जी हां!! अभी नहीं तो कभी नहीं –भविष्य के ऊपर पसर रहे काले बादलों को हटाने का समय आ गया है.
वसंत ऋतु अब यादों के बीच धुंधली होती जा रही है. अगले दशक ने उम्मीद की किरणों को रास्ता दिखाया है. अनंत उम्मीदों के साथ, दुनिया, एक सुनहरे और बेहतर भविष्य की तरफ का सफर तय करने की कोशिशों में लगी है. नये जमाने की दुनिया के रास्ते में, पुराने समय में की गई गलतियां मुश्किलें पैदा कर रही हैं.
वो क्या चुनौतियां हैं, जो आने वाले भविष्य पर काले बादलों जैसा साया डाल रही हैं? इन चुनौतियों से निपटने के क्या उपाय हैं?
मानवता किस तरह आने वाले दशक को विकास और खुशहाली से भरा बना सकती है?
2020-2030 के दरमियान हमें जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, उन पर नजर डालती है यह कहानी
इसमे कोई शक नहीं है कि हम जिस आग से अपने आप को सेक रहे हैं, वही आग हमे जला भी रही है!!
अगले दल सालों की पर्यावरण संबंधी चुनौतियों को साधने के लिये हम क्या कर रहे हैं?
यह समझना बहुत जरूरी है कि हम आने वाली पीढ़ियों को पर्यावरण में बदलाव के खतरों और प्राकृतिक आपदाओँ से बचाने के लिये क्या करने वाले हैं?
इतने समय से हम यह मान के बैठे थे कि, हमें पर्यावरण संबंधी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा. लेकिन, यह सच नहीं है, और आने वाले समय में ही, हम अपने आप को पर्यावरण के लिहाज से बहुत संवेदनशील हालातों के बीच में पायेंगे.
हाली ही में, चेन्नई में बेमौसम बरसात के कारण बाढ़ के हालात पैदा हो गये, और, इस बाढ़ के तुरंत बाद शहर में पीने के पानी की भारी किल्लत हो गई.इसी तरह, मुंबई भी हर साल बारिश के पानी से परेशान होता है, और आसपास के इलाकों के किसान पानी के लिये तरसते रहते हैं. इस तरह भारी बारिश से, शहरों में जलभराव हो जाता है औऱ इस कारण से कई बीमारियां फैलाने वाले कीटाणुओं को पनपने का मौका मिलता है. क्या आप यकीन करेंगे कि इस सबके पीछे पर्यावरण में हो रहा बदलाव सबसे बड़ा कारण है? क्या आपने कभी पर्यावरण में बदलावों और प्याज की बड़ी कीमतों के बीच के संबंध के बारे में सोचा है? पर्यावरणविदों का मानना है कि, बेमौसम और खराब बारिश के कारण फसलों को होने वाला नुकासन, पर्यावरण में हो रहे बदलावों का नतीजा है.
आने वाले दशक की डरावनी तस्वीर
ग्लोबल वॉर्मिंग : धरती की सतह का तामपान एक डिग्री सेंटिग्रेड से बड़ गया है. अगर यह औऱ एक डिग्री बड़ा, तो तमाम ग्लेशियर और बर्फीले हिमालयों के पिघलने का सिलसिला शुरू हो जायेगा, जिसके कारण तटवर्ती इलाके पानी में डूब जायेंगे. इन भयानक घटनाओं के पीछे ग्लोबल वॉरमिंग कारण है. इसलिये यह देखना जरूरी है कि धरती की सतह का तापमान 1.5 डिग्री से ज्यादा न बड़े.
ऑर्गेनिक उत्सर्जन : कोयले और तेल के उत्पादों के व्यापक इस्तेमाल के कारण, वातावरण में कार्बन उत्सर्जन का स्तर, 300 पीपीएम की अधिक्तम सीमा से बड़कर 400 पीपीएम तक जा पहुंचा है. इस सदी की बड़ी चुनौतियों में से एक है, ग्लोबल वॉर्मिंग को बड़ाने वाले उत्सर्जन पर काबू करना. मौजूदा समय में कार्बन उत्सर्जन को रोकना और वातावरण में फैसे कार्बन को काबू में लाना बड़ी चुनौती है. कार्बन को समुद्र में मिलने और खत्म होने में 200 साल का समय लगता है.
