरी कर दी. कराचिल के सैनिक पर्वतारोही थे और ऊंचाई पर थे. उन्होंने सल्तनत सेना पर पहाड़ की चोटी से पत्थर फेंकने शुरू किए. परिणामस्वरूप पूरी सेना नष्ट हो गई. बत्तूता ने लिखा कि 1,00,000 सैनिकों में से केवल तीन जीवित बचे थे. जिया-उदीन बरनी के अनुसार केवल दस सैनिक बचे थे.
सिल्क रूट की समृद्धि थी लड़ाई की एक वजह
तुगलक के तिब्बत और चीन जीतने की इच्छा के पीछे विभिन्न कारण बताए जाते हैं. सिल्क रूट की समृद्धि भी एक मुख्य कारण था. बतूता के यात्रा वृत्तांत 'रिहला' के अनुसार मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल के प्रारंभिक भाग के दौरान चीन ने भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण किया था और सामरिक महत्व के इलाके में एक मूर्ति का निर्माण किया था. इससे तुगलक नाराज था और इसी कारण ताकतवर होने के बाद उसने अपनी सेना आक्रमण के लिए भेजी. आक्रमण का एक अन्य कारण उत्तरी सीमा को सुरक्षित करने की आवश्यकता भी इतिहासकार बताते हैं. तुगलक ने अन्य सभी सीमाओं को सुरक्षित कर लिया था और वह कराचिल को उत्तर में दुर्ग बनाना चाहता था. इस युद्ध में तुगलक की सेना के खिलाफ हिंदू राजपूतों और कुमाऊं-गढ़वाल क्षेत्र के लोगों ने लड़ाई लड़ी थी.