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कोरोना लॉकडाउन के दौरान वर्चुअल कोर्ट में हुई कार्यवाही

कोरोना वायरस से फैली महामारी के कारण भारतीय अदालत की न्याय वितरण प्रणाली भी प्रभावित हुई है. सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के चलते अब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ही कई महत्वपूर्ण मामलों पर सुनवाई की जा रही है. हाल ही में ईटीवी भारत के एक संवाददाता को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुई कार्यवाही को देखने का मौके मिला. जानें कैसा रहा उनका अनुभव...

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Published : Jun 1, 2020, 10:18 PM IST

श्रीनगर : कोरोना वायरस से फैली महामारी ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया है. इस महामारी के चलते भारतीय अदालत की न्याय वितरण प्रणाली भी प्रभावित हुई है. सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के चलते अब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से महत्वपूर्ण मामलों पर सुनवाई की जा रही है.

ईटीवी भारत के एक संवाददाता ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई अदालती कार्यवाही के अपने अनुभव को साझा किया. अदालत में कश्मीर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मियां अब्दुल कयूम की रिहाई याचिका पर सुनवाई हो रही थी.

कयूम को अनुच्छेद 370 और 35A के निरस्त होने के तुरंत बाद, सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) के तहत गिरफ्तार किया गया था. संवाददाता ने पहले भी कई मामलों की सुनवाई को कोर्टरूम में देखा है, लेकिन वर्चुअल कोर्ट का यह अनुभव बिल्कुल अलग और दिलचस्प था.

उन्होंने बताया कि जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय खासतौर पर अदालती कार्यवाही के लिए ही बने वीडियो ऐप का इसतेमाल करती है. इसकी मदद से सुनवाई के दौरान केस से जुड़े दस्तावेज साझा किए जा सकते हैं. याचिकाकर्ता इसके लिए पहले से पंजीकरण कराना पड़ता है.

मियां कयूम के वकील मियां तुफैल अहमद ने बताया कि लॉकडाउन के चलते मामलों की सुनवाई वर्चुअल कोर्टरूम में होती है. याचिकाकर्ता या उनके वकील को सुनवाई के लिए उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार को सूचित करना पड़ता है. वह मामले से संबंधित न्यायाधीश से भी संपर्क कर सकते हैं. उन्हें अनुमति मिलने के बाद कार्यवाही की तारीख और समय निर्धारित किया जाता है.

उन्होंने बताया कि कार्यवाही वीडियो या कॉल कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से होगी यह न्यायाधीश के ऊपर निर्भर करता है. कयूम के मामले में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग को मंजूरी दी गई थी. कभी-कभी खराब कनेक्टिविटी के कारण कार्यवाही को पुनर्निर्धारित किया जाता है.

यह पूछे जाने पर कि क्या पत्रकारों या किसी तीसरे पक्ष को पूरी कार्यवाही को देखने की अनुमति है, उन्होंने बताया कि उच्च न्यायालय के परिपत्र के अनुसार, पत्रकार केवल 'रिपोर्ट करने योग्य' मामले की कार्यवाही का हिस्सा हो सकते हैं. उन्हें वीडियो रिकॉर्ड करने की अनुमति नहीं है, वह ओडियो रिकॉर्ड कर सकते हैं. वर्चुअल कोर्टरूम में भी सामान्य कोर्टरूम के सभी नियम लागू होते हैं.

वर्चुअल कोर्टरूम की कार्यवाही
मियां अब्दुल कयूम मामले में न्यायाधीश अली मुहम्मद मगरे और न्यायाधीश विनोद चटर्जी कौल की पीठ को 11 बजे फैसला सुनाना था.

ईटीवी भारत के संवाददाता और घाटी के दो अन्य पत्रकारों को मियां कयूम की कानूनी टीम के एक वकील ने कार्यवाही को देखने के लिए बुलाया था.

वकील का घर वर्चुअल कोर्टरूम में बदल गया था. सभी वकील और न्यायाधीश काले कोट और गाउन पहने हुए थे. फर्क सिर्फ इतना था कि दस्तावेजों की जगह हार्ड डिस्क और पेनड्राइव ने लेली थी. सुनवाई के दौरान सभी को फोन बंद करने को कहा गया था.

पढे़ं : पूर्व केंद्रीय मंत्री सैफुद्दीन सोज की गिरफ्तारी के खिलाफ पत्नी पहुंची सर्वोच्च न्यायालय

एक स्क्रीन पर दस विंडो
स्क्रीन पर सभी न्यायाधीश और वकील दिख रहे थे. हालांकि याचिकाकर्ता इस सुनवाई के दौरान मौजूद नहीं थे. बाद में एक वरिष्ठ वकील ने बताया कि न्यायाधीशों के आदेश पर ही याचिकाकर्ताओं को बुलाया जाता है.