हम क्या कर सकते हैं?
रियो चैरिटेबल सम्मेलन (1992) से लेकर पैरिस समझौते (2016) तक, दुनिया के तमाम देश और अंतर्राष्ट्रीय संस्थान पर्यावरण में हो रहे बदलावों पर काबू पाने की कोशिशों में लगे हैं. इसकी सारी जिम्मेदारी सरकारों की नहीं हो सकती, बल्कि, नागरिकों को भी अपने अपने स्तर पर पर्यावरण संरक्षण में अपनी भूमिका निभानी पड़ेगी.
इन्हें तोड़े नहीं…जोड़ने की कोशिश करें
कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिये जंगल और पेड़ पौधे अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. जंगलों को बचाने की जरूरत है. पेडों को काटने के सिलसिले को रोकना पड़ेगा. हम सभी को इस मुहिम में बड़ चड़कर हिस्सा लेने की जरूरत है. केवल पेड़ों को लगाना नहीं, बल्कि उसके पूरा रूप लेने तक उसकी देखभाल करना भी हमारी जिम्मेदारी है.
बिजली को अपनायें
कार्बन उत्सर्जन में सबसे बड़ा हाथ पेट्रोल औऱ डीजल की गाड़ियों का है. इसलिये, इस दशक के अंदर, बिजली से चलने वाली गाड़ियों का रुख करना बेहद जरूरी है. कई कार निर्माता कंपनियां, अगले 2-5 सालों में डीजल गाड़ियों का उत्पादन बंद करने पर विचार कर रही हैं. दुनिया तेजी से सौर और पवन ऊर्जा की तरफ रुख कर रही है.
गाड़ियों का इस्तेमाल हो कम
निजि वाहनों का इस्तेमाल कम करने के लिये पब्लिक परिवहन का इस्तेमाल ज्यादा करने की जरूरत है. 4-5 लोगों को ले जाने के लिये बनी गाडी में अकेले सफर कर, तेल की बर्बादी नहीं करनी चाहिये. आपके रास्ते ही जाने वाले औऱ लोगों के साथ कार पूल करने को बढ़ावा देना चाहिये. गाड़ियों की जगह कम दूरी के लिये, पैदल या साइकिल का इस्तेमाल करना चाहिये. पब्लिक परिवहन सिस्टम के पूरे इस्तमाल के लिये कारगर नीतियां बनाने की जरूरत है.
दफ्तर के पास ही लें घर
इस बात पर भी ध्यान देना चाहिये, कि आपका घर, आपके दफ्तर से कम से कम दूरी पर हो. इससे, गाड़ियों के इस्तेमाल में कमी आ सकेगी.
पर्यावरण के लिहाज से सुरक्षित घर
ऐसे घर और दफ्तर बनाने की जरूरत हैं, जो, रोशनी से भरपूर हो, पर्यावरण के लिहाज से सुरक्षित हो और जिनमे रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की पूरी सुविधा मौजूद हो.
प्लास्टिक मुक्त
जानकारों काी कहना है कि, प्लास्टिक के लिहाज से, 'रीयूज, री-साइकल, रिड्यूस' के नारे में 'रिफ्यूज' भी जोड़ देना चाहिये. दिल्ली में प्रयोग के तौर पर किये गये ऑड-ईवन स्कीम की ही तर्ज पर, कई देशों में, राजमार्गों पर, छुट्टी के दिनों में कुछ घंटों के लिये वाहनों की आवाजाही पर रोक रहती है.
संयुक्त राष्ट्र की मुहिम
ग्लोबल वॉर्मिंग कम करने के लिये, संयुक्त राष्ट्र, 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 45% तक कम करना चाहता है. इस उत्सर्जन को संयुक्त राष्ट्र 2050 के अंत तक शून्य करने के लक्ष्य के साथ काम कर रहा है.
इस कार्यक्रम में दुनिया की हिस्सेदारी:
देश-192
शहर-10,455
कंपनियां-3,676
निवेशक-1,136
संस्थान-1,323