हैदराबाद : कोरोना वायरस से त्रस्त विश्व के लिए संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने नई नीति जारी की है. इसके अनुसार स्वास्थ्य आपातकाल के कारण मंदी के मुहाने पर विश्व खड़ा है. मंदी से निबटने के लिए विश्वभर के देशों को भूख और खाद्य असुरक्षा पर दीर्घकालिक प्रभावों के लिए उपाय करना चाहिए.
वैश्विक अर्थव्यवस्था का पूर्वानुमान सभी के विवरण में भिन्न-भिन्न है, लेकिन सभी संस्थाएं एक ऐतिहासिक मंदी की ओर इशारा कर रही हैं. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष अब उम्मीद करता है कि 2020 में दुनिया भर में सकल घरेलू उत्पाद 3.3 प्रतिशत की जनवरी के अनुमानों की तुलना में 2020 में 3.0 प्रतिशत कम होगा. उप-सहारा अफ्रीका में पहली बड़ी मंदी से भारी नुकसान की आशंका है. यहां पर 25 वर्षों में लगभग एक चौथाई आबादी कुपोषण की शिकार है.
2019 में स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड (SOFI) की रिपोर्ट में एफएओ के विश्लेषकों ने कहा था कि आर्थिक मंदी ने 2011 और 2017 के बीच इस तरह के कुपोषण के शिकार 77 देशों में से 65 में अल्पपोषण स्तर को बढ़ाया. आगे भी इसे बरकरार रखेगी.
नई एफएओ पॉलिसी जानकारी 1995 से खाद्य आपूर्ति के आंकड़ों का विश्लेषण प्रस्तुत करती है, जो एफएओ के अल्पपोषण (पीओयू) संकेतक के प्रसार के सांख्यिकीय विकास से जुड़ा हुआ है.
यह ध्यानाकर्षित करता है कि समय पर और प्रभावी नीतियों के अभाव के कारण कोरोना से उत्पन्न मंदी से लाखों लोग भूखों की श्रेणी में शामिल हो जाएंगे. संख्या आर्थिक गंभीरता के अनुसार अलग-अलग हो सकती है. 14 करोड़ 40 लाख से लेकर 38 करोड़ 20 लाख भी हो सकते हैं. यहां तक कि 80 करोड़ 30 लाख लोग या सभी 101 खाद्य-आयात करने वाले देशों के जीडीपी विकास में 10 प्रतिशत अंकों का विनाशकारी गिरावट दर्ज हो सकता है.
नीतिगत जानकारी में ये चेतावनी दी गई है कि अगर खाद्य की उपलब्धता में मौजूदा असमानताएं बिगड़ती हैं तो वास्तविक परिणाम और भी बदतर हो सकते हैं. इसमें परिदृश्य और कार्यप्रणाली भी शामिल हैं और एक तकनीकी तरीके से प्रकाशित किया गया, ताकि उन पहलुओं को और विस्तार से समझाया जा सके.
एफएओ के एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स डिवीजन के उप-निदेशक मार्को वी सैंचेज कहते हैं, 'कोविड -19 को लेकर नीतिगत जानकारी देना आर्थिक प्रोत्साहन के लिए प्राथमिकता देने के पक्ष में साक्ष्य प्रदान करता है.'
व्यापार और खाद्य आपूर्ति की सुरक्षा तय करना तथा सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा देकर खाद्य उपलब्धता सुनिश्चित करना है. एफएओ का आग्रह है कि सभी देश अंतररराष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट के दौरान व्यापार प्रवाह और खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुचारू रखें. कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करें. बड़े पैमाने पर राजकोषीय और मौद्रिक कदम उठाकर सरकारें आर्थिक विकास को अपेक्षित सहयोग करें. स्वस्थ भोजन लोगों तक पहुंचने में असमानता कई मध्यम और निम्न-आय वाले देशों में दीर्घकालिक मुद्दों से निबटने के अवसर का प्रतिनिधित्व करती हैं.
कोविड-19: स्कूलों को फिर से खोलने के लिए नए दिशा-निर्देश
विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 से बचाव के लिए ऐहतियाती उपायों के मद्देनज़र दुनिया के कई देशों में स्कूलों को बंद किया गया है जिससे बच्चों की शिक्षा, संरक्षण और स्वास्थ्य-कल्याण के लिए अभूतपूर्व जोखिम पैदा हुआ है. गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं जो बताते हैं कि तालाबंदी से प्रभावित एक अरब से अधिक बच्चों के लिए स्कूलों को फिर किस तरह खोला जा सकता है.