यह सुनवाई काफी देर तक चलती ही. अंत में याचिका को खारिज कर दिया गया.

श्रीनगर : कोरोना वायरस से फैली महामारी ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया है. इस महामारी के चलते भारतीय अदालत की न्याय वितरण प्रणाली भी प्रभावित हुई है. सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के चलते अब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से महत्वपूर्ण मामलों पर सुनवाई की जा रही है.

ईटीवी भारत के एक संवाददाता ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई अदालती कार्यवाही के अपने अनुभव को साझा किया. अदालत में कश्मीर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मियां अब्दुल कयूम की रिहाई याचिका पर सुनवाई हो रही थी.

कयूम को अनुच्छेद 370 और 35A के निरस्त होने के तुरंत बाद, सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) के तहत गिरफ्तार किया गया था. संवाददाता ने पहले भी कई मामलों की सुनवाई को कोर्टरूम में देखा है, लेकिन वर्चुअल कोर्ट का यह अनुभव बिल्कुल अलग और दिलचस्प था.

उन्होंने बताया कि जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय खासतौर पर अदालती कार्यवाही के लिए ही बने वीडियो ऐप का इसतेमाल करती है. इसकी मदद से सुनवाई के दौरान केस से जुड़े दस्तावेज साझा किए जा सकते हैं. याचिकाकर्ता इसके लिए पहले से पंजीकरण कराना पड़ता है.

मियां कयूम के वकील मियां तुफैल अहमद ने बताया कि लॉकडाउन के चलते मामलों की सुनवाई वर्चुअल कोर्टरूम में होती है. याचिकाकर्ता या उनके वकील को सुनवाई के लिए उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार को सूचित करना पड़ता है. वह मामले से संबंधित न्यायाधीश से भी संपर्क कर सकते हैं. उन्हें अनुमति मिलने के बाद कार्यवाही की तारीख और समय निर्धारित किया जाता है.

उन्होंने बताया कि कार्यवाही वीडियो या कॉल कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से होगी यह न्यायाधीश के ऊपर निर्भर करता है. कयूम के मामले में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग को मंजूरी दी गई थी. कभी-कभी खराब कनेक्टिविटी के कारण कार्यवाही को पुनर्निर्धारित किया जाता है.

यह पूछे जाने पर कि क्या पत्रकारों या किसी तीसरे पक्ष को पूरी कार्यवाही को देखने की अनुमति है, उन्होंने बताया कि उच्च न्यायालय के परिपत्र के अनुसार, पत्रकार केवल 'रिपोर्ट करने योग्य' मामले की कार्यवाही का हिस्सा हो सकते हैं. उन्हें वीडियो रिकॉर्ड करने की अनुमति नहीं है, वह ओडियो रिकॉर्ड कर सकते हैं. वर्चुअल कोर्टरूम में भी सामान्य कोर्टरूम के सभी नियम लागू होते हैं.

वर्चुअल कोर्टरूम की कार्यवाही
मियां अब्दुल कयूम मामले में न्यायाधीश अली मुहम्मद मगरे और न्यायाधीश विनोद चटर्जी कौल की पीठ को 11 बजे फैसला सुनाना था.

ईटीवी भारत के संवाददाता और घाटी के दो अन्य पत्रकारों को मियां कयूम की कानूनी टीम के एक वकील ने कार्यवाही को देखने के लिए बुलाया था.

वकील का घर वर्चुअल कोर्टरूम में बदल गया था. सभी वकील और न्यायाधीश काले कोट और गाउन पहने हुए थे. फर्क सिर्फ इतना था कि दस्तावेजों की जगह हार्ड डिस्क और पेनड्राइव ने लेली थी. सुनवाई के दौरान सभी को फोन बंद करने को कहा गया था.

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एक स्क्रीन पर दस विंडो
स्क्रीन पर सभी न्यायाधीश और वकील दिख रहे थे. हालांकि याचिकाकर्ता इस सुनवाई के दौरान मौजूद नहीं थे. बाद में एक वरिष्ठ वकील ने बताया कि न्यायाधीशों के आदेश पर ही याचिकाकर्ताओं को बुलाया जाता है.

यह सुनवाई काफी देर तक चलती ही. अंत में याचिका को खारिज कर दिया गया.

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