तालाबंदी व सख़्त पाबंदियों के कारण मौजूदा समय में 73 प्रतिशत से अधिक छात्रों यानी एक अरब 20 करोड़ से ज़्यादा बच्चों व युवाओं की पढ़ाई-लिखाई पर असर पड़ा है. यूएन एजेंसियों ने सचेत किया है कि शिक्षा केंद्रों के व्यापक स्तर पर बंद होने से बच्चों की शिक्षा व उनके कल्याण के लिए अभूतपूर्व खतरा पैदा हुआ है, विशेषकर हाशिएकरण का शिकार उन बच्चों के लिए जो अपनी शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा व पोषण के लिए स्कूलों में मिलने वाली सहायता पर निर्भर हैं.
ताजा दिशा-निर्देशों को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, विश्व खाद्य कार्यक्रम ने विश्व बैंक के साथ मिलकर जारी किया है. ये संगठन 'ग्लोबल एजुकेशन कोएलिशन' में शामिल हैं जो शिक्षा के लिए अवसरों को प्रोत्साहन देने के लिए इस वर्ष मार्च में स्थापित किया गया था.
इन गाइडलाइन्स में राष्ट्रीय और स्थानीय प्रशासन के लिए ऐसे व्यावहारिक कदमों का उल्लेख हैं जिनके जरिए स्कूलों में बच्चों की सुरक्षित वापसी को सुनिश्चित किया जा सकता है.
यूनीसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फोर ने कहा कि जो बच्चे स्कूलों से वंचित रह जाते हैं उन्हें बढ़ती असमानता, खराब स्वास्थ्य, हिंसा, बाल श्रम, बाल विवाह जैसे खतरों का सामना करना पड़ता है. 'हम जानते हैं कि बच्चे स्कूलों से जितना लंबे समय तक बाहर रहते हैं, उनके वापस आने की संभावना उतनी ही कम होती है. अगर हमने स्कूलों को फिर से खोलने को प्राथमिकता नहीं बनाया – जब ऐसा करना सुरक्षित हो – तो शिक्षा में प्रगति की दिशा को भारी झटका लगने की संभावना है.'
इससे पहले संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने सरकारों से ऐसे 37 करोड़ बच्चों की स्वास्थ्य व पोषण संबंधी जरूरतों का ध्यान रखे जाने की अपील की थी जिसके अभाव में उनके भविष्य पर हानिकारक असर होगा.
विश्व खाद्य कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक डेविड बीजली के मुताबिक, 'दुनिया भर में लाखों बच्चों के लिए स्कूलों में मिलने वाला आहार ही उनका दिन में एकमात्र भोजन है. इसके बिना वे भूखे रह जाएंगे, उनके बीमार पड़ने, स्कूलों से बाहर हो जाने और ग़रीबी से निकल पाने का एक अच्छा मौका खो जाने का जोखिम है.'
दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि स्कूलों को फिर खोले जाते समय बेहतर तैयारी को ध्यान में रखा जाना होगा. इसके लिए पढ़ाई-लिखाई की बेहतर व्यवस्था होने, बच्चों के लिए व्यापक मदद उपलब्ध कराए जाने और उनके स्वास्थ्य, पोषण, मनोसामाजिक मदद, जल, साफ-सफाई की जरूरतों का ख्याल रखना अहम है.
एक नजर दिशा-निर्देशों में उल्लेखित अहम बिंदुओं पर:
नीतिगत सुधार : इसके तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य एमरजेंसी के दौरान स्कूल खोलने और बंद करने के लिए स्पष्ट नीतियां जारी करने, रिमोट लर्निंग (दूरस्थ शिक्षा) के लिए मानक स्थापित करने और उन्हें मजबूत बनाने और वंचितों व स्कूलों से बाहर बच्चों के लिए सुलभ बनाने पर जोर दिया गया है.
वित्तीय जरूरत : कोविड-19 के कारण शिक्षा पर पड़ने वाले असर को दूर किया जाए और शिक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने, सहनशीलता बढ़ाने और उसे पुनर्बहाल करने के इंतजाम हों.
सुरक्षित संचालन : बीमारी के फैलाव की रोकथाम को सुनिश्चित किया जाए, जरूरी सेवाओं और सामग्री की व्यवस्था सुरक्षित ढंग से और स्वस्थ आदतों (हाथ धोना, पीने के लिए स्वच्छ पानी, शारीरिक दूरी बरतना) को बढ़ावा दिया जाए.
क्षतिपूर्ति के लिए शिक्षा : ऐसी तरीकों को अपनाया जाए जिससे शिक्षण समय के नुकसान की भरपाई हो सके, साथ ही पढ़ाई-लिखाई के हाइब्रिड मॉडल का निर्माण हो ताकि दूरस्थ शिक्षा की भी व्यवस्था की जाए.
संरक्षण एवं कल्याण : बच्चों के कल्याण पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्कूलों में जरूरी सेवाओं जैसे भोजन-पोषण और स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जाएं.
वंचितों तक पहुंच : स्कूल खोलने की नीतियों को तैयार करते समय हाशिए पर रहने वाले बच्चों व समुदायों का भी ख्याल किया जाए और महत्वपूर्ण जानकारी को अन्य भाषाओं में भी साझा किया जाए